सोमवार, 22 सितंबर 2014
Case #38 - 38. औरत जो असफल हो गई
जेम्मा की चिंता असफलता थी. वह हरेक चीज में असफल रहती थी – एक कम्पनी के लिये काम करते हुए उसकी पांच दुर्घटनाएँ हो चुकी थी, दूसरी कम्पनी के लिए काम करते हुए उससे कम्प्यूटर पर गलतियाँ हुई थी, इत्यादि . उसे महसूस होता था कि वह जीवन में असफल थी.
जैसे ही उसने अपनी चिंता बताई, मैं सावधान हो गया. उसने एक के बाद एक कहानी सुनाई, एक में से दूसरी निकलती हुई. वह रुआंसी हो रही थी, बेहोश सी हो रही थी, और मैं यह देख पा रहा था कि मुझे उसके साथ घंटो काम करना पड़ सकता था, बिना किसी नतीजे पर पहुंचे. उसने वो भी समस्याएं बताई जो उसे अपने घर से बाहर निकलेन के बाद अपने माता-पिता के साथ हो रहीं थी, उसे अपने माता-पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था, अपने पिता और उसकी मंशाओं पर उसे शक हो रहा था. स्पष्टत: वह सहायता के लिए बहुत उद्ग्विन थी, और उसकी उद्ग्विनता ने मुझे झंझोड़ दिया था, और मैंने पीछे हटना चाहते हुए भी स्वयं को प्रतिक्रिया करते हुए पाया.
इसलिए मैं यह जानता था कि मुझे सीधे उसके भीतर जाना था, और स्वयं को उसमें भागीदार बनाना था. मैंने कहा चलो हम असफलता से निपटते हैं; यह अभी हो रही है – तुम मेरे साथ पहले ही असफल हो रही हो – तुम्हारी शैली मुझ पर प्रभाव डाल रही है. उसने सिर हिलाया – वो जान चुकी थी कि मैंने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, निस्संदेह उसका जाना-पहचाना अनुभव था.
कोई अगर आत्म-विनाशकारी रूप से अपने को ताले में बंद रखे तो पहला कदम यह होगा कि हम उसकी कहानियां सुनने के बजाय पूर्ण रूप से उसे वर्तमान में ले आयें. और इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम यह देखे कि वह संबंधों में कैसे घुलता-मिलता है.
मैंने फिर उसे मेरे साथ एक छोटी सी गेम खेलने के लिए कहा. मैं चाहता था कि वो अंदाजा लगाये कि उसकी असफलता के बारे में मेरी क्या प्रतिक्रिया थी – हरेक दो अंदाजों के बाद मैं उसे बताऊंगा कि वो सही थी या नहीं.
उसने अंदाजा लगाया कि मैं अपना धैर्य न खोने के लिए पूरी कोशिश कर रहा था. मैंने कहा नहीं. उसने अंदाजा लगाया कि मुझे उसके साथ सहानुभूति महसूस हो रही थी. मैंने कहा नहीं.
मैंने उसे बताया कि मुझे उससे चिडचिडाहट हो रही थी.
फिर मैंने उसे ये अंदाजा लगाने के लिए कहा मुझे वह सब कैसा लग रहा था. उसने कहा मैं अपनी भावनाओं को दबा रहा था. मैंने कहा ये थोडा सा ही ठीक था. उसने अंदाजा लगाया कि मैं उसे अपने पेट और छाती में महसूस कर रहा था.
फिर मैंने उससे कहा कि वास्तव में मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मैं उसे अपनी छाती में एक अंदरूनी दबाव की तरह महसूस कर रहा था.
मैंने उसे वो प्रयोग करने के लिये कहा क्योंकि मैं उसे स्वयं पर दया करने के दलदल से और असफल-सूत्र के पिंजड़े से निकालना चाहता था. मैं उसे यह दिखाना चाहता था कि यह सह-रचित अनुभव था और वो ही एक अकेली नहीं थी जो पीड़ित थी. यह मेरे लिए भी भयंकर था. मैंने उसे भी यह करने को कहा, क्योकि वह स्पष्टत; पागल थी(अपने पिता के कारण), और अंदाजा लगाने के खेल का स्पष्टतया अभ्यास करना एक अच्छी बात थी, और अकेले ही अपनी बातें मानने के बजाय ठीक बात के पता लगने का अवसर मिले.
इसके बाद मैंने उसे सीटें बदलने के लिए कहा. मैं वो बनूँगा और फिर विपरीत क्रम में वैसा ही करूंगा. इसलिए मैं उदास, निरुत्साहित, असफल व्यक्ति की तरह महसूस करते हुए, और वो क्रोधित थी.
उसने अपने किरदार में यह नोट किया कि 'मैं अपने माता-पिता कि तरह हूं, भाषण देना, चिल्लाना, आलोचना करना, मुझे नीचा दिखाना, मुझ पर कर के दिखने के लिए दबाव डालना'.
यह लाभप्रद था क्योकि, फिर से इसने उसे अपने पहचाने हुए विरोधी भाग से बाहर निकाला, उसे इस चीज का कि क्या हो रहा था ज्यादा प्रायोगिक अनुभव दिया.
फिर मैंने उसे भर्ती की उपमा दी – जैसे कि उसने मुझे स्वयं पर गुस्सा करने के लिए भरती किया था, और यह मैंने इतनी सफलता से किया कि उसे एक मिनट सुनने के मुझे वास्तव में गुस्सा आ गया था. मैंने उसे कहा कि किसी स्तर पर मैं दूसरा पक्ष निभाने के लिए भी सहमत था, और यह मेरा निर्दयी पक्ष था जिससे मैं सहमत था.
मैंने उसे विस्तार से बताया कि यह दो व्यकित्यों का खेल था. उसने कहा – वास्तव में जब वह गुस्से वाला खेल खेल रही थी तो उस खेल ने उसे उस दवाब के बारे में याद दिलाया जो उसे उसके दादा-दादी से उसी तरीके से मिलता था.
इसलिये, वास्तव में उसका कार्यक्षेत्र इस तरह से संचालित होता था.
मैंने उसे दूसरी उपमा दी: एक पांडुलिपि, और इच्छुक खिलाड़ी की. उसे पांडुलिपि को अपने जीवन के हर क्षेत्र में दोहराना था. वो सहमत हो गई. इसने वो ढांचा बनाया जो कार्यक्षेत्र में हो रहा था, बजाय इसके कि इसे व्यक्तिगत तरीके से किया जाये (उसकी समस्या) और इस व्यावहारिक प्रक्रिया में उसके और उसके आसपास बार-बार होने वाले बलपूर्वक और निर्दयतापूर्ण अनुभव की प्रक्रृति.
फिर मैंने उससे कोई भी ऐसा मशहूर खेल, जिसके चरित्र उसके व्यक्तिगत कार्यक्षेत्र जैसे थे, चुनने के लिए कहा जिसे वह खेल चुकी थी. उसने एक खास नाटक का वर्णन किया जिसके चरित्र वैसे ही थे जिसे हमने सारी प्रक्रिया में जाहिर किया था.
फिर मैंने उससे किसी और कहानी का उदाहरण बताने के लिए कहा – कोई फ़िल्म या नाटक, जिसकी पांडुलिपि अलग हो. यहाँ मैं व्यापक रूप से देख रहा था, कार्यक्षेत्र के दूसरे साधनों कि तरफ, दूसरे तरीके से रहने वाले. उसने हैरी पोट्टर को चुना, और जब मैंने पूछा कि वो कौन सा चरित्र बनना चाहती थी, उसने कहा हैरी.
इसलिए मैंने उसे हैरी पोट्टर की तरह देखने को कहा. यह इसलिये था क्योकि जिस तरीके से उसने पीड़ित की सारी पांडुलिपि तैयार की थी – उसने मेरी तरफ एक ख़ास तरीके से देखा था.
उसने इस प्रयोग को आजमाया, और जैसे जैसे हम फ़िल्म में हैरी पोट्टर के स्वभाव को जांचते गये – उसकी न मारे जाने कि क्षमता, इत्यादि उसके रूप में उसमें ज्यादा मजबूती आती गई. उसे अपनी पहचान में एक बदलाव महसूस हुआ, और दूसरी तरफ मैंने उसका दूसरे रूप में अनुभव किया. इस प्रयोग को करने के लिये मुझे उसके साथ बहुत जिद्दी होना पड़ा, और इमानदारी की बात है कि सारे प्रयोग में मैंने संबंध के साथ काम किया, तरह तरह के प्रयोगों के साथ, जिनमें से सबसे आखिरी आधार का बदलाव था ... लेकिन उसमें उन सभी चीजों की आबश्यकता पड़ी जो पहले हुईं थीं
जैसे ही उसने अपनी चिंता बताई, मैं सावधान हो गया. उसने एक के बाद एक कहानी सुनाई, एक में से दूसरी निकलती हुई. वह रुआंसी हो रही थी, बेहोश सी हो रही थी, और मैं यह देख पा रहा था कि मुझे उसके साथ घंटो काम करना पड़ सकता था, बिना किसी नतीजे पर पहुंचे. उसने वो भी समस्याएं बताई जो उसे अपने घर से बाहर निकलेन के बाद अपने माता-पिता के साथ हो रहीं थी, उसे अपने माता-पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था, अपने पिता और उसकी मंशाओं पर उसे शक हो रहा था. स्पष्टत: वह सहायता के लिए बहुत उद्ग्विन थी, और उसकी उद्ग्विनता ने मुझे झंझोड़ दिया था, और मैंने पीछे हटना चाहते हुए भी स्वयं को प्रतिक्रिया करते हुए पाया.
इसलिए मैं यह जानता था कि मुझे सीधे उसके भीतर जाना था, और स्वयं को उसमें भागीदार बनाना था. मैंने कहा चलो हम असफलता से निपटते हैं; यह अभी हो रही है – तुम मेरे साथ पहले ही असफल हो रही हो – तुम्हारी शैली मुझ पर प्रभाव डाल रही है. उसने सिर हिलाया – वो जान चुकी थी कि मैंने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, निस्संदेह उसका जाना-पहचाना अनुभव था.
कोई अगर आत्म-विनाशकारी रूप से अपने को ताले में बंद रखे तो पहला कदम यह होगा कि हम उसकी कहानियां सुनने के बजाय पूर्ण रूप से उसे वर्तमान में ले आयें. और इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम यह देखे कि वह संबंधों में कैसे घुलता-मिलता है.
मैंने फिर उसे मेरे साथ एक छोटी सी गेम खेलने के लिए कहा. मैं चाहता था कि वो अंदाजा लगाये कि उसकी असफलता के बारे में मेरी क्या प्रतिक्रिया थी – हरेक दो अंदाजों के बाद मैं उसे बताऊंगा कि वो सही थी या नहीं.
