सोमवार, 22 सितंबर 2014
Case #38 - 38. औरत जो असफल हो गई
जेम्मा की चिंता असफलता थी. वह हरेक चीज में असफल रहती थी – एक कम्पनी के लिये काम करते हुए उसकी पांच दुर्घटनाएँ हो चुकी थी, दूसरी कम्पनी के लिए काम करते हुए उससे कम्प्यूटर पर गलतियाँ हुई थी, इत्यादि . उसे महसूस होता था कि वह जीवन में असफल थी.
जैसे ही उसने अपनी चिंता बताई, मैं सावधान हो गया. उसने एक के बाद एक कहानी सुनाई, एक में से दूसरी निकलती हुई. वह रुआंसी हो रही थी, बेहोश सी हो रही थी, और मैं यह देख पा रहा था कि मुझे उसके साथ घंटो काम करना पड़ सकता था, बिना किसी नतीजे पर पहुंचे. उसने वो भी समस्याएं बताई जो उसे अपने घर से बाहर निकलेन के बाद अपने माता-पिता के साथ हो रहीं थी, उसे अपने माता-पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था, अपने पिता और उसकी मंशाओं पर उसे शक हो रहा था. स्पष्टत: वह सहायता के लिए बहुत उद्ग्विन थी, और उसकी उद्ग्विनता ने मुझे झंझोड़ दिया था, और मैंने पीछे हटना चाहते हुए भी स्वयं को प्रतिक्रिया करते हुए पाया.
इसलिए मैं यह जानता था कि मुझे सीधे उसके भीतर जाना था, और स्वयं को उसमें भागीदार बनाना था. मैंने कहा चलो हम असफलता से निपटते हैं; यह अभी हो रही है – तुम मेरे साथ पहले ही असफल हो रही हो – तुम्हारी शैली मुझ पर प्रभाव डाल रही है. उसने सिर हिलाया – वो जान चुकी थी कि मैंने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, निस्संदेह उसका जाना-पहचाना अनुभव था.
कोई अगर आत्म-विनाशकारी रूप से अपने को ताले में बंद रखे तो पहला कदम यह होगा कि हम उसकी कहानियां सुनने के बजाय पूर्ण रूप से उसे वर्तमान में ले आयें. और इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम यह देखे कि वह संबंधों में कैसे घुलता-मिलता है.
मैंने फिर उसे मेरे साथ एक छोटी सी गेम खेलने के लिए कहा. मैं चाहता था कि वो अंदाजा लगाये कि उसकी असफलता के बारे में मेरी क्या प्रतिक्रिया थी – हरेक दो अंदाजों के बाद मैं उसे बताऊंगा कि वो सही थी या नहीं.
उसने अंदाजा लगाया कि मैं अपना धैर्य न खोने के लिए पूरी कोशिश कर रहा था. मैंने कहा नहीं. उसने अंदाजा लगाया कि मुझे उसके साथ सहानुभूति महसूस हो रही थी. मैंने कहा नहीं.
मैंने उसे बताया कि मुझे उससे चिडचिडाहट हो रही थी.
फिर मैंने उसे ये अंदाजा लगाने के लिए कहा मुझे वह सब कैसा लग रहा था. उसने कहा मैं अपनी भावनाओं को दबा रहा था. मैंने कहा ये थोडा सा ही ठीक था. उसने अंदाजा लगाया कि मैं उसे अपने पेट और छाती में महसूस कर रहा था.
फिर मैंने उससे कहा कि वास्तव में मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मैं उसे अपनी छाती में एक अंदरूनी दबाव की तरह महसूस कर रहा था.
मैंने उसे वो प्रयोग करने के लिये कहा क्योंकि मैं उसे स्वयं पर दया करने के दलदल से और असफल-सूत्र के पिंजड़े से निकालना चाहता था. मैं उसे यह दिखाना चाहता था कि यह सह-रचित अनुभव था और वो ही एक अकेली नहीं थी जो पीड़ित थी. यह मेरे लिए भी भयंकर था. मैंने उसे भी यह करने को कहा, क्योकि वह स्पष्टत; पागल थी(अपने पिता के कारण), और अंदाजा लगाने के खेल का स्पष्टतया अभ्यास करना एक अच्छी बात थी, और अकेले ही अपनी बातें मानने के बजाय ठीक बात के पता लगने का अवसर मिले.
इसके बाद मैंने उसे सीटें बदलने के लिए कहा. मैं वो बनूँगा और फिर विपरीत क्रम में वैसा ही करूंगा. इसलिए मैं उदास, निरुत्साहित, असफल व्यक्ति की तरह महसूस करते हुए, और वो क्रोधित थी.
उसने अपने किरदार में यह नोट किया कि 'मैं अपने माता-पिता कि तरह हूं, भाषण देना, चिल्लाना, आलोचना करना, मुझे नीचा दिखाना, मुझ पर कर के दिखने के लिए दबाव डालना'.
यह लाभप्रद था क्योकि, फिर से इसने उसे अपने पहचाने हुए विरोधी भाग से बाहर निकाला, उसे इस चीज का कि क्या हो रहा था ज्यादा प्रायोगिक अनुभव दिया.
फिर मैंने उसे भर्ती की उपमा दी – जैसे कि उसने मुझे स्वयं पर गुस्सा करने के लिए भरती किया था, और यह मैंने इतनी सफलता से किया कि उसे एक मिनट सुनने के मुझे वास्तव में गुस्सा आ गया था. मैंने उसे कहा कि किसी स्तर पर मैं दूसरा पक्ष निभाने के लिए भी सहमत था, और यह मेरा निर्दयी पक्ष था जिससे मैं सहमत था.
मैंने उसे विस्तार से बताया कि यह दो व्यकित्यों का खेल था. उसने कहा – वास्तव में जब वह गुस्से वाला खेल खेल रही थी तो उस खेल ने उसे उस दवाब के बारे में याद दिलाया जो उसे उसके दादा-दादी से उसी तरीके से मिलता था.
इसलिये, वास्तव में उसका कार्यक्षेत्र इस तरह से संचालित होता था.