उसने अंदाजा लगाया कि मैं अपना धैर्य न खोने के लिए पूरी कोशिश कर रहा था. मैंने कहा नहीं. उसने अंदाजा लगाया कि मुझे उसके साथ सहानुभूति महसूस हो रही थी. मैंने कहा नहीं.
मैंने उसे बताया कि मुझे उससे चिडचिडाहट हो रही थी.
फिर मैंने उसे ये अंदाजा लगाने के लिए कहा मुझे वह सब कैसा लग रहा था. उसने कहा मैं अपनी भावनाओं को दबा रहा था. मैंने कहा ये थोडा सा ही ठीक था. उसने अंदाजा लगाया कि मैं उसे अपने पेट और छाती में महसूस कर रहा था.
फिर मैंने उससे कहा कि वास्तव में मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मैं उसे अपनी छाती में एक अंदरूनी दबाव की तरह महसूस कर रहा था.
मैंने उसे वो प्रयोग करने के लिये कहा क्योंकि मैं उसे स्वयं पर दया करने के दलदल से और असफल-सूत्र के पिंजड़े से निकालना चाहता था. मैं उसे यह दिखाना चाहता था कि यह सह-रचित अनुभव था और वो ही एक अकेली नहीं थी जो पीड़ित थी. यह मेरे लिए भी भयंकर था. मैंने उसे भी यह करने को कहा, क्योकि वह स्पष्टत; पागल थी(अपने पिता के कारण), और अंदाजा लगाने के खेल का स्पष्टतया अभ्यास करना एक अच्छी बात थी, और अकेले ही अपनी बातें मानने के बजाय ठीक बात के पता लगने का अवसर मिले.
इसके बाद मैंने उसे सीटें बदलने के लिए कहा. मैं वो बनूँगा और फिर विपरीत क्रम में वैसा ही करूंगा. इसलिए मैं उदास, निरुत्साहित, असफल व्यक्ति की तरह महसूस करते हुए, और वो क्रोधित थी.
उसने अपने किरदार में यह नोट किया कि 'मैं अपने माता-पिता कि तरह हूं, भाषण देना, चिल्लाना, आलोचना करना, मुझे नीचा दिखाना, मुझ पर कर के दिखने के लिए दबाव डालना'.
यह लाभप्रद था क्योकि, फिर से इसने उसे अपने पहचाने हुए विरोधी भाग से बाहर निकाला, उसे इस चीज का कि क्या हो रहा था ज्यादा प्रायोगिक अनुभव दिया.
फिर मैंने उसे भर्ती की उपमा दी – जैसे कि उसने मुझे स्वयं पर गुस्सा करने के लिए भरती किया था, और यह मैंने इतनी सफलता से किया कि उसे एक मिनट सुनने के मुझे वास्तव में गुस्सा आ गया था. मैंने उसे कहा कि किसी स्तर पर मैं दूसरा पक्ष निभाने के लिए भी सहमत था, और यह मेरा निर्दयी पक्ष था जिससे मैं सहमत था.
मैंने उसे विस्तार से बताया कि यह दो व्यकित्यों का खेल था. उसने कहा – वास्तव में जब वह गुस्से वाला खेल खेल रही थी तो उस खेल ने उसे उस दवाब के बारे में याद दिलाया जो उसे उसके दादा-दादी से उसी तरीके से मिलता था.
इसलिये, वास्तव में उसका कार्यक्षेत्र इस तरह से संचालित होता था.
मैंने उसे दूसरी उपमा दी: एक पांडुलिपि, और इच्छुक खिलाड़ी की. उसे पांडुलिपि को अपने जीवन के हर क्षेत्र में दोहराना था. वो सहमत हो गई. इसने वो ढांचा बनाया जो कार्यक्षेत्र में हो रहा था, बजाय इसके कि इसे व्यक्तिगत तरीके से किया जाये (उसकी समस्या) और इस व्यावहारिक प्रक्रिया में उसके और उसके आसपास बार-बार होने वाले बलपूर्वक और निर्दयतापूर्ण अनुभव की प्रक्रृति.
फिर मैंने उससे कोई भी ऐसा मशहूर खेल, जिसके चरित्र उसके व्यक्तिगत कार्यक्षेत्र जैसे थे, चुनने के लिए कहा जिसे वह खेल चुकी थी. उसने एक खास नाटक का वर्णन किया जिसके चरित्र वैसे ही थे जिसे हमने सारी प्रक्रिया में जाहिर किया था.
फिर मैंने उससे किसी और कहानी का उदाहरण बताने के लिए कहा – कोई फ़िल्म या नाटक, जिसकी पांडुलिपि अलग हो. यहाँ मैं व्यापक रूप से देख रहा था, कार्यक्षेत्र के दूसरे साधनों कि तरफ, दूसरे तरीके से रहने वाले. उसने हैरी पोट्टर को चुना, और जब मैंने पूछा कि वो कौन सा चरित्र बनना चाहती थी, उसने कहा हैरी.
इसलिए मैंने उसे हैरी पोट्टर की तरह देखने को कहा. यह इसलिये था क्योकि जिस तरीके से उसने पीड़ित की सारी पांडुलिपि तैयार की थी – उसने मेरी तरफ एक ख़ास तरीके से देखा था.
उसने इस प्रयोग को आजमाया, और जैसे जैसे हम फ़िल्म में हैरी पोट्टर के स्वभाव को जांचते गये – उसकी न मारे जाने कि क्षमता, इत्यादि उसके रूप में उसमें ज्यादा मजबूती आती गई. उसे अपनी पहचान में एक बदलाव महसूस हुआ, और दूसरी तरफ मैंने उसका दूसरे रूप में अनुभव किया. इस प्रयोग को करने के लिये मुझे उसके साथ बहुत जिद्दी होना पड़ा, और इमानदारी की बात है कि सारे प्रयोग में मैंने संबंध के साथ काम किया, तरह तरह के प्रयोगों के साथ, जिनमें से सबसे आखिरी आधार का बदलाव था ... लेकिन उसमें उन सभी चीजों की आबश्यकता पड़ी जो पहले हुईं थीं
मंगलवार, 9 सितंबर 2014
Case #37 - 37. अत्याचार करने वाला भाा और रक्षा करने वाला भाला
मेरा अनुमान था कि सीलिया 30 और 40 वर्ष के बीच होगी, लेकिन वास्तव में वह 51 वर्ष की थी और उसके बच्चे भी थे. प्रशंसनीय यह था कि उसका जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा था, लेकिन वो शांत दिखती थी, और इसलिए वह नवयुवा का आभास देती थी. यह ऐसी चीजें थीं जिन पर काम करने के लिए मेरे पास समय नहीं था, हालांकि मैंने भविष्य के लिए इसे नोट कर लिया था. यह हमेशा ही महत्वपूर्ण रहता है कि तात्कालिक प्रभाव को पहचान लिया जाये, और जाने-पहचाने आसामियों को भी असंगतियों या चिकित्सा के लिए उनकी प्रासंगिक चीजों को नये तरीके से देखा जाना चाहिये.
जो मुद्दा वह ले कर आई थी वह इस बारे में था कि जिस विषय पर उसने प्रशिक्षण लिया था वह उस विषय पर काम करने से डर रही थी. वह एक समाजसेवी बनना चाहती थी, और अब जब उसके बच्चों ने घर छोड़ दिया था, यह उसका एक घोषित लक्ष्य था.
इसके बजाय कि मैं उसके आत्मविश्वास पर काम करूँ या फिर उसके डर का पता लगाऊं, मैं सन्दर्भ को जानना चाहता था – उसके आसपास के वातावरण का उसे ऐसा करने के लिए दिया जाने वाला समर्थन. यह कोई समस्या नहीं थी क्योकि उसे पेशेवर समाजसेवी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त था.
परन्तु उसके पति ने कहा कि अगर वो समाजसेवा का काम शुरू करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. यह एक बहुत ही तगड़ी प्रतिक्रिया थी, लेकिन पुरुष-प्रधान सभ्यता के चलते, जिसमें यह सत्र हो रहा था, यह चौंकाने वाली बात नहीं थी.
परन्तु जब मैंने आगे पूछा तो उसने बताया कि वह दशकों से घरेलू हिंसा के वातावरण में रह रही थी.
यह मुझे बड़ा अजीब लगा कि और उसकी समाज सेवा संबंधी आकाक्षाओं पर उसकी 10 साल की पढाई और चिकित्सा में या तो यह उभर कर नहीं आया या उसके शिक्षिकों ने किसी कारण से यह जिम्मेदारी नहीं समझी कि इससे भी निपटा जाये.
चिकित्सा में न केवल भावनाओं पर केन्द्रित होना महत्वपूर्ण है, लेकिन सन्दर्भ पर भी केन्द्रित होना आवश्यक है, विशेषतया तब जब सन्दर्भ वर्तमान में अत्याचार कर रहा हो. इसे चिकित्सा का केंद्रबिंदु रखना जरूरी है.
इसलिए मैं दूसरे मुद्दों से निपटने के लिए इच्छुक नहीं था, जब तक कि इसकी जड़ – उसके समझ में आने वाले डर को – खत्म न किया जाये. उसने बताया कि हिंसा होनी अभी हाल ही में बंद हुई थी.
मैंने उसके पास बैठ कर अपनी भावनाओं के बारे में बताया – खुले दिल से, मुद्दे के साथ गंभीरता से जुड़े रह कर, उसे समर्थन देना चाहते हुए, लेकिन बहुत सतर्कता और एक सम्मानपूर्ण तरीके से.
मैंने उसे बताया कि डर लगभग एक पारिवारिक सदस्य की तरह है. वह सहमत थी. मैंने उससे डर को एक पहचान देने के लिये कहा – उसने कहा कि एक आकार है जिसने काले कपडे पहने हुए हैं, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं, एक मुस्कराहट और भाले के साथ. उसने वर्णन दिया कि यह भयानक था.
मैंने उससे विस्तार से वर्णन करने को कहा – कपड़े कैसे दिखते थे. मैं वास्तव में उसे उसके डर के साथ जोड़ना चाहता था. फिर मैंने उसे गेस्टाल्ट प्रयोग में भाग लेने के लिये कहा – डर बनो – ये दिखाओ कि डर बड़ी आँखे लिये अपने भाले के साथ कैसे खड़ा था.
उसने ऐसा ही किया और मैंने भी उसके साथ ऐसा ही किया. कभी-कभी आसामियों के साथ ऐसे प्रयोग करना अच्छा होता है. फिर मैंने उसे दोबारा बैठने के लिये कहा – मैं वह प्रयोग ज्यादा समय के लिए नहीं करना चाहता था. वर्णन करना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी.