मैंने उसे दूसरी उपमा दी: एक पांडुलिपि, और इच्छुक खिलाड़ी की. उसे पांडुलिपि को अपने जीवन के हर क्षेत्र में दोहराना था. वो सहमत हो गई. इसने वो ढांचा बनाया जो कार्यक्षेत्र में हो रहा था, बजाय इसके कि इसे व्यक्तिगत तरीके से किया जाये (उसकी समस्या) और इस व्यावहारिक प्रक्रिया में उसके और उसके आसपास बार-बार होने वाले बलपूर्वक और निर्दयतापूर्ण अनुभव की प्रक्रृति.
फिर मैंने उससे कोई भी ऐसा मशहूर खेल, जिसके चरित्र उसके व्यक्तिगत कार्यक्षेत्र जैसे थे, चुनने के लिए कहा जिसे वह खेल चुकी थी. उसने एक खास नाटक का वर्णन किया जिसके चरित्र वैसे ही थे जिसे हमने सारी प्रक्रिया में जाहिर किया था.
फिर मैंने उससे किसी और कहानी का उदाहरण बताने के लिए कहा – कोई फ़िल्म या नाटक, जिसकी पांडुलिपि अलग हो. यहाँ मैं व्यापक रूप से देख रहा था, कार्यक्षेत्र के दूसरे साधनों कि तरफ, दूसरे तरीके से रहने वाले. उसने हैरी पोट्टर को चुना, और जब मैंने पूछा कि वो कौन सा चरित्र बनना चाहती थी, उसने कहा हैरी.
इसलिए मैंने उसे हैरी पोट्टर की तरह देखने को कहा. यह इसलिये था क्योकि जिस तरीके से उसने पीड़ित की सारी पांडुलिपि तैयार की थी – उसने मेरी तरफ एक ख़ास तरीके से देखा था.
उसने इस प्रयोग को आजमाया, और जैसे जैसे हम फ़िल्म में हैरी पोट्टर के स्वभाव को जांचते गये – उसकी न मारे जाने कि क्षमता, इत्यादि उसके रूप में उसमें ज्यादा मजबूती आती गई. उसे अपनी पहचान में एक बदलाव महसूस हुआ, और दूसरी तरफ मैंने उसका दूसरे रूप में अनुभव किया. इस प्रयोग को करने के लिये मुझे उसके साथ बहुत जिद्दी होना पड़ा, और इमानदारी की बात है कि सारे प्रयोग में मैंने संबंध के साथ काम किया, तरह तरह के प्रयोगों के साथ, जिनमें से सबसे आखिरी आधार का बदलाव था ... लेकिन उसमें उन सभी चीजों की आबश्यकता पड़ी जो पहले हुईं थीं
जैसे ही उसने अपनी चिंता बताई, मैं सावधान हो गया. उसने एक के बाद एक कहानी सुनाई, एक में से दूसरी निकलती हुई. वह रुआंसी हो रही थी, बेहोश सी हो रही थी, और मैं यह देख पा रहा था कि मुझे उसके साथ घंटो काम करना पड़ सकता था, बिना किसी नतीजे पर पहुंचे. उसने वो भी समस्याएं बताई जो उसे अपने घर से बाहर निकलेन के बाद अपने माता-पिता के साथ हो रहीं थी, उसे अपने माता-पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था, अपने पिता और उसकी मंशाओं पर उसे शक हो रहा था. स्पष्टत: वह सहायता के लिए बहुत उद्ग्विन थी, और उसकी उद्ग्विनता ने मुझे झंझोड़ दिया था, और मैंने पीछे हटना चाहते हुए भी स्वयं को प्रतिक्रिया करते हुए पाया.
इसलिए मैं यह जानता था कि मुझे सीधे उसके भीतर जाना था, और स्वयं को उसमें भागीदार बनाना था. मैंने कहा चलो हम असफलता से निपटते हैं; यह अभी हो रही है – तुम मेरे साथ पहले ही असफल हो रही हो – तुम्हारी शैली मुझ पर प्रभाव डाल रही है. उसने सिर हिलाया – वो जान चुकी थी कि मैंने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, निस्संदेह उसका जाना-पहचाना अनुभव था.
कोई अगर आत्म-विनाशकारी रूप से अपने को ताले में बंद रखे तो पहला कदम यह होगा कि हम उसकी कहानियां सुनने के बजाय पूर्ण रूप से उसे वर्तमान में ले आयें. और इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम यह देखे कि वह संबंधों में कैसे घुलता-मिलता है.
मैंने फिर उसे मेरे साथ एक छोटी सी गेम खेलने के लिए कहा. मैं चाहता था कि वो अंदाजा लगाये कि उसकी असफलता के बारे में मेरी क्या प्रतिक्रिया थी – हरेक दो अंदाजों के बाद मैं उसे बताऊंगा कि वो सही थी या नहीं.
उसने अंदाजा लगाया कि मैं अपना धैर्य न खोने के लिए पूरी कोशिश कर रहा था. मैंने कहा नहीं. उसने अंदाजा लगाया कि मुझे उसके साथ सहानुभूति महसूस हो रही थी. मैंने कहा नहीं.
मैंने उसे बताया कि मुझे उससे चिडचिडाहट हो रही थी.
फिर मैंने उसे ये अंदाजा लगाने के लिए कहा मुझे वह सब कैसा लग रहा था. उसने कहा मैं अपनी भावनाओं को दबा रहा था. मैंने कहा ये थोडा सा ही ठीक था. उसने अंदाजा लगाया कि मैं उसे अपने पेट और छाती में महसूस कर रहा था.
फिर मैंने उससे कहा कि वास्तव में मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मैं उसे अपनी छाती में एक अंदरूनी दबाव की तरह महसूस कर रहा था.