उसने कहा कि उसे लगता था कि इस प्रक्रिया में मैंने उसे बहुत कुछ दिया था, और वह और लेते हुए हिचकिचाहट महसूस कर रही थी – जैसे कि उसे मुझे कुछ वापिस करना था. उसने बताया कि उसे स्कूल में पढ़ाया गया था कि वह केवल आदमियों के लिए है, और हालांकि लड़की होते हुए उसने इसका विद्रोह किया था, यह उसकी मन:स्थिति का हिस्सा था.
इसलिये, मैंने इस स्थिति को स्वीकारा और रुक गया. मैंने कहा, 'ठीक है, तो फिर तुम मुझे क्या देना चाहोगी; मैं लेने के लिए तैयार हूं'. हम वहा चुपचाप बैठे रहे, और फिर उसने कहा कि वह मुझे मैंने जो कुछ किया था उसके लिये अपनी प्रशंसा देना चाहती थी.
यह कहने के बाद उसने मेरे साथ दोबारा आगे बढने के लिए स्वयं को सुरक्षित महसूस किया. आसामी के साथ क्या हो रहा है, उसके हर क्षण को सुनना और उनकी लय के साथ उन्ही जगहों पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है.
मैंने उससे पूछा कि डर कहाँ था – उसने उत्तर दिया कि उसके अंदर. उसने कहा कि इसका भाला उसके दिमाग में चुभ कर दर्द कर रहा है.
मैं अब उसके साथ सीधे सम्बधात्मक विधा में चला गया. मैंने उसे बताया कि मुझे उसके दर्द से बहुत दुःख हो रहा था, बहुत दुःख. मैं उसे सुरक्षा देने के लिए बचाना चाहता था लेकिन जानता नहीं था कि कैसे किया जाये.
वह बहुत ज्यादा द्रवित हो गई और हम कुछ समय के लिए चुपचाप बैठे रहे. यह एक मुख्य बदलाव था – कोई जो उसकी परवाह करे, जो उसके साथ हो सके, सुरक्षात्मक रूप में, फिर चीजों को ठीक करने में जल्दबाजी न करे.
यह 'मेरा-तुम्हारा' क्षण था, दो व्यक्ति पूरे सम्पर्क में. मैं चिकित्सक था और वह आसामी थी, लेकिन उस जगह हम दो व्यक्ति थे, एक दूसरे के साथ बैठे हुए, और स्थिति के गहरे दर्द के साथ. मैंने उसकी पीड़ा को गंभीरता से लिया – सिर्फ एक आनंद देने वाला प्रयोग नहीं, केवल एक डर का आकर नहीं, बहुत से दशकों का हिंसा का डर.
उस जगह पर बैठे हुए हम दोनों के दिल खुल चुके थे. मैं बहुत गहराई तक द्रवित हो गया था, और वह भी. हम दोनों ने यही कहा.
फिर मैंने कहा – मेरे पास भी एक भाला है, यह सुरक्षा का भाला है. मैंने उससे अपने भाले के साथ अपने दिल के अन्दर लेने को कहा.
वह इसे आसानी से कर पाई, और उसके आंसू निकल आये. वह सुरक्षित महसूस कर रही थी जिसकी परवाह की जाती हो.
इसे कहा जाता है कि स्वयं की वस्तु जिसे अपने अंदर लिया गया हो . इसका अर्थ है कि उसके अंदर एक आधिकारिक आकार है जो उसके लिये है, जैसे कि उसका पिछला अनुभव था एक प्राधिकारी जो उसके अंदर बढ़ रहा था वह दबाने वाला था और उससे यह उम्मीद की जाती थी वह अपने जीवन में आदमियों के लिए थी. हालांकि चिकित्सा में कुछ ज्यादा नहीं हुआ था, इसका बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा था. अंत में मैंने उससे पूछा कि अपने पेशे में जाने के लिए उसका डर अब कहाँ था. उसने कहा कि उसे नहीं लगता कि उसे अब धमकाया जा रहा था.
अब यह काम का वो भाग है जिसमें संबंधों पर चिकित्सा जारी रहनी चाहिए, और एक मुद्दत की हिंसा के बाद इससे निपटा जा रहा है . मैं इसको सतर्कता पूर्वक देखता रहना चाहूँगा, क्योकि यह अभी भी संभव है कि हिंसा फिर से शुरू हो जाये, और एक पेशेवर की तरह, और साथ ही साथ एक ध्यान रखने वाले व्यक्ति कि तरह, मैं यह निश्चित करना चाहूँगा कि मैं किसी भी रूप में इसका भागीदार न बनूँ.
जो मुद्दा वह ले कर आई थी वह इस बारे में था कि जिस विषय पर उसने प्रशिक्षण लिया था वह उस विषय पर काम करने से डर रही थी. वह एक समाजसेवी बनना चाहती थी, और अब जब उसके बच्चों ने घर छोड़ दिया था, यह उसका एक घोषित लक्ष्य था.
इसके बजाय कि मैं उसके आत्मविश्वास पर काम करूँ या फिर उसके डर का पता लगाऊं, मैं सन्दर्भ को जानना चाहता था – उसके आसपास के वातावरण का उसे ऐसा करने के लिए दिया जाने वाला समर्थन. यह कोई समस्या नहीं थी क्योकि उसे पेशेवर समाजसेवी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त था.
परन्तु उसके पति ने कहा कि अगर वो समाजसेवा का काम शुरू करती है तो वह उसे तलाक दे देगा. यह एक बहुत ही तगड़ी प्रतिक्रिया थी, लेकिन पुरुष-प्रधान सभ्यता के चलते, जिसमें यह सत्र हो रहा था, यह चौंकाने वाली बात नहीं थी.
परन्तु जब मैंने आगे पूछा तो उसने बताया कि वह दशकों से घरेलू हिंसा के वातावरण में रह रही थी.
यह मुझे बड़ा अजीब लगा कि और उसकी समाज सेवा संबंधी आकाक्षाओं पर उसकी 10 साल की पढाई और चिकित्सा में या तो यह उभर कर नहीं आया या उसके शिक्षिकों ने किसी कारण से यह जिम्मेदारी नहीं समझी कि इससे भी निपटा जाये.
चिकित्सा में न केवल भावनाओं पर केन्द्रित होना महत्वपूर्ण है, लेकिन सन्दर्भ पर भी केन्द्रित होना आवश्यक है, विशेषतया तब जब सन्दर्भ वर्तमान में अत्याचार कर रहा हो. इसे चिकित्सा का केंद्रबिंदु रखना जरूरी है.
इसलिए मैं दूसरे मुद्दों से निपटने के लिए इच्छुक नहीं था, जब तक कि इसकी जड़ – उसके समझ में आने वाले डर को – खत्म न किया जाये. उसने बताया कि हिंसा होनी अभी हाल ही में बंद हुई थी.
मैंने उसके पास बैठ कर अपनी भावनाओं के बारे में बताया – खुले दिल से, मुद्दे के साथ गंभीरता से जुड़े रह कर, उसे समर्थन देना चाहते हुए, लेकिन बहुत सतर्कता और एक सम्मानपूर्ण तरीके से.
मैंने उसे बताया कि डर लगभग एक पारिवारिक सदस्य की तरह है. वह सहमत थी. मैंने उससे डर को एक पहचान देने के लिये कहा – उसने कहा कि एक आकार है जिसने काले कपडे पहने हुए हैं, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं, एक मुस्कराहट और भाले के साथ. उसने वर्णन दिया कि यह भयानक था.
मैंने उससे विस्तार से वर्णन करने को कहा – कपड़े कैसे दिखते थे. मैं वास्तव में उसे उसके डर के साथ जोड़ना चाहता था. फिर मैंने उसे गेस्टाल्ट प्रयोग में भाग लेने के लिये कहा – डर बनो – ये दिखाओ कि डर बड़ी आँखे लिये अपने भाले के साथ कैसे खड़ा था.
उसने ऐसा ही किया और मैंने भी उसके साथ ऐसा ही किया. कभी-कभी आसामियों के साथ ऐसे प्रयोग करना अच्छा होता है. फिर मैंने उसे दोबारा बैठने के लिये कहा – मैं वह प्रयोग ज्यादा समय के लिए नहीं करना चाहता था. वर्णन करना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी.
उसने कहा कि उसे लगता था कि इस प्रक्रिया में मैंने उसे बहुत कुछ दिया था, और वह और लेते हुए हिचकिचाहट महसूस कर रही थी – जैसे कि उसे मुझे कुछ वापिस करना था. उसने बताया कि उसे स्कूल में पढ़ाया गया था कि वह केवल आदमियों के लिए है, और हालांकि लड़की होते हुए उसने इसका विद्रोह किया था, यह उसकी मन:स्थिति का हिस्सा था.
इसलिये, मैंने इस स्थिति को स्वीकारा और रुक गया. मैंने कहा, 'ठीक है, तो फिर तुम मुझे क्या देना चाहोगी; मैं लेने के लिए तैयार हूं'. हम वहा चुपचाप बैठे रहे, और फिर उसने कहा कि वह मुझे मैंने जो कुछ किया था उसके लिये अपनी प्रशंसा देना चाहती थी.
यह कहने के बाद उसने मेरे साथ दोबारा आगे बढने के लिए स्वयं को सुरक्षित महसूस किया. आसामी के साथ क्या हो रहा है, उसके हर क्षण को सुनना और उनकी लय के साथ उन्ही जगहों पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है.
मैंने उससे पूछा कि डर कहाँ था – उसने उत्तर दिया कि उसके अंदर. उसने कहा कि इसका भाला उसके दिमाग में चुभ कर दर्द कर रहा है.
मैं अब उसके साथ सीधे सम्बधात्मक विधा में चला गया. मैंने उसे बताया कि मुझे उसके दर्द से बहुत दुःख हो रहा था, बहुत दुःख. मैं उसे सुरक्षा देने के लिए बचाना चाहता था लेकिन जानता नहीं था कि कैसे किया जाये.
वह बहुत ज्यादा द्रवित हो गई और हम कुछ समय के लिए चुपचाप बैठे रहे. यह एक मुख्य बदलाव था – कोई जो उसकी परवाह करे, जो उसके साथ हो सके, सुरक्षात्मक रूप में, फिर चीजों को ठीक करने में जल्दबाजी न करे.
यह 'मेरा-तुम्हारा' क्षण था, दो व्यक्ति पूरे सम्पर्क में. मैं चिकित्सक था और वह आसामी थी, लेकिन उस जगह हम दो व्यक्ति थे, एक दूसरे के साथ बैठे हुए, और स्थिति के गहरे दर्द के साथ. मैंने उसकी पीड़ा को गंभीरता से लिया – सिर्फ एक आनंद देने वाला प्रयोग नहीं, केवल एक डर का आकर नहीं, बहुत से दशकों का हिंसा का डर.
उस जगह पर बैठे हुए हम दोनों के दिल खुल चुके थे. मैं बहुत गहराई तक द्रवित हो गया था, और वह भी. हम दोनों ने यही कहा.
फिर मैंने कहा – मेरे पास भी एक भाला है, यह सुरक्षा का भाला है. मैंने उससे अपने भाले के साथ अपने दिल के अन्दर लेने को कहा.
वह इसे आसानी से कर पाई, और उसके आंसू निकल आये. वह सुरक्षित महसूस कर रही थी जिसकी परवाह की जाती हो.
इसे कहा जाता है कि स्वयं की वस्तु जिसे अपने अंदर लिया गया हो . इसका अर्थ है कि उसके अंदर एक आधिकारिक आकार है जो उसके लिये है, जैसे कि उसका पिछला अनुभव था एक प्राधिकारी जो उसके अंदर बढ़ रहा था वह दबाने वाला था और उससे यह उम्मीद की जाती थी वह अपने जीवन में आदमियों के लिए थी. हालांकि चिकित्सा में कुछ ज्यादा नहीं हुआ था, इसका बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा था. अंत में मैंने उससे पूछा कि अपने पेशे में जाने के लिए उसका डर अब कहाँ था. उसने कहा कि उसे नहीं लगता कि उसे अब धमकाया जा रहा था.
अब यह काम का वो भाग है जिसमें संबंधों पर चिकित्सा जारी रहनी चाहिए, और एक मुद्दत की हिंसा के बाद इससे निपटा जा रहा है . मैं इसको सतर्कता पूर्वक देखता रहना चाहूँगा, क्योकि यह अभी भी संभव है कि हिंसा फिर से शुरू हो जाये, और एक पेशेवर की तरह, और साथ ही साथ एक ध्यान रखने वाले व्यक्ति कि तरह, मैं यह निश्चित करना चाहूँगा कि मैं किसी भी रूप में इसका भागीदार न बनूँ.
शुक्रवार, 5 सितंबर 2014
Case #36 - 36. औरत जिसे कुछ महसूस नहीं होता था
ब्रेन्डा ने बताया कि उसकी अपनी कोई पहचान नहीं थी – वह स्वयं को भूल चुकी थी और दूसरों की पहचान के साथ अपनी पहचान को कुछ ज्यादा ही जोडती थी.
उसने यह भी बताया कि वह शर्मीली थी, अपनी फोटो खिंचवाना या चकाचौंध में आना पसंद नहीं करती थी.
यह संभल कर और नाजुकता से आगे बढ़ने के लक्षण थे, और शर्म के संभावित मुद्दों के बारे में जानकारी होना (अनावरण संबंधी) आवश्यक था .
मैंने उसे बताया कि मैं उससे उतना ही पुछूगा जितना उसको ठीक लगे.
मैंने उससे कहा कि हम लोगों के समूह के सामने थे, और पूछा कि वह कैसा लग रहा था. उसने कहा कि वो उसको देख रहे थे, लेकिन उसको ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई उसको देख रहा था. मैंने पूछा कि क्या वो इस कारण से था कि वे लोग उसको ज्यादा नहीं जानते थे या इसलियें कि वह नजरें चुरा रही थी. उसने कहा, दोनों ही.
इसने मुझे संबंधो की क्रियाशीलता का ढांचा बनाने में सहायता की. इसलियें, मैं दोबारा उसकी तरफ मुखातिब हुआ और उसको देखने लगा, लेकिन वो मुझसे भी नजर चुरा रही थी. उसने कहा, हाँ. वह सभी के साथ ऐसा ही करती थी.
निस्संदेह यह संबंधों में रुकावट लाता था – देखे जाने कि इच्छा का उसका एक पक्ष, लेकिन दूसरा पक्ष इसकी इजाजत नहीं देता था. यह एक चेतावनी थी कि मुझे संभल कर आगे बढ़ना था, नहीं तो मैं खुद परेशान हो जाऊँगा और इस चक्रव्यूह में फंस जाऊँगा.
इसलिये, उससे ज्यादा पूछताछ करने के बजाय मैंने उसे वही चीजें कहीं जो उसने अपने बारे में मुझे बताई थीं – अपनी व्यक्तिगत जानकारी जो उसने मुझसे सांझा कि थी. मैंने उसे वो भी बताया जो मैंने देखा था, जैसे कि जो कपडे उसने पहन रखे थे उनका रंग.
इसने हमारे बीच उससे बिना कुछ और पूछे एक भूमिका तैयार की, जिससे यह पता चलता था कि वह जो कुछ मुझे उपलब्ध करा रही थी या बता रही थी, मैं उसे ग्रहण कर रहा था. शर्म के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि अपनी भी कोई बात बताई जाये, बजाय इसके कि दूसरे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही पूछा जाये.
तब भी, उसकी आँखें भावहीन थीं और उसने बताया कि वह बह रही थी. इसका अर्थ था कि सम्पर्क बहुत अधिक था. मैंने उससे पूछा कि वह किस ओर बह रही थी....उसने कहा कि अनगिनत संसारों में, पिछले जीवन में.
इसका ये अर्थ था कि सम्पर्क टूट रहा था, इसलिए सुरक्षा का मुद्दा यहाँ मुख्य था.
मैंने ये प्रस्ताव दिया कि वो वास्तव में स्वप्निल अवस्था में जा सकती थी, और मैं भी ऐसा ही कर सकता था, और मैं ग्रुप में सभी को स्वप्निल अवस्था में आने के लिए कहूंगा और हम सब सपने में एक साथ बैठ सकते थे.
इस प्रस्ताव ने उसके आवेग को बढ़ाया, और उस तरफ जाने के लिए और प्रोत्साहित किया. गेस्टाल्ट में इसे मिथ्याभास बदलाब का सिद्धांत कहा जाता है – जो कुछ है उसी में प्रवेश करना.
उसने कहा, उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था.
दूसरे शब्दों में पूरी तरह से उसका सम्पर्क खत्म हो चुका था. इस स्थान पर एक विशेष तरह का सम्पर्क ही उपलब्ध है.
मैंने उससे पूछा कि सुरक्षित महसूस करने के लिए उसे किस तरह के समर्थन कि आवयश्कता थी. उसने कहा मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई देखे.
इसलिये, मैंने उससे कहा कि मैं उसकी तरफ न देख कर दूसरी तरफ देखूगा, लेकिन साथ ही साथ मैंने उसे अपनी उदासी के बारे में भी बताया – कि क्योकि मैं उसकी तरफ विल्कुल नहीं देखूंगा, और देखने की कोशिश भी नहीं करूंगा, उसका छुपना सम्पूर्ण होगा. मैंने उससे कहा कि मुझे उसकी तरफ खिंचाव महसूस हो रहा था, लेकिन उस तक पहुँचने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था.
ब्रेन्डा ने मेरी तरफ देखा और कहा कि उसे सहायता की आवश्यकता नहीं थी.
यह रहस्योदघाटन था जो यह बताता था कि मुझे आगे कैसे बढ़ना था.
मैंने उसे एक प्रयोग का प्रस्ताव दिया – वो अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर रखे – एक हाथ पीछे धकेलते हुए और दूसरा हाथ खुला हुआ जो सहायता लेने के लिए तैयार था.
हमने ऐसा ही किया और फिर वो मेरी सहायता ले पाई – मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके खुले हाथ कि तरफ बढ़ाया और उसे पकड लिया.
फिर उसने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो उसे महसूस न करने के लिए कहती है. मैंने किसी को अपने सामने उस शक्ति को प्रतीक के रूप में खड़े होने के लिए कहा. वो नहीं जानना चाहती थी कि वो नुमाइंदा किस चीज के लिए था.
इसलिए मैंने उसको उस शक्ति से एक व्यक्तव्य कहने के लिए कहा. उसने कहा 'मैं तुम्हारी बात तब सुनूंगी जब वह मेरे लिए किसी काम की हो, अन्यथा मैं अपनी सहायता खुद कर लूँगी'.
यह व्यक्तव्य विभेदन और एकीकरण का था.
वह अब महसूस कर सकती थी, सहायता ले सकती थी, संबंध बना सकती थी, उस जगह पर देखी जा सकती थी और अब उसे विकल्प तय करने का ज्ञान भी था.
यह काम बहुत आहिस्ता था, मुझे हर समय उसकी सीमाओं का मान रखना था, ज्यादा विस्तार से नहीं पूछना था, वो भी जो वह महसूस कर रही थी...फिर भी हार नहीं माननी थी. सामान्यतया, लोग उसी को प्रतिक्रिया दिखाते हैं जो ऐसी गोपनीयता की सीमाएं स्थापित करते हैं – या तो पीछे हट कर या फिर असंबद्ध तरीके से मिल कर, या फिर उस व्यक्ति में रूचि ले कर या द्याभावना से काबू पा कर. इसमें तटस्थ उपस्थिति, काफी स्नेह, लेकिन बहुत अधिक नहीं, के साथ – इसे अनुकूलन कहते हैं, और यह एक मूलभूत निपुणता है.
उसने यह भी बताया कि वह शर्मीली थी, अपनी फोटो खिंचवाना या चकाचौंध में आना पसंद नहीं करती थी.
यह संभल कर और नाजुकता से आगे बढ़ने के लक्षण थे, और शर्म के संभावित मुद्दों के बारे में जानकारी होना (अनावरण संबंधी) आवश्यक था .
मैंने उसे बताया कि मैं उससे उतना ही पुछूगा जितना उसको ठीक लगे.
मैंने उससे कहा कि हम लोगों के समूह के सामने थे, और पूछा कि वह कैसा लग रहा था. उसने कहा कि वो उसको देख रहे थे, लेकिन उसको ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई उसको देख रहा था. मैंने पूछा कि क्या वो इस कारण से था कि वे लोग उसको ज्यादा नहीं जानते थे या इसलियें कि वह नजरें चुरा रही थी. उसने कहा, दोनों ही.
इसने मुझे संबंधो की क्रियाशीलता का ढांचा बनाने में सहायता की. इसलियें, मैं दोबारा उसकी तरफ मुखातिब हुआ और उसको देखने लगा, लेकिन वो मुझसे भी नजर चुरा रही थी. उसने कहा, हाँ. वह सभी के साथ ऐसा ही करती थी.