मैंने उसे वो प्रयोग करने के लिये कहा क्योंकि मैं उसे स्वयं पर दया करने के दलदल से और असफल-सूत्र के पिंजड़े से निकालना चाहता था. मैं उसे यह दिखाना चाहता था कि यह सह-रचित अनुभव था और वो ही एक अकेली नहीं थी जो पीड़ित थी. यह मेरे लिए भी भयंकर था. मैंने उसे भी यह करने को कहा, क्योकि वह स्पष्टत; पागल थी(अपने पिता के कारण), और अंदाजा लगाने के खेल का स्पष्टतया अभ्यास करना एक अच्छी बात थी, और अकेले ही अपनी बातें मानने के बजाय ठीक बात के पता लगने का अवसर मिले.
इसके बाद मैंने उसे सीटें बदलने के लिए कहा. मैं वो बनूँगा और फिर विपरीत क्रम में वैसा ही करूंगा. इसलिए मैं उदास, निरुत्साहित, असफल व्यक्ति की तरह महसूस करते हुए, और वो क्रोधित थी.
उसने अपने किरदार में यह नोट किया कि 'मैं अपने माता-पिता कि तरह हूं, भाषण देना, चिल्लाना, आलोचना करना, मुझे नीचा दिखाना, मुझ पर कर के दिखने के लिए दबाव डालना'.
यह लाभप्रद था क्योकि, फिर से इसने उसे अपने पहचाने हुए विरोधी भाग से बाहर निकाला, उसे इस चीज का कि क्या हो रहा था ज्यादा प्रायोगिक अनुभव दिया.
फिर मैंने उसे भर्ती की उपमा दी – जैसे कि उसने मुझे स्वयं पर गुस्सा करने के लिए भरती किया था, और यह मैंने इतनी सफलता से किया कि उसे एक मिनट सुनने के मुझे वास्तव में गुस्सा आ गया था. मैंने उसे कहा कि किसी स्तर पर मैं दूसरा पक्ष निभाने के लिए भी सहमत था, और यह मेरा निर्दयी पक्ष था जिससे मैं सहमत था.
मैंने उसे विस्तार से बताया कि यह दो व्यकित्यों का खेल था. उसने कहा – वास्तव में जब वह गुस्से वाला खेल खेल रही थी तो उस खेल ने उसे उस दवाब के बारे में याद दिलाया जो उसे उसके दादा-दादी से उसी तरीके से मिलता था.
इसलिये, वास्तव में उसका कार्यक्षेत्र इस तरह से संचालित होता था.
मैंने उसे दूसरी उपमा दी: एक पांडुलिपि, और इच्छुक खिलाड़ी की. उसे पांडुलिपि को अपने जीवन के हर क्षेत्र में दोहराना था. वो सहमत हो गई. इसने वो ढांचा बनाया जो कार्यक्षेत्र में हो रहा था, बजाय इसके कि इसे व्यक्तिगत तरीके से किया जाये (उसकी समस्या) और इस व्यावहारिक प्रक्रिया में उसके और उसके आसपास बार-बार होने वाले बलपूर्वक और निर्दयतापूर्ण अनुभव की प्रक्रृति.
फिर मैंने उससे कोई भी ऐसा मशहूर खेल, जिसके चरित्र उसके व्यक्तिगत कार्यक्षेत्र जैसे थे, चुनने के लिए कहा जिसे वह खेल चुकी थी. उसने एक खास नाटक का वर्णन किया जिसके चरित्र वैसे ही थे जिसे हमने सारी प्रक्रिया में जाहिर किया था.
फिर मैंने उससे किसी और कहानी का उदाहरण बताने के लिए कहा – कोई फ़िल्म या नाटक, जिसकी पांडुलिपि अलग हो. यहाँ मैं व्यापक रूप से देख रहा था, कार्यक्षेत्र के दूसरे साधनों कि तरफ, दूसरे तरीके से रहने वाले. उसने हैरी पोट्टर को चुना, और जब मैंने पूछा कि वो कौन सा चरित्र बनना चाहती थी, उसने कहा हैरी.
इसलिए मैंने उसे हैरी पोट्टर की तरह देखने को कहा. यह इसलिये था क्योकि जिस तरीके से उसने पीड़ित की सारी पांडुलिपि तैयार की थी – उसने मेरी तरफ एक ख़ास तरीके से देखा था.
उसने इस प्रयोग को आजमाया, और जैसे जैसे हम फ़िल्म में हैरी पोट्टर के स्वभाव को जांचते गये – उसकी न मारे जाने कि क्षमता, इत्यादि उसके रूप में उसमें ज्यादा मजबूती आती गई. उसे अपनी पहचान में एक बदलाव महसूस हुआ, और दूसरी तरफ मैंने उसका दूसरे रूप में अनुभव किया. इस प्रयोग को करने के लिये मुझे उसके साथ बहुत जिद्दी होना पड़ा, और इमानदारी की बात है कि सारे प्रयोग में मैंने संबंध के साथ काम किया, तरह तरह के प्रयोगों के साथ, जिनमें से सबसे आखिरी आधार का बदलाव था ... लेकिन उसमें उन सभी चीजों की आबश्यकता पड़ी जो पहले हुईं थीं
मंगलवार, 9 सितंबर 2014
Case #37 - 37. अत्याचार करने वाला भाा और रक्षा करने वाला भाला
मेरा अनुमान था कि सीलिया 30 और 40 वर्ष के बीच होगी, लेकिन वास्तव में वह 51 वर्ष की थी और उसके बच्चे भी थे. प्रशंसनीय यह था कि उसका जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा था, लेकिन वो शांत दिखती थी, और इसलिए वह नवयुवा का आभास देती थी. यह ऐसी चीजें थीं जिन पर काम करने के लिए मेरे पास समय नहीं था, हालांकि मैंने भविष्य के लिए इसे नोट कर लिया था. यह हमेशा ही महत्वपूर्ण रहता है कि तात्कालिक प्रभाव को पहचान लिया जाये, और जाने-पहचाने आसामियों को भी असंगतियों या चिकित्सा के लिए उनकी प्रासंगिक चीजों को नये तरीके से देखा जाना चाहिये.
जो मुद्दा वह ले कर आई थी वह इस बारे में था कि जिस विषय पर उसने प्रशिक्षण लिया था वह उस विषय पर काम करने से डर रही थी. वह एक समाजसेवी बनना चाहती थी, और अब जब उसके बच्चों ने घर छोड़ दिया था, यह उसका एक घोषित लक्ष्य था.
इसके बजाय कि मैं उसके आत्मविश्वास पर काम करूँ या फिर उसके डर का पता लगाऊं, मैं सन्दर्भ को जानना चाहता था – उसके आसपास के वातावरण का उसे ऐसा करने के लिए दिया जाने वाला समर्थन. यह कोई समस्या नहीं थी क्योकि उसे पेशेवर समाजसेवी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त था.
परन्तु उसके पति ने कहा कि अगर वो समाजसेवा का काम शुरू करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. यह एक बहुत ही तगड़ी प्रतिक्रिया थी, लेकिन पुरुष-प्रधान सभ्यता के चलते, जिसमें यह सत्र हो रहा था, यह चौंकाने वाली बात नहीं थी.
परन्तु जब मैंने आगे पूछा तो उसने बताया कि वह दशकों से घरेलू हिंसा के वातावरण में रह रही थी.
यह मुझे बड़ा अजीब लगा कि और उसकी समाज सेवा संबंधी आकाक्षाओं पर उसकी 10 साल की पढाई और चिकित्सा में या तो यह उभर कर नहीं आया या उसके शिक्षिकों ने किसी कारण से यह जिम्मेदारी नहीं समझी कि इससे भी निपटा जाये.
चिकित्सा में न केवल भावनाओं पर केन्द्रित होना महत्वपूर्ण है, लेकिन सन्दर्भ पर भी केन्द्रित होना आवश्यक है, विशेषतया तब जब सन्दर्भ वर्तमान में अत्याचार कर रहा हो. इसे चिकित्सा का केंद्रबिंदु रखना जरूरी है.
इसलिए मैं दूसरे मुद्दों से निपटने के लिए इच्छुक नहीं था, जब तक कि इसकी जड़ – उसके समझ में आने वाले डर को – खत्म न किया जाये. उसने बताया कि हिंसा होनी अभी हाल ही में बंद हुई थी.
मैंने उसके पास बैठ कर अपनी भावनाओं के बारे में बताया – खुले दिल से, मुद्दे के साथ गंभीरता से जुड़े रह कर, उसे समर्थन देना चाहते हुए, लेकिन बहुत सतर्कता और एक सम्मानपूर्ण तरीके से.
मैंने उसे बताया कि डर लगभग एक पारिवारिक सदस्य की तरह है. वह सहमत थी. मैंने उससे डर को एक पहचान देने के लिये कहा – उसने कहा कि एक आकार है जिसने काले कपडे पहने हुए हैं, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं, एक मुस्कराहट और भाले के साथ. उसने वर्णन दिया कि यह भयानक था.
मैंने उससे विस्तार से वर्णन करने को कहा – कपड़े कैसे दिखते थे. मैं वास्तव में उसे उसके डर के साथ जोड़ना चाहता था. फिर मैंने उसे गेस्टाल्ट प्रयोग में भाग लेने के लिये कहा – डर बनो – ये दिखाओ कि डर बड़ी आँखे लिये अपने भाले के साथ कैसे खड़ा था.
उसने ऐसा ही किया और मैंने भी उसके साथ ऐसा ही किया. कभी-कभी आसामियों के साथ ऐसे प्रयोग करना अच्छा होता है. फिर मैंने उसे दोबारा बैठने के लिये कहा – मैं वह प्रयोग ज्यादा समय के लिए नहीं करना चाहता था. वर्णन करना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी.
उसने कहा कि उसे लगता था कि इस प्रक्रिया में मैंने उसे बहुत कुछ दिया था, और वह और लेते हुए हिचकिचाहट महसूस कर रही थी – जैसे कि उसे मुझे कुछ वापिस करना था. उसने बताया कि उसे स्कूल में पढ़ाया गया था कि वह केवल आदमियों के लिए है, और हालांकि लड़की होते हुए उसने इसका विद्रोह किया था, यह उसकी मन:स्थिति का हिस्सा था.
इसलिये, मैंने इस स्थिति को स्वीकारा और रुक गया. मैंने कहा, 'ठीक है, तो फिर तुम मुझे क्या देना चाहोगी; मैं लेने के लिए तैयार हूं'. हम वहा चुपचाप बैठे रहे, और फिर उसने कहा कि वह मुझे मैंने जो कुछ किया था उसके लिये अपनी प्रशंसा देना चाहती थी.
यह कहने के बाद उसने मेरे साथ दोबारा आगे बढने के लिए स्वयं को सुरक्षित महसूस किया. आसामी के साथ क्या हो रहा है, उसके हर क्षण को सुनना और उनकी लय के साथ उन्ही जगहों पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है.
मैंने उससे पूछा कि डर कहाँ था – उसने उत्तर दिया कि उसके अंदर. उसने कहा कि इसका भाला उसके दिमाग में चुभ कर दर्द कर रहा है.
मैं अब उसके साथ सीधे सम्बधात्मक विधा में चला गया. मैंने उसे बताया कि मुझे उसके दर्द से बहुत दुःख हो रहा था, बहुत दुःख. मैं उसे सुरक्षा देने के लिए बचाना चाहता था लेकिन जानता नहीं था कि कैसे किया जाये.
वह बहुत ज्यादा द्रवित हो गई और हम कुछ समय के लिए चुपचाप बैठे रहे. यह एक मुख्य बदलाव था – कोई जो उसकी परवाह करे, जो उसके साथ हो सके, सुरक्षात्मक रूप में, फिर चीजों को ठीक करने में जल्दबाजी न करे.
यह 'मेरा-तुम्हारा' क्षण था, दो व्यक्ति पूरे सम्पर्क में. मैं चिकित्सक था और वह आसामी थी, लेकिन उस जगह हम दो व्यक्ति थे, एक दूसरे के साथ बैठे हुए, और स्थिति के गहरे दर्द के साथ. मैंने उसकी पीड़ा को गंभीरता से लिया – सिर्फ एक आनंद देने वाला प्रयोग नहीं, केवल एक डर का आकर नहीं, बहुत से दशकों का हिंसा का डर.