निस्संदेह यह संबंधों में रुकावट लाता था – देखे जाने कि इच्छा का उसका एक पक्ष, लेकिन दूसरा पक्ष इसकी इजाजत नहीं देता था. यह एक चेतावनी थी कि मुझे संभल कर आगे बढ़ना था, नहीं तो मैं खुद परेशान हो जाऊँगा और इस चक्रव्यूह में फंस जाऊँगा.
इसलिये, उससे ज्यादा पूछताछ करने के बजाय मैंने उसे वही चीजें कहीं जो उसने अपने बारे में मुझे बताई थीं – अपनी व्यक्तिगत जानकारी जो उसने मुझसे सांझा कि थी. मैंने उसे वो भी बताया जो मैंने देखा था, जैसे कि जो कपडे उसने पहन रखे थे उनका रंग.
इसने हमारे बीच उससे बिना कुछ और पूछे एक भूमिका तैयार की, जिससे यह पता चलता था कि वह जो कुछ मुझे उपलब्ध करा रही थी या बता रही थी, मैं उसे ग्रहण कर रहा था. शर्म के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि अपनी भी कोई बात बताई जाये, बजाय इसके कि दूसरे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही पूछा जाये.
तब भी, उसकी आँखें भावहीन थीं और उसने बताया कि वह बह रही थी. इसका अर्थ था कि सम्पर्क बहुत अधिक था. मैंने उससे पूछा कि वह किस ओर बह रही थी....उसने कहा कि अनगिनत संसारों में, पिछले जीवन में.
इसका ये अर्थ था कि सम्पर्क टूट रहा था, इसलिए सुरक्षा का मुद्दा यहाँ मुख्य था.
मैंने ये प्रस्ताव दिया कि वो वास्तव में स्वप्निल अवस्था में जा सकती थी, और मैं भी ऐसा ही कर सकता था, और मैं ग्रुप में सभी को स्वप्निल अवस्था में आने के लिए कहूंगा और हम सब सपने में एक साथ बैठ सकते थे.
इस प्रस्ताव ने उसके आवेग को बढ़ाया, और उस तरफ जाने के लिए और प्रोत्साहित किया. गेस्टाल्ट में इसे मिथ्याभास बदलाब का सिद्धांत कहा जाता है – जो कुछ है उसी में प्रवेश करना.
उसने कहा, उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था.
दूसरे शब्दों में पूरी तरह से उसका सम्पर्क खत्म हो चुका था. इस स्थान पर एक विशेष तरह का सम्पर्क ही उपलब्ध है.
मैंने उससे पूछा कि सुरक्षित महसूस करने के लिए उसे किस तरह के समर्थन कि आवयश्कता थी. उसने कहा मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई देखे.
इसलिये, मैंने उससे कहा कि मैं उसकी तरफ न देख कर दूसरी तरफ देखूगा, लेकिन साथ ही साथ मैंने उसे अपनी उदासी के बारे में भी बताया – कि क्योकि मैं उसकी तरफ विल्कुल नहीं देखूंगा, और देखने की कोशिश भी नहीं करूंगा, उसका छुपना सम्पूर्ण होगा. मैंने उससे कहा कि मुझे उसकी तरफ खिंचाव महसूस हो रहा था, लेकिन उस तक पहुँचने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था.
ब्रेन्डा ने मेरी तरफ देखा और कहा कि उसे सहायता की आवश्यकता नहीं थी.
यह रहस्योदघाटन था जो यह बताता था कि मुझे आगे कैसे बढ़ना था.
मैंने उसे एक प्रयोग का प्रस्ताव दिया – वो अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर रखे – एक हाथ पीछे धकेलते हुए और दूसरा हाथ खुला हुआ जो सहायता लेने के लिए तैयार था.
हमने ऐसा ही किया और फिर वो मेरी सहायता ले पाई – मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके खुले हाथ कि तरफ बढ़ाया और उसे पकड लिया.
फिर उसने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो उसे महसूस न करने के लिए कहती है. मैंने किसी को अपने सामने उस शक्ति को प्रतीक के रूप में खड़े होने के लिए कहा. वो नहीं जानना चाहती थी कि वो नुमाइंदा किस चीज के लिए था.
इसलिए मैंने उसको उस शक्ति से एक व्यक्तव्य कहने के लिए कहा. उसने कहा 'मैं तुम्हारी बात तब सुनूंगी जब वह मेरे लिए किसी काम की हो, अन्यथा मैं अपनी सहायता खुद कर लूँगी'.
यह व्यक्तव्य विभेदन और एकीकरण का था.
वह अब महसूस कर सकती थी, सहायता ले सकती थी, संबंध बना सकती थी, उस जगह पर देखी जा सकती थी और अब उसे विकल्प तय करने का ज्ञान भी था.
यह काम बहुत आहिस्ता था, मुझे हर समय उसकी सीमाओं का मान रखना था, ज्यादा विस्तार से नहीं पूछना था, वो भी जो वह महसूस कर रही थी...फिर भी हार नहीं माननी थी. सामान्यतया, लोग उसी को प्रतिक्रिया दिखाते हैं जो ऐसी गोपनीयता की सीमाएं स्थापित करते हैं – या तो पीछे हट कर या फिर असंबद्ध तरीके से मिल कर, या फिर उस व्यक्ति में रूचि ले कर या द्याभावना से काबू पा कर. इसमें तटस्थ उपस्थिति, काफी स्नेह, लेकिन बहुत अधिक नहीं, के साथ – इसे अनुकूलन कहते हैं, और यह एक मूलभूत निपुणता है.
रविवार, 31 अगस्त 2014
Case #35 - 35. अपने पूर्व पर क्रोध
मेरिओन ने अपने पूर्व पति के साथ अपने बच्चों के सांझा पालन-पोषण का मुद्दा उठाया. यह स्पष्ट हो गया था कि यह उसकी मुख्य चिंता नहीं थी. इससे अधिक प्रासंगिक था उसकी असहजता और अपने पति के साथ करने वाला अधूरा कार्य.
अधिक विस्तार में जाने से पहले मैंने कहा – जब मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ तो मुझे यह अनुभव होता है जैसे तुम्हारी आँखे मुझे चुभ रही हैं. इससे मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. तुम्हारे पूर्व पति और मुझ में यह समानता है कि मैं भी एक आदमी हूँ, और मैं सोचता हूँ कि जो शक्ति तुम्हे अपने पति में महसूस होती है, उसमें में कुछ शक्ति मेरे में भी हो सकती है.
मैंने उससे पूछा कि उसका मुद्दा क्या था, उसने कहा, गुस्सा.
मैंने उससे पूछा वो किस बात पर गुस्सा थी. उसने अपनी परिस्थितियों के बारे में एक लम्बी कहानी बतानी शुरू कर दी....कुछ देर बाद मैंने दोबारा पूछा: ठीक है, तो आप वास्तव में किस बात पर गुस्सा हैं. उसने मुझे फिर वो लम्बी कहानी सुनानी शुरू कर दी.
मुझे उससे कई बार पूछना पड़ा जब तक कि वह स्पष्ट रूप से, सीधे शब्दों में और संक्षेप में नहीं बता पाई कि वो इसलिए गुस्सा थी क्योंकि उसे लगता था कि उसके पूर्व पति ने उसको धोखा दिया था, क्योकि उसने उसे आर्थिक रूप से सहायता देनी बंद कर दी थी ताकि वह अपने व्यापार में पैसा लगा सके. वो इसलिए भी गुस्सा थी कि उसने उससे इसके बारे में झूठ बोला था , उससे और उसके माता-पिता से भी(जो उसके साथ रहते थे).
मैंने कहा, हाँ तुम गुस्सा लगती हो, मैं यह तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ. अब इस समय तुम क्या महसूस रही हो?
उसने मुझे कुछ चीजें बतानी शुरू कि जो उसके अपने मूल्यांकन, निष्कर्ष और विचार थे, न कि उसकी भावनाएं.
उसने ये जरुर कहा 'मैं अपनी भावनाओं को छुपा रही हूँ'.
इसलिए मैंने उससे ये कल्पना करने को कहा कि मै उसका पूर्व पति था और कहा कि 'मुझसे कुछ उगलवाओ.'
उसने बताना शुरू किया कि इस स्थिति के लिए वह भी दोषी थी.
इसलियें, मैंने उस पर फिर से ध्यान दिया और उसे मुझको सीधे-सीधे इन शब्दों के साथ 'मैं क्रोधित हूँ...' शब्दों के साथ शुरू करके कहने को कहा.
अंत में उसने सीधे-सीधे स्वयं को व्यक्त करना शुरू किया, उन चीजों के बारे में बताते हुए जिनकी वजह से उसे गुस्सा था.
मैंने उसकी भावनाओं को स्वीकार किया, ये माना कि कैसे वो अपने गुस्से को देख और सुन सकती थी...और फिर मैंने उसे कैसे आंसुओं में बदलते हुए देखा – और ऐसे में मैं भी उसकी पीड़ा को समझ सकता था.
मैं उसके इस खुली अभिव्यक्ति को प्रोत्साहन देता रहा, और वो गुस्से और आंसुओं में अदल-बदल करती रही. जैसे ही उसको महसूस हुआ कि उसकी बात सुनी जा रही थी, उसका अपनी बात सीधे-सीधे कहने के लिए आत्मविश्वास बढ़ गया. बहुत सारी चुप्पी भी थी, जिसमें उसकी भावनाएं भरी हुई थी, और मेरी सरल स्वीकारोक्ति.
अंत में उसे बहुत हल्का महसूस हुआ, और उसने अपना बहुत सारी पीड़ा और गुस्से से, जो वह अपने तलाक के बाद से ढो रही थी, छुटकारा पा लिया था.
इस प्रक्रिया को सफल करने के लिये मुझे हठी होना था, उसकी जागरूकता पर केन्द्रित होना था, प्रयोग में उसके साथ भाग ले कर उसको उसको अनुभव का ज्ञान कराना था, और उसकी कहानी कहने कि आदत को, जो उसका अपनी गूढ़ भावनाओं से बचने करने का तरीका था, छुड़ाना था. मैंने उसे गुस्से को सम्बन्धात्मक तरीके से काबू करना बताया, और उसे स्वयं को व्यक्त करने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन दिया...उसे यह महसूस करने में कि ऐसा करना सुरक्षित है, कुछ समय लगा.
मैं भी उन चीजों पर नहीं गया जिन्हें वह टालना चाहती थी; और उसे स्वयं ही अनुभव करने के लिये कहा.
इसकी प्रतिक्रिया में मैंने उसका आभार व्यक्त किया जिसके लिये वह अब तक तरस रही थी – उसका इस स्थान पर देखा और सुना जाना. मैं उसका पूर्व पति नहीं था, लेकिन हमारे बीच की अनुभूति इतनी मजबूत थी कि मुझे वह एक नुमाइंदा समझ कर अपनी बात कहने के पश्चात तसल्ली महसूस कर रही थी.