उस जगह पर बैठे हुए हम दोनों के दिल खुल चुके थे. मैं बहुत गहराई तक द्रवित हो गया था, और वह भी. हम दोनों ने यही कहा.
फिर मैंने कहा – मेरे पास भी एक भाला है, यह सुरक्षा का भाला है. मैंने उससे अपने भाले के साथ अपने दिल के अन्दर लेने को कहा.
वह इसे आसानी से कर पाई, और उसके आंसू निकल आये. वह सुरक्षित महसूस कर रही थी जिसकी परवाह की जाती हो.
इसे कहा जाता है कि स्वयं की वस्तु जिसे अपने अंदर लिया गया हो . इसका अर्थ है कि उसके अंदर एक आधिकारिक आकार है जो उसके लिये है, जैसे कि उसका पिछला अनुभव था एक प्राधिकारी जो उसके अंदर बढ़ रहा था वह दबाने वाला था और उससे यह उम्मीद की जाती थी वह अपने जीवन में आदमियों के लिए थी. हालांकि चिकित्सा में कुछ ज्यादा नहीं हुआ था, इसका बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा था. अंत में मैंने उससे पूछा कि अपने पेशे में जाने के लिए उसका डर अब कहाँ था. उसने कहा कि उसे नहीं लगता कि उसे अब धमकाया जा रहा था.
अब यह काम का वो भाग है जिसमें संबंधों पर चिकित्सा जारी रहनी चाहिए, और एक मुद्दत की हिंसा के बाद इससे निपटा जा रहा है . मैं इसको सतर्कता पूर्वक देखता रहना चाहूँगा, क्योकि यह अभी भी संभव है कि हिंसा फिर से शुरू हो जाये, और एक पेशेवर की तरह, और साथ ही साथ एक ध्यान रखने वाले व्यक्ति कि तरह, मैं यह निश्चित करना चाहूँगा कि मैं किसी भी रूप में इसका भागीदार न बनूँ.
जो मुद्दा वह ले कर आई थी वह इस बारे में था कि जिस विषय पर उसने प्रशिक्षण लिया था वह उस विषय पर काम करने से डर रही थी. वह एक समाजसेवी बनना चाहती थी, और अब जब उसके बच्चों ने घर छोड़ दिया था, यह उसका एक घोषित लक्ष्य था.
इसके बजाय कि मैं उसके आत्मविश्वास पर काम करूँ या फिर उसके डर का पता लगाऊं, मैं सन्दर्भ को जानना चाहता था – उसके आसपास के वातावरण का उसे ऐसा करने के लिए दिया जाने वाला समर्थन. यह कोई समस्या नहीं थी क्योकि उसे पेशेवर समाजसेवी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त था.
परन्तु उसके पति ने कहा कि अगर वो समाजसेवा का काम शुरू करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. यह एक बहुत ही तगड़ी प्रतिक्रिया थी, लेकिन पुरुष-प्रधान सभ्यता के चलते, जिसमें यह सत्र हो रहा था, यह चौंकाने वाली बात नहीं थी.
परन्तु जब मैंने आगे पूछा तो उसने बताया कि वह दशकों से घरेलू हिंसा के वातावरण में रह रही थी.
यह मुझे बड़ा अजीब लगा कि और उसकी समाज सेवा संबंधी आकाक्षाओं पर उसकी 10 साल की पढाई और चिकित्सा में या तो यह उभर कर नहीं आया या उसके शिक्षिकों ने किसी कारण से यह जिम्मेदारी नहीं समझी कि इससे भी निपटा जाये.
चिकित्सा में न केवल भावनाओं पर केन्द्रित होना महत्वपूर्ण है, लेकिन सन्दर्भ पर भी केन्द्रित होना आवश्यक है, विशेषतया तब जब सन्दर्भ वर्तमान में अत्याचार कर रहा हो. इसे चिकित्सा का केंद्रबिंदु रखना जरूरी है.
इसलिए मैं दूसरे मुद्दों से निपटने के लिए इच्छुक नहीं था, जब तक कि इसकी जड़ – उसके समझ में आने वाले डर को – खत्म न किया जाये. उसने बताया कि हिंसा होनी अभी हाल ही में बंद हुई थी.
मैंने उसके पास बैठ कर अपनी भावनाओं के बारे में बताया – खुले दिल से, मुद्दे के साथ गंभीरता से जुड़े रह कर, उसे समर्थन देना चाहते हुए, लेकिन बहुत सतर्कता और एक सम्मानपूर्ण तरीके से.
मैंने उसे बताया कि डर लगभग एक पारिवारिक सदस्य की तरह है. वह सहमत थी. मैंने उससे डर को एक पहचान देने के लिये कहा – उसने कहा कि एक आकार है जिसने काले कपडे पहने हुए हैं, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं, एक मुस्कराहट और भाले के साथ. उसने वर्णन दिया कि यह भयानक था.
मैंने उससे विस्तार से वर्णन करने को कहा – कपड़े कैसे दिखते थे. मैं वास्तव में उसे उसके डर के साथ जोड़ना चाहता था. फिर मैंने उसे गेस्टाल्ट प्रयोग में भाग लेने के लिये कहा – डर बनो – ये दिखाओ कि डर बड़ी आँखे लिये अपने भाले के साथ कैसे खड़ा था.
उसने ऐसा ही किया और मैंने भी उसके साथ ऐसा ही किया. कभी-कभी आसामियों के साथ ऐसे प्रयोग करना अच्छा होता है. फिर मैंने उसे दोबारा बैठने के लिये कहा – मैं वह प्रयोग ज्यादा समय के लिए नहीं करना चाहता था. वर्णन करना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी.
उसने कहा कि उसे लगता था कि इस प्रक्रिया में मैंने उसे बहुत कुछ दिया था, और वह और लेते हुए हिचकिचाहट महसूस कर रही थी – जैसे कि उसे मुझे कुछ वापिस करना था. उसने बताया कि उसे स्कूल में पढ़ाया गया था कि वह केवल आदमियों के लिए है, और हालांकि लड़की होते हुए उसने इसका विद्रोह किया था, यह उसकी मन:स्थिति का हिस्सा था.
इसलिये, मैंने इस स्थिति को स्वीकारा और रुक गया. मैंने कहा, 'ठीक है, तो फिर तुम मुझे क्या देना चाहोगी; मैं लेने के लिए तैयार हूं'. हम वहा चुपचाप बैठे रहे, और फिर उसने कहा कि वह मुझे मैंने जो कुछ किया था उसके लिये अपनी प्रशंसा देना चाहती थी.
यह कहने के बाद उसने मेरे साथ दोबारा आगे बढने के लिए स्वयं को सुरक्षित महसूस किया. आसामी के साथ क्या हो रहा है, उसके हर क्षण को सुनना और उनकी लय के साथ उन्ही जगहों पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है.
मैंने उससे पूछा कि डर कहाँ था – उसने उत्तर दिया कि उसके अंदर. उसने कहा कि इसका भाला उसके दिमाग में चुभ कर दर्द कर रहा है.
मैं अब उसके साथ सीधे सम्बधात्मक विधा में चला गया. मैंने उसे बताया कि मुझे उसके दर्द से बहुत दुःख हो रहा था, बहुत दुःख. मैं उसे सुरक्षा देने के लिए बचाना चाहता था लेकिन जानता नहीं था कि कैसे किया जाये.
वह बहुत ज्यादा द्रवित हो गई और हम कुछ समय के लिए चुपचाप बैठे रहे. यह एक मुख्य बदलाव था – कोई जो उसकी परवाह करे, जो उसके साथ हो सके, सुरक्षात्मक रूप में, फिर चीजों को ठीक करने में जल्दबाजी न करे.
यह 'मेरा-तुम्हारा' क्षण था, दो व्यक्ति पूरे सम्पर्क में. मैं चिकित्सक था और वह आसामी थी, लेकिन उस जगह हम दो व्यक्ति थे, एक दूसरे के साथ बैठे हुए, और स्थिति के गहरे दर्द के साथ. मैंने उसकी पीड़ा को गंभीरता से लिया – सिर्फ एक आनंद देने वाला प्रयोग नहीं, केवल एक डर का आकर नहीं, बहुत से दशकों का हिंसा का डर.
उस जगह पर बैठे हुए हम दोनों के दिल खुल चुके थे. मैं बहुत गहराई तक द्रवित हो गया था, और वह भी. हम दोनों ने यही कहा.
फिर मैंने कहा – मेरे पास भी एक भाला है, यह सुरक्षा का भाला है. मैंने उससे अपने भाले के साथ अपने दिल के अन्दर लेने को कहा.
वह इसे आसानी से कर पाई, और उसके आंसू निकल आये. वह सुरक्षित महसूस कर रही थी जिसकी परवाह की जाती हो.
इसे कहा जाता है कि स्वयं की वस्तु जिसे अपने अंदर लिया गया हो . इसका अर्थ है कि उसके अंदर एक आधिकारिक आकार है जो उसके लिये है, जैसे कि उसका पिछला अनुभव था एक प्राधिकारी जो उसके अंदर बढ़ रहा था वह दबाने वाला था और उससे यह उम्मीद की जाती थी वह अपने जीवन में आदमियों के लिए थी. हालांकि चिकित्सा में कुछ ज्यादा नहीं हुआ था, इसका बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा था. अंत में मैंने उससे पूछा कि अपने पेशे में जाने के लिए उसका डर अब कहाँ था. उसने कहा कि उसे नहीं लगता कि उसे अब धमकाया जा रहा था.
अब यह काम का वो भाग है जिसमें संबंधों पर चिकित्सा जारी रहनी चाहिए, और एक मुद्दत की हिंसा के बाद इससे निपटा जा रहा है . मैं इसको सतर्कता पूर्वक देखता रहना चाहूँगा, क्योकि यह अभी भी संभव है कि हिंसा फिर से शुरू हो जाये, और एक पेशेवर की तरह, और साथ ही साथ एक ध्यान रखने वाले व्यक्ति कि तरह, मैं यह निश्चित करना चाहूँगा कि मैं किसी भी रूप में इसका भागीदार न बनूँ.
शुक्रवार, 5 सितंबर 2014
Case #36 - 36. औरत जिसे कुछ महसूस नहीं होता था
ब्रेन्डा ने बताया कि उसकी अपनी कोई पहचान नहीं थी – वह स्वयं को भूल चुकी थी और दूसरों की पहचान के साथ अपनी पहचान को कुछ ज्यादा ही जोडती थी.
उसने यह भी बताया कि वह शर्मीली थी, अपनी फोटो खिंचवाना या चकाचौंध में आना पसंद नहीं करती थी.
यह संभल कर और नाजुकता से आगे बढ़ने के लक्षण थे, और शर्म के संभावित मुद्दों के बारे में जानकारी होना (अनावरण संबंधी) आवश्यक था .
मैंने उसे बताया कि मैं उससे उतना ही पुछूगा जितना उसको ठीक लगे.
मैंने उससे कहा कि हम लोगों के समूह के सामने थे, और पूछा कि वह कैसा लग रहा था. उसने कहा कि वो उसको देख रहे थे, लेकिन उसको ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई उसको देख रहा था. मैंने पूछा कि क्या वो इस कारण से था कि वे लोग उसको ज्यादा नहीं जानते थे या इसलियें कि वह नजरें चुरा रही थी. उसने कहा, दोनों ही.
इसने मुझे संबंधो की क्रियाशीलता का ढांचा बनाने में सहायता की. इसलियें, मैं दोबारा उसकी तरफ मुखातिब हुआ और उसको देखने लगा, लेकिन वो मुझसे भी नजर चुरा रही थी. उसने कहा, हाँ. वह सभी के साथ ऐसा ही करती थी.
निस्संदेह यह संबंधों में रुकावट लाता था – देखे जाने कि इच्छा का उसका एक पक्ष, लेकिन दूसरा पक्ष इसकी इजाजत नहीं देता था. यह एक चेतावनी थी कि मुझे संभल कर आगे बढ़ना था, नहीं तो मैं खुद परेशान हो जाऊँगा और इस चक्रव्यूह में फंस जाऊँगा.