शुरुआत में मेरा इस बात को जोड़ना कि मैं भी आदमी था, उसकी भावनाओं को मेरे साथ जोड़ने के लिये काफी था, और मेरी ग्रहणशीलता इस हद वास्तविक थी कि उसे लगा कि यह अभिनय नहीं था.
महत्वपूर्ण यह था कि वह चिल्लाई नहीं, चीखी नहीं, तकिये नहीं मारे, या अपनी आवाज भी ऊँची नहीं की.
गुस्सा सम्बन्ध और अपनाने से जाता है, ये आवश्यक नहीं कि नाटकीय चिकित्सा तकनीक से जाये.
अधिक विस्तार में जाने से पहले मैंने कहा – जब मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ तो मुझे यह अनुभव होता है जैसे तुम्हारी आँखे मुझे चुभ रही हैं. इससे मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. तुम्हारे पूर्व पति और मुझ में यह समानता है कि मैं भी एक आदमी हूँ, और मैं सोचता हूँ कि जो शक्ति तुम्हे अपने पति में महसूस होती है, उसमें में कुछ शक्ति मेरे में भी हो सकती है.
मैंने उससे पूछा कि उसका मुद्दा क्या था, उसने कहा, गुस्सा.
मैंने उससे पूछा वो किस बात पर गुस्सा थी. उसने अपनी परिस्थितियों के बारे में एक लम्बी कहानी बतानी शुरू कर दी....कुछ देर बाद मैंने दोबारा पूछा: ठीक है, तो आप वास्तव में किस बात पर गुस्सा हैं. उसने मुझे फिर वो लम्बी कहानी सुनानी शुरू कर दी.
मुझे उससे कई बार पूछना पड़ा जब तक कि वह स्पष्ट रूप से, सीधे शब्दों में और संक्षेप में नहीं बता पाई कि वो इसलिए गुस्सा थी क्योंकि उसे लगता था कि उसके पूर्व पति ने उसको धोखा दिया था, क्योकि उसने उसे आर्थिक रूप से सहायता देनी बंद कर दी थी ताकि वह अपने व्यापार में पैसा लगा सके. वो इसलिए भी गुस्सा थी कि उसने उससे इसके बारे में झूठ बोला था , उससे और उसके माता-पिता से भी(जो उसके साथ रहते थे).
मैंने कहा, हाँ तुम गुस्सा लगती हो, मैं यह तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ. अब इस समय तुम क्या महसूस रही हो?
उसने मुझे कुछ चीजें बतानी शुरू कि जो उसके अपने मूल्यांकन, निष्कर्ष और विचार थे, न कि उसकी भावनाएं.
उसने ये जरुर कहा 'मैं अपनी भावनाओं को छुपा रही हूँ'.
इसलिए मैंने उससे ये कल्पना करने को कहा कि मै उसका पूर्व पति था और कहा कि 'मुझसे कुछ उगलवाओ.'
उसने बताना शुरू किया कि इस स्थिति के लिए वह भी दोषी थी.
इसलियें, मैंने उस पर फिर से ध्यान दिया और उसे मुझको सीधे-सीधे इन शब्दों के साथ 'मैं क्रोधित हूँ...' शब्दों के साथ शुरू करके कहने को कहा.
अंत में उसने सीधे-सीधे स्वयं को व्यक्त करना शुरू किया, उन चीजों के बारे में बताते हुए जिनकी वजह से उसे गुस्सा था.
मैंने उसकी भावनाओं को स्वीकार किया, ये माना कि कैसे वो अपने गुस्से को देख और सुन सकती थी...और फिर मैंने उसे कैसे आंसुओं में बदलते हुए देखा – और ऐसे में मैं भी उसकी पीड़ा को समझ सकता था.
मैं उसके इस खुली अभिव्यक्ति को प्रोत्साहन देता रहा, और वो गुस्से और आंसुओं में अदल-बदल करती रही. जैसे ही उसको महसूस हुआ कि उसकी बात सुनी जा रही थी, उसका अपनी बात सीधे-सीधे कहने के लिए आत्मविश्वास बढ़ गया. बहुत सारी चुप्पी भी थी, जिसमें उसकी भावनाएं भरी हुई थी, और मेरी सरल स्वीकारोक्ति.
अंत में उसे बहुत हल्का महसूस हुआ, और उसने अपना बहुत सारी पीड़ा और गुस्से से, जो वह अपने तलाक के बाद से ढो रही थी, छुटकारा पा लिया था.
इस प्रक्रिया को सफल करने के लिये मुझे हठी होना था, उसकी जागरूकता पर केन्द्रित होना था, प्रयोग में उसके साथ भाग ले कर उसको उसको अनुभव का ज्ञान कराना था, और उसकी कहानी कहने कि आदत को, जो उसका अपनी गूढ़ भावनाओं से बचने करने का तरीका था, छुड़ाना था. मैंने उसे गुस्से को सम्बन्धात्मक तरीके से काबू करना बताया, और उसे स्वयं को व्यक्त करने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन दिया...उसे यह महसूस करने में कि ऐसा करना सुरक्षित है, कुछ समय लगा.
मैं भी उन चीजों पर नहीं गया जिन्हें वह टालना चाहती थी; और उसे स्वयं ही अनुभव करने के लिये कहा.
इसकी प्रतिक्रिया में मैंने उसका आभार व्यक्त किया जिसके लिये वह अब तक तरस रही थी – उसका इस स्थान पर देखा और सुना जाना. मैं उसका पूर्व पति नहीं था, लेकिन हमारे बीच की अनुभूति इतनी मजबूत थी कि मुझे वह एक नुमाइंदा समझ कर अपनी बात कहने के पश्चात तसल्ली महसूस कर रही थी.
शुरुआत में मेरा इस बात को जोड़ना कि मैं भी आदमी था, उसकी भावनाओं को मेरे साथ जोड़ने के लिये काफी था, और मेरी ग्रहणशीलता इस हद वास्तविक थी कि उसे लगा कि यह अभिनय नहीं था.
महत्वपूर्ण यह था कि वह चिल्लाई नहीं, चीखी नहीं, तकिये नहीं मारे, या अपनी आवाज भी ऊँची नहीं की.
गुस्सा सम्बन्ध और अपनाने से जाता है, ये आवश्यक नहीं कि नाटकीय चिकित्सा तकनीक से जाये.
बुधवार, 27 अगस्त 2014
Case #34 - सम्पर्क और विश्वसनीयता
नाथन एक तगड़ी काठी का, विचारशील आदमी था जिसकी उपस्थिति बड़ी स्पष्ट और मजबूत थी. उसका मुद्दा विश्वसनीयता था. उसे नहीँ लगता था कि वह दूसरों के साथ विश्वसनीय था. वो लगभग कभी बहस या लड़ाई नहीं करता था . वह घर पर और दफ्तर में दूसरों के साथ बहुत सहयोगी था .
उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उसके बड़े भाई तथा बहन के बीच लड़ाई की थी. जबकि अपने परिवार में उसको एक अच्छे लड़के का स्थान मिला था. बचपन में दो अवसरों ने उसे प्रभावित किया था. एक तब जब उसे अपने बड़े भाई पर बहुत गुस्सा आया था, और उसने उस पर कुछ फेंक कर मारा था, जिससे उसकी आँख जाते-जाते बची थी. और, दूसरा जब उसने स्कूल एक लड़के को मारा था, जिसने बाद में उसके घर आ कर उसका चेहरा नोच डाला था .
तब से उसने अपने को रोक कर रखा था और किसी को नहीं मारता था.
उसने मुझे यह कह कर चौका दिया कि उसे अपने ऊपर विशवास नहीँ था. मैं हैरान था क्यों कि वह अपने शरीर के हिसाब से एक शक्तिशाली आदमी था .
उसने मुझे बताया कि उसके पास अपने बारे में दूसरों की बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाए थी, इसलिए वह उन्हें अपने पास ही रखना चाहता था.
इसलियें, मैने उसे विश्वसनीयता प्रक्रिया बताई जिसे पहले मैने उसके साथ ही की.
उसके तीन भाग थे – वो क्या सोचता था, वो क्या महसूस करता था और दूसरों से वह क्या चाहता था.
मैने यह प्रक्रिया उसके साथ की और उसने मेरे साथ. वह इसे आसानी से कर सका था.
मैंने इसे एक विश्वसनीय गोष्ठी बताया. इसे जारी रखने से एक विश्वसनीय वार्तालाप होगा और यह अंत में एक विश्वसनीय संबंध बनेगा.
फिर मैंने उसे समूह में तीन लोगों के साथ ये प्रक्रिया करने को कहा. पहली तो बहुत सीधी-साधी थी. दूसरे में एक औरत ने उसे बहुत जटिल प्रतिक्रिया दी. वह घबरा गया, और इसलिये मैंने उसे एक भावुक व्यक्तव्य के साथ प्रतिक्रिया देने को कहा. मैंने उसे विशेषतया औरतों को प्रतिक्रिया देने के लिए एक फार्मूला दिया : गोष्ठी के पहले विश्वसनीय व्यक्तव्य के बाद उसे हरेक उस व्यक्तव्य के लिए, जो उसके दिमाग में आये, तीन भावुक व्यक्तव्य देने थे.
फिर उसने इस चीज का एक और व्यक्ति के साथ अभ्यास किया .
मैंने उससे पूछा कि उसको यह कैसा लगा था; उसने उत्तर दिया कि आसान.
इससे यह पता चलता था कि उसे सिर्फ थोड़ी दिशा बताने कि आवश्यकता थी, कुछ दिशानिदेश, और अभ्यास के लिए सहारा.
एक आदमी की तरह उसे स्पष्ट निर्देश पसंद थे. जैसे कि किसी के पास बहुत सारी छुपी हुई शक्ति हो, और उसे सुरक्षित तरीके से केवल बाहर निकालने कि जरूरत हो .
उसे यह भरोसा था कि वह प्रक्रिया के अभ्यास को जारी रख पायेगा.
निस्संदेह, हम उसके परिवार से उत्पन्न हुई स्थिति पर या उसकी दुविधा पर भी काम कर सकते थे. लेकिन यह ऐसा दखल था जो उसके वर्तमान एवं भविष्य पर केन्द्रित था, और इसने उसे तत्काल ही सफलता का अनुभव दिया. यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने उसके आत्मविश्वास को उभारा था. इसने उसे एक आनुभविक तरीके से सीखने का मौक़ा भी दिया, जिससे कि वह अपने लिए एक विश्वसनीय सम्पर्क प्रक्रिया को खोजता रहे.