इसलिये, उससे ज्यादा पूछताछ करने के बजाय मैंने उसे वही चीजें कहीं जो उसने अपने बारे में मुझे बताई थीं – अपनी व्यक्तिगत जानकारी जो उसने मुझसे सांझा कि थी. मैंने उसे वो भी बताया जो मैंने देखा था, जैसे कि जो कपडे उसने पहन रखे थे उनका रंग.
इसने हमारे बीच उससे बिना कुछ और पूछे एक भूमिका तैयार की, जिससे यह पता चलता था कि वह जो कुछ मुझे उपलब्ध करा रही थी या बता रही थी, मैं उसे ग्रहण कर रहा था. शर्म के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि अपनी भी कोई बात बताई जाये, बजाय इसके कि दूसरे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही पूछा जाये.
तब भी, उसकी आँखें भावहीन थीं और उसने बताया कि वह बह रही थी. इसका अर्थ था कि सम्पर्क बहुत अधिक था. मैंने उससे पूछा कि वह किस ओर बह रही थी....उसने कहा कि अनगिनत संसारों में, पिछले जीवन में.
इसका ये अर्थ था कि सम्पर्क टूट रहा था, इसलिए सुरक्षा का मुद्दा यहाँ मुख्य था.
मैंने ये प्रस्ताव दिया कि वो वास्तव में स्वप्निल अवस्था में जा सकती थी, और मैं भी ऐसा ही कर सकता था, और मैं ग्रुप में सभी को स्वप्निल अवस्था में आने के लिए कहूंगा और हम सब सपने में एक साथ बैठ सकते थे.
इस प्रस्ताव ने उसके आवेग को बढ़ाया, और उस तरफ जाने के लिए और प्रोत्साहित किया. गेस्टाल्ट में इसे मिथ्याभास बदलाब का सिद्धांत कहा जाता है – जो कुछ है उसी में प्रवेश करना.
उसने कहा, उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था.
दूसरे शब्दों में पूरी तरह से उसका सम्पर्क खत्म हो चुका था. इस स्थान पर एक विशेष तरह का सम्पर्क ही उपलब्ध है.
मैंने उससे पूछा कि सुरक्षित महसूस करने के लिए उसे किस तरह के समर्थन कि आवयश्कता थी. उसने कहा मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई देखे.
इसलिये, मैंने उससे कहा कि मैं उसकी तरफ न देख कर दूसरी तरफ देखूगा, लेकिन साथ ही साथ मैंने उसे अपनी उदासी के बारे में भी बताया – कि क्योकि मैं उसकी तरफ विल्कुल नहीं देखूंगा, और देखने की कोशिश भी नहीं करूंगा, उसका छुपना सम्पूर्ण होगा. मैंने उससे कहा कि मुझे उसकी तरफ खिंचाव महसूस हो रहा था, लेकिन उस तक पहुँचने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था.
ब्रेन्डा ने मेरी तरफ देखा और कहा कि उसे सहायता की आवश्यकता नहीं थी.
यह रहस्योदघाटन था जो यह बताता था कि मुझे आगे कैसे बढ़ना था.
मैंने उसे एक प्रयोग का प्रस्ताव दिया – वो अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर रखे – एक हाथ पीछे धकेलते हुए और दूसरा हाथ खुला हुआ जो सहायता लेने के लिए तैयार था.
हमने ऐसा ही किया और फिर वो मेरी सहायता ले पाई – मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके खुले हाथ कि तरफ बढ़ाया और उसे पकड लिया.
फिर उसने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो उसे महसूस न करने के लिए कहती है. मैंने किसी को अपने सामने उस शक्ति को प्रतीक के रूप में खड़े होने के लिए कहा. वो नहीं जानना चाहती थी कि वो नुमाइंदा किस चीज के लिए था.
इसलिए मैंने उसको उस शक्ति से एक व्यक्तव्य कहने के लिए कहा. उसने कहा 'मैं तुम्हारी बात तब सुनूंगी जब वह मेरे लिए किसी काम की हो, अन्यथा मैं अपनी सहायता खुद कर लूँगी'.
यह व्यक्तव्य विभेदन और एकीकरण का था.
वह अब महसूस कर सकती थी, सहायता ले सकती थी, संबंध बना सकती थी, उस जगह पर देखी जा सकती थी और अब उसे विकल्प तय करने का ज्ञान भी था.
यह काम बहुत आहिस्ता था, मुझे हर समय उसकी सीमाओं का मान रखना था, ज्यादा विस्तार से नहीं पूछना था, वो भी जो वह महसूस कर रही थी...फिर भी हार नहीं माननी थी. सामान्यतया, लोग उसी को प्रतिक्रिया दिखाते हैं जो ऐसी गोपनीयता की सीमाएं स्थापित करते हैं – या तो पीछे हट कर या फिर असंबद्ध तरीके से मिल कर, या फिर उस व्यक्ति में रूचि ले कर या द्याभावना से काबू पा कर. इसमें तटस्थ उपस्थिति, काफी स्नेह, लेकिन बहुत अधिक नहीं, के साथ – इसे अनुकूलन कहते हैं, और यह एक मूलभूत निपुणता है.
उसने यह भी बताया कि वह शर्मीली थी, अपनी फोटो खिंचवाना या चकाचौंध में आना पसंद नहीं करती थी.
यह संभल कर और नाजुकता से आगे बढ़ने के लक्षण थे, और शर्म के संभावित मुद्दों के बारे में जानकारी होना (अनावरण संबंधी) आवश्यक था .
मैंने उसे बताया कि मैं उससे उतना ही पुछूगा जितना उसको ठीक लगे.
मैंने उससे कहा कि हम लोगों के समूह के सामने थे, और पूछा कि वह कैसा लग रहा था. उसने कहा कि वो उसको देख रहे थे, लेकिन उसको ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई उसको देख रहा था. मैंने पूछा कि क्या वो इस कारण से था कि वे लोग उसको ज्यादा नहीं जानते थे या इसलियें कि वह नजरें चुरा रही थी. उसने कहा, दोनों ही.