सम्पर्क गेस्टाल्ट कि सिद्धांत और अभ्यास के लिए एक मुख्य पहलू हैं और वह इस सत्र का केन्द्रीय विषयवस्तु था.
उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उसके बड़े भाई तथा बहन के बीच लड़ाई की थी. जबकि अपने परिवार में उसको एक अच्छे लड़के का स्थान मिला था. बचपन में दो अवसरों ने उसे प्रभावित किया था. एक तब जब उसे अपने बड़े भाई पर बहुत गुस्सा आया था, और उसने उस पर कुछ फेंक कर मारा था, जिससे उसकी आँख जाते-जाते बची थी. और, दूसरा जब उसने स्कूल एक लड़के को मारा था, जिसने बाद में उसके घर आ कर उसका चेहरा नोच डाला था .
तब से उसने अपने को रोक कर रखा था और किसी को नहीं मारता था.
उसने मुझे यह कह कर चौका दिया कि उसे अपने ऊपर विशवास नहीँ था. मैं हैरान था क्यों कि वह अपने शरीर के हिसाब से एक शक्तिशाली आदमी था .
उसने मुझे बताया कि उसके पास अपने बारे में दूसरों की बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाए थी, इसलिए वह उन्हें अपने पास ही रखना चाहता था.
इसलियें, मैने उसे विश्वसनीयता प्रक्रिया बताई जिसे पहले मैने उसके साथ ही की.
उसके तीन भाग थे – वो क्या सोचता था, वो क्या महसूस करता था और दूसरों से वह क्या चाहता था.
मैने यह प्रक्रिया उसके साथ की और उसने मेरे साथ. वह इसे आसानी से कर सका था.
मैंने इसे एक विश्वसनीय गोष्ठी बताया. इसे जारी रखने से एक विश्वसनीय वार्तालाप होगा और यह अंत में एक विश्वसनीय संबंध बनेगा.
फिर मैंने उसे समूह में तीन लोगों के साथ ये प्रक्रिया करने को कहा. पहली तो बहुत सीधी-साधी थी. दूसरे में एक औरत ने उसे बहुत जटिल प्रतिक्रिया दी. वह घबरा गया, और इसलिये मैंने उसे एक भावुक व्यक्तव्य के साथ प्रतिक्रिया देने को कहा. मैंने उसे विशेषतया औरतों को प्रतिक्रिया देने के लिए एक फार्मूला दिया : गोष्ठी के पहले विश्वसनीय व्यक्तव्य के बाद उसे हरेक उस व्यक्तव्य के लिए, जो उसके दिमाग में आये, तीन भावुक व्यक्तव्य देने थे.
फिर उसने इस चीज का एक और व्यक्ति के साथ अभ्यास किया .
मैंने उससे पूछा कि उसको यह कैसा लगा था; उसने उत्तर दिया कि आसान.
इससे यह पता चलता था कि उसे सिर्फ थोड़ी दिशा बताने कि आवश्यकता थी, कुछ दिशानिदेश, और अभ्यास के लिए सहारा.
एक आदमी की तरह उसे स्पष्ट निर्देश पसंद थे. जैसे कि किसी के पास बहुत सारी छुपी हुई शक्ति हो, और उसे सुरक्षित तरीके से केवल बाहर निकालने कि जरूरत हो .
उसे यह भरोसा था कि वह प्रक्रिया के अभ्यास को जारी रख पायेगा.
निस्संदेह, हम उसके परिवार से उत्पन्न हुई स्थिति पर या उसकी दुविधा पर भी काम कर सकते थे. लेकिन यह ऐसा दखल था जो उसके वर्तमान एवं भविष्य पर केन्द्रित था, और इसने उसे तत्काल ही सफलता का अनुभव दिया. यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने उसके आत्मविश्वास को उभारा था. इसने उसे एक आनुभविक तरीके से सीखने का मौक़ा भी दिया, जिससे कि वह अपने लिए एक विश्वसनीय सम्पर्क प्रक्रिया को खोजता रहे.
सम्पर्क गेस्टाल्ट कि सिद्धांत और अभ्यास के लिए एक मुख्य पहलू हैं और वह इस सत्र का केन्द्रीय विषयवस्तु था.
शुक्रवार, 22 अगस्त 2014
Case #33 - 33 एक पूर्ण और विश्वसनीय ुलासा
जेम्स का मुद्दा था कि वह सारा हफ्ता बहुत मेहनत करता था, कभी-कभी दूसरे शहरों में भी जाता था, और फिर शुक्रवार को वह घर आता था । घर से दूर रह कर वह घर लौटने का इन्तजार करता था । उसके लिये यह महत्वपूर्ण था कि उसकी पत्नी और बच्चे घर पर मिलें और वह इस भावना के साथ लौटे कि वह घर लौट रहा था ।
परन्तु, उसकी पत्नी एक उच्च-पदस्थ मानव संसाघन प्रबंधक थी, और वह घर पर कम ही रहती थी । जब उस पर दबाव डाला जाता था तो वह कहती थी कि उसका पेशा भी महत्वपूर्ण था, और उसकी भावनाएं उसकी अपनी मुश्किल थीं ।
वह अपनी पत्नी के साथ बहुत वर्षों से रह रहा था, और दोनों ही व्यक्तिगत बढ़त तथा ज्योतिष में रुचि रखते थे । वह अपने आप को कर्क राशि का बताता था, जो भावुक होते हैं ।
उनका संबंध बहुत गहरा और प्यार भरा था, लेकिन उनमें बहुत झगड़े भी होते थे जिन्हे वह कम करना चाहता था और संबंध में सुधार लाना चाहता था ।
इससे मुझे हस्तक्षेप के लिये संदर्भ मिल गया ।
मैंने उससे उसकी पत्नी के लिये उतनी ही कोई महत्वपूर्ण चीज पूछी जो वह उसे देना चाहेगा । उसने कहा जब वह कोई अपने दफ्तर में प्रस्तुति (प्रेसेंटेशन) करती थी, और उसके साथ सांझा करती थी, तो वह उससे मान्यता और प्रशंसा चाहती थी ।
मैंने उससे किसी दूसरी चीज के बारे में पूछा । उसने बताया कि जब वह कोई पुस्तक पढ़ती थी (सामान्यतया व्यक्तिगत विकास पर), तो वो चाहती थी कि वह भी उसे पढ़े और उसके बारे में बात करे ।
मैंने पूछा क्या वह इन दोंनों में से कुछ करता था । उसने कहा, कुछ हद तक…परन्तु उसकी तसल्ली के मुताबिक नहीं ।
इसलिये, मैंने यह सुझाव दिया कि पहले वो उसके उन दोनों निवेदनों को गंभीरता से ले, और दोनों को तहेदिल से करे ।
मैंने सुझाव दिया कि ऐसा करने के कुछ समय पश्चात वह उसे एक पूर्ण, जटिल तथा विश्वसनीय व्यक्तव्य दे कि उसके लिये शुक्रवार रात को उसका घर पर रहना क्या मायने रखता था ।
इससे मेरा क्या मतलब था, मैंने यह अपने जीवन के एक उदाहरण से दर्शाया :
बड़े होते हुए, जन्मदिन का हमारे घर में बहुत ही विशेष स्थान होता था । जबकि मेरी पत्नी का जन्मदिन मुश्किल से ही मनाया जाता था; और ऐसा कई बार होता था कि जब उसकी पत्नी की बहन का जन्मदिन मनाया जाता था, लेकिन उसका नहीं मनाया जाता था ।
इसका नतीजा यह हुआ कि उसे जन्मदिन के लिये कोई उत्साह नहीं होता था; वह अपने जन्मदिन को सरल और निजी रूप में मनाना पसन्द करती थी ।
मैं एक विशेष दिन की उम्मीद करता था, जो बहुत सी ऐसी चीजों के साथ ऐसा लगे कि वह 'मेरा दिन' था । बहुत से ऐसे अवसर थे जब यह सब उसने मेरे तरीके से नहीं किया जैसा कि मैं चाहता था, और मुझे बहुत चोट पहुँचती थी; ऐसा कुछ जो उसके लिये समझना बड़ा मुश्किल था ।
इसलिये, मेरा पूर्ण और जटिल व्यक्तव्य कुछ इस प्रकार था ;
मैं यह जानता हूँ जन्मदिन तुम्हारे लिये बहुत भारी पड़ते हैं, और ये कि तुम्हे अपने बचपन में इसका अच्छा अनुभव नहीं हुआ । मैं जानता हूँ कि तुमने मेरे जन्मदिन को एक अच्छा अवसर बनाने के लिये भरपूर कोशिश की है, और उसके लिये मैं बहुत आभारी हूँ । और मैंने यह भी अनुभव किया है कि ऐसा भी समय आया है कि कई कारणों से तुम अपने-आप को सही जगह पर महसूस नहीं करती हो, कुछ अतिरिक्त कोशिश करने के लिये, या किसी खास मात्रा से ज्यादा करने के लिये । मैं यह समझता हूँ कि यह तुम्हारे लिये उस भावना से संबंधित है जो तुम समझती हो कि वास्तव में तुम्हारे पास देने के लिये कितना है, और ये कि तुम इससे ज्यादा अपने जन्मदिन पर उम्मीद नहीं करती हो । परन्तु, मैं तुम्हारे साथ अलग हूँ । जन्मदिन मेरे को भी दूसरे तरीके से भारी लगते हैं । क्योंकि मेरे लिये उनके विशेष होने की परम्परा थी, उसके पीछे मेरी उम्मीद और आशा थी कि मैं उस दिन सबसे 'पहले' रहूँ । और ये कि अगर तुम अच्छी मनोदशा में नहीं हो, तो तुम उसको एक दिन के लिये भूल जाओगी, सिर्फ उस दिन के लिये, ताकि मैं यह महसूस कर सकूँ कि मुझे विशेष व्यवहार मिल रहा है । वह मेरे लिये बहुत मायने रखेगा, और इससे भी ज्यादा क्योंकि मुझे मालुम है कि यह तुम्हारे लिये हमेशा आसान नहीं है । तुम्हे यह कहते हुए मुझे कुछ घबराहट हो रही है, क्योंकि मेरे लिये यह महत्वपूर्ण है, और इसलिये तुम्हारे लिये यह मुशिकल विषय है ।
जेम्स को मेरे अपने जीवन से व्यक्तिग्त उदाहरण देने से वह यह समझ सकता था कि अपने इस मुद्दे के लिये एक जटिल विश्वसनीय व्यक्तव्य कैसे बनाया जाये ।
गेस्टाल्ट संबंधों में गहराई एवँ विश्वसनीयता लाने के बारे में है, और जुड़ाव और धनिष्ठता को बढ़ाने के बारे में है । यह एक तरीके का उदाहरण है जिसे हम अपने उस आसामी के लिये करते हैं जो बातचीत करने की मूल जानकारी से ज्यादा जानते हैं ।