इसने मुझे संबंधो की क्रियाशीलता का ढांचा बनाने में सहायता की. इसलियें, मैं दोबारा उसकी तरफ मुखातिब हुआ और उसको देखने लगा, लेकिन वो मुझसे भी नजर चुरा रही थी. उसने कहा, हाँ. वह सभी के साथ ऐसा ही करती थी.
निस्संदेह यह संबंधों में रुकावट लाता था – देखे जाने कि इच्छा का उसका एक पक्ष, लेकिन दूसरा पक्ष इसकी इजाजत नहीं देता था. यह एक चेतावनी थी कि मुझे संभल कर आगे बढ़ना था, नहीं तो मैं खुद परेशान हो जाऊँगा और इस चक्रव्यूह में फंस जाऊँगा.
इसलिये, उससे ज्यादा पूछताछ करने के बजाय मैंने उसे वही चीजें कहीं जो उसने अपने बारे में मुझे बताई थीं – अपनी व्यक्तिगत जानकारी जो उसने मुझसे सांझा कि थी. मैंने उसे वो भी बताया जो मैंने देखा था, जैसे कि जो कपडे उसने पहन रखे थे उनका रंग.
इसने हमारे बीच उससे बिना कुछ और पूछे एक भूमिका तैयार की, जिससे यह पता चलता था कि वह जो कुछ मुझे उपलब्ध करा रही थी या बता रही थी, मैं उसे ग्रहण कर रहा था. शर्म के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि अपनी भी कोई बात बताई जाये, बजाय इसके कि दूसरे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही पूछा जाये.
तब भी, उसकी आँखें भावहीन थीं और उसने बताया कि वह बह रही थी. इसका अर्थ था कि सम्पर्क बहुत अधिक था. मैंने उससे पूछा कि वह किस ओर बह रही थी....उसने कहा कि अनगिनत संसारों में, पिछले जीवन में.
इसका ये अर्थ था कि सम्पर्क टूट रहा था, इसलिए सुरक्षा का मुद्दा यहाँ मुख्य था.
मैंने ये प्रस्ताव दिया कि वो वास्तव में स्वप्निल अवस्था में जा सकती थी, और मैं भी ऐसा ही कर सकता था, और मैं ग्रुप में सभी को स्वप्निल अवस्था में आने के लिए कहूंगा और हम सब सपने में एक साथ बैठ सकते थे.
इस प्रस्ताव ने उसके आवेग को बढ़ाया, और उस तरफ जाने के लिए और प्रोत्साहित किया. गेस्टाल्ट में इसे मिथ्याभास बदलाब का सिद्धांत कहा जाता है – जो कुछ है उसी में प्रवेश करना.
उसने कहा, उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था.
दूसरे शब्दों में पूरी तरह से उसका सम्पर्क खत्म हो चुका था. इस स्थान पर एक विशेष तरह का सम्पर्क ही उपलब्ध है.
मैंने उससे पूछा कि सुरक्षित महसूस करने के लिए उसे किस तरह के समर्थन कि आवयश्कता थी. उसने कहा मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई देखे.
इसलिये, मैंने उससे कहा कि मैं उसकी तरफ न देख कर दूसरी तरफ देखूगा, लेकिन साथ ही साथ मैंने उसे अपनी उदासी के बारे में भी बताया – कि क्योकि मैं उसकी तरफ विल्कुल नहीं देखूंगा, और देखने की कोशिश भी नहीं करूंगा, उसका छुपना सम्पूर्ण होगा. मैंने उससे कहा कि मुझे उसकी तरफ खिंचाव महसूस हो रहा था, लेकिन उस तक पहुँचने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था.
ब्रेन्डा ने मेरी तरफ देखा और कहा कि उसे सहायता की आवश्यकता नहीं थी.
यह रहस्योदघाटन था जो यह बताता था कि मुझे आगे कैसे बढ़ना था.
मैंने उसे एक प्रयोग का प्रस्ताव दिया – वो अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर रखे – एक हाथ पीछे धकेलते हुए और दूसरा हाथ खुला हुआ जो सहायता लेने के लिए तैयार था.
हमने ऐसा ही किया और फिर वो मेरी सहायता ले पाई – मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके खुले हाथ कि तरफ बढ़ाया और उसे पकड लिया.
फिर उसने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो उसे महसूस न करने के लिए कहती है. मैंने किसी को अपने सामने उस शक्ति को प्रतीक के रूप में खड़े होने के लिए कहा. वो नहीं जानना चाहती थी कि वो नुमाइंदा किस चीज के लिए था.
इसलिए मैंने उसको उस शक्ति से एक व्यक्तव्य कहने के लिए कहा. उसने कहा 'मैं तुम्हारी बात तब सुनूंगी जब वह मेरे लिए किसी काम की हो, अन्यथा मैं अपनी सहायता खुद कर लूँगी'.
यह व्यक्तव्य विभेदन और एकीकरण का था.
वह अब महसूस कर सकती थी, सहायता ले सकती थी, संबंध बना सकती थी, उस जगह पर देखी जा सकती थी और अब उसे विकल्प तय करने का ज्ञान भी था.
यह काम बहुत आहिस्ता था, मुझे हर समय उसकी सीमाओं का मान रखना था, ज्यादा विस्तार से नहीं पूछना था, वो भी जो वह महसूस कर रही थी...फिर भी हार नहीं माननी थी. सामान्यतया, लोग उसी को प्रतिक्रिया दिखाते हैं जो ऐसी गोपनीयता की सीमाएं स्थापित करते हैं – या तो पीछे हट कर या फिर असंबद्ध तरीके से मिल कर, या फिर उस व्यक्ति में रूचि ले कर या द्याभावना से काबू पा कर. इसमें तटस्थ उपस्थिति, काफी स्नेह, लेकिन बहुत अधिक नहीं, के साथ – इसे अनुकूलन कहते हैं, और यह एक मूलभूत निपुणता है.
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