परन्तु, उसकी पत्नी एक उच्च-पदस्थ मानव संसाघन प्रबंधक थी, और वह घर पर कम ही रहती थी । जब उस पर दबाव डाला जाता था तो वह कहती थी कि उसका पेशा भी महत्वपूर्ण था, और उसकी भावनाएं उसकी अपनी मुश्किल थीं ।
वह अपनी पत्नी के साथ बहुत वर्षों से रह रहा था, और दोनों ही व्यक्तिगत बढ़त तथा ज्योतिष में रुचि रखते थे । वह अपने आप को कर्क राशि का बताता था, जो भावुक होते हैं ।
उनका संबंध बहुत गहरा और प्यार भरा था, लेकिन उनमें बहुत झगड़े भी होते थे जिन्हे वह कम करना चाहता था और संबंध में सुधार लाना चाहता था ।
इससे मुझे हस्तक्षेप के लिये संदर्भ मिल गया ।
मैंने उससे उसकी पत्नी के लिये उतनी ही कोई महत्वपूर्ण चीज पूछी जो वह उसे देना चाहेगा । उसने कहा जब वह कोई अपने दफ्तर में प्रस्तुति (प्रेसेंटेशन) करती थी, और उसके साथ सांझा करती थी, तो वह उससे मान्यता और प्रशंसा चाहती थी ।
मैंने उससे किसी दूसरी चीज के बारे में पूछा । उसने बताया कि जब वह कोई पुस्तक पढ़ती थी (सामान्यतया व्यक्तिगत विकास पर), तो वो चाहती थी कि वह भी उसे पढ़े और उसके बारे में बात करे ।
मैंने पूछा क्या वह इन दोंनों में से कुछ करता था । उसने कहा, कुछ हद तक…परन्तु उसकी तसल्ली के मुताबिक नहीं ।
इसलिये, मैंने यह सुझाव दिया कि पहले वो उसके उन दोनों निवेदनों को गंभीरता से ले, और दोनों को तहेदिल से करे ।
मैंने सुझाव दिया कि ऐसा करने के कुछ समय पश्चात वह उसे एक पूर्ण, जटिल तथा विश्वसनीय व्यक्तव्य दे कि उसके लिये शुक्रवार रात को उसका घर पर रहना क्या मायने रखता था ।
इससे मेरा क्या मतलब था, मैंने यह अपने जीवन के एक उदाहरण से दर्शाया :
बड़े होते हुए, जन्मदिन का हमारे घर में बहुत ही विशेष स्थान होता था । जबकि मेरी पत्नी का जन्मदिन मुश्किल से ही मनाया जाता था; और ऐसा कई बार होता था कि जब उसकी पत्नी की बहन का जन्मदिन मनाया जाता था, लेकिन उसका नहीं मनाया जाता था ।
इसका नतीजा यह हुआ कि उसे जन्मदिन के लिये कोई उत्साह नहीं होता था; वह अपने जन्मदिन को सरल और निजी रूप में मनाना पसन्द करती थी ।
मैं एक विशेष दिन की उम्मीद करता था, जो बहुत सी ऐसी चीजों के साथ ऐसा लगे कि वह 'मेरा दिन' था । बहुत से ऐसे अवसर थे जब यह सब उसने मेरे तरीके से नहीं किया जैसा कि मैं चाहता था, और मुझे बहुत चोट पहुँचती थी; ऐसा कुछ जो उसके लिये समझना बड़ा मुश्किल था ।
इसलिये, मेरा पूर्ण और जटिल व्यक्तव्य कुछ इस प्रकार था ;
मैं यह जानता हूँ जन्मदिन तुम्हारे लिये बहुत भारी पड़ते हैं, और ये कि तुम्हे अपने बचपन में इसका अच्छा अनुभव नहीं हुआ । मैं जानता हूँ कि तुमने मेरे जन्मदिन को एक अच्छा अवसर बनाने के लिये भरपूर कोशिश की है, और उसके लिये मैं बहुत आभारी हूँ । और मैंने यह भी अनुभव किया है कि ऐसा भी समय आया है कि कई कारणों से तुम अपने-आप को सही जगह पर महसूस नहीं करती हो, कुछ अतिरिक्त कोशिश करने के लिये, या किसी खास मात्रा से ज्यादा करने के लिये । मैं यह समझता हूँ कि यह तुम्हारे लिये उस भावना से संबंधित है जो तुम समझती हो कि वास्तव में तुम्हारे पास देने के लिये कितना है, और ये कि तुम इससे ज्यादा अपने जन्मदिन पर उम्मीद नहीं करती हो । परन्तु, मैं तुम्हारे साथ अलग हूँ । जन्मदिन मेरे को भी दूसरे तरीके से भारी लगते हैं । क्योंकि मेरे लिये उनके विशेष होने की परम्परा थी, उसके पीछे मेरी उम्मीद और आशा थी कि मैं उस दिन सबसे 'पहले' रहूँ । और ये कि अगर तुम अच्छी मनोदशा में नहीं हो, तो तुम उसको एक दिन के लिये भूल जाओगी, सिर्फ उस दिन के लिये, ताकि मैं यह महसूस कर सकूँ कि मुझे विशेष व्यवहार मिल रहा है । वह मेरे लिये बहुत मायने रखेगा, और इससे भी ज्यादा क्योंकि मुझे मालुम है कि यह तुम्हारे लिये हमेशा आसान नहीं है । तुम्हे यह कहते हुए मुझे कुछ घबराहट हो रही है, क्योंकि मेरे लिये यह महत्वपूर्ण है, और इसलिये तुम्हारे लिये यह मुशिकल विषय है ।
जेम्स को मेरे अपने जीवन से व्यक्तिग्त उदाहरण देने से वह यह समझ सकता था कि अपने इस मुद्दे के लिये एक जटिल विश्वसनीय व्यक्तव्य कैसे बनाया जाये ।
गेस्टाल्ट संबंधों में गहराई एवँ विश्वसनीयता लाने के बारे में है, और जुड़ाव और धनिष्ठता को बढ़ाने के बारे में है । यह एक तरीके का उदाहरण है जिसे हम अपने उस आसामी के लिये करते हैं जो बातचीत करने की मूल जानकारी से ज्यादा जानते हैं ।
मंगलवार, 19 अगस्त 2014
Case #32 - विश्वसनीय साधन
डायने के दो मुद्दे थे । पहला मुद्दा यह था कि उसका पहला लड़का, जो 12 वर्ष का था, पढ़ाई में उतनी मेहनत नहीं करता था जितनी कि वह चाहती थी ।
मैंने उसे पैमाने पर नाप के अनुसार बताने के लिये कहा कि वह कितना अच्छा कर रहा था । उसने बताया कि 6 या 7 । क्या वह अपना गृहकार्य करता था ? हाँ । लेकिन वास्तविकता यह है एक अच्छे स्कूल में दाखिले के लिये किसी बच्चे को बहुत अच्चे नम्बर चाहिये होते हैं, और इसलिये उस पर दबाव बना हुआ था ।
पहले तो मैंने अपने विचारों के अनुसार जवाब दिया - माता-पिता पर आधारित बच्चों के पालन-पोषण पर मे्री धारणाएँ – एक बच्चे के संतुलित जीवन पर मेरी धारणाएँ, और मेरे मूल्य कि शिक्षा के क्षेत्र की उपल्बधियाँ ही अंतिम लक्षय नहीं होती ।
मेरे लिये अपनी स्थिति को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण था, और विचारों में अंतर की सीमाओं को महसूस करना, और यह जानना कि उसे सहायता देने की मेरी इच्छा (और उसकी सीमाएँ) उसके कितने काम आ सकती थी ।
उसमें दवंद चल रहा था, क्योंकि इससे पहले उसने पालन-पोषण पर बहुत सारी पुस्तके पढ़ी थी, और उसके लिये कुछ अपने लिए समय देने की कोशिश की थी, लेकिन वह उसके भविष्य के लिये चिंतित थी, और नहीं जानती थी कि प्रभावपूर्ण ढ़ंग से उसे कैसे प्रेरित करे ।
इसलिये मेरा प्रस्ताव था कि वह उसके साथ बैठ कर पहले तो यह बताये कि उसके बड़े होने में उसके लिये क्या महत्वपूर्ण था ।
फिर वह उसको उस वस्तुस्थिति से परिचित करायेगी जिसका वह सामना कर रहा था – एक सामाजिक और स्कूल की व्यवस्था जिसमें बहुत ही ज्यादा प्रतिस्पर्धा थी, और जिसमें विशेष संस्थान में दाखिला लेने के लिये विशेष ग्रेड पाने की आवश्यकता थी । वह भांति-भांति के संस्थानों के बारे में पता लगायेगी, उनकी जरूरतें, तथा उनमें दाखिले के फायदे और नुक्सान के बारे में पता लगायेगी ।
फिर वह उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता करेगी, वह कहाँ तक पहुँचना चाहता था, और यह सब करने के लिये वो क्या करना चाहता था ।
इस तरीके से वह पूरी तरह से विश्वसनीय हो सकती थी, जबकि साथ ही साथ वह उसे अपना रास्ता पाने के लिये सहायता भी कर सकती थी । उसको सहायता देने के लिये उसकी सहमती और इच्छा को तब उस दिशा में मोड़ा जा सकता था जिसमें उसके द्वारा चुने गये विकल्पों को सहारा मिल सके, बजाय इसके कि वह उसके लिये विकल्प चुने ।
उसका दूसरा मुद्दा उसके पति के साथ संबंध के बारे में था । वो घर आने बाद बीयर लेता था, अखबार पढ़ता था, अपने ब्लाग पर लिखता था, और उसे व बच्चों को पूरी तरह से अनदेखा कर देता था ।
स्पष्टत:, वह इस स्थिति से खुश नहीं थी, लेकिन इसके लिये कोई रास्ता नहीं ढूँढ सकी थी ।
बाकी चीजों में, वह पारिवारिक जीवन में भाग लेता था, परिवार को घुमाने ले जाता था, परिवार के साथ समय व्यतीत करता था और कभी-कभी खाना भी बनाता था ।
वह कोई खास बातचीत करने वाला नहीं था, इसलिये यह कुछ नया नहीं था ।
मुझे यह स्पष्ट था कि उसको डांटने से, उससे कुछ माँगने से, या फिर यह भी सुझाव देना कि वह उससे कुछ विश्वसनीय तरीके से बात करे प्रभावकारी नहीं होगा ।
मैंने उसके ब्लाग के बारे में पूछा । उसने बताया कि ब्लाग बड़ा ही स्पष्ट और मजेदार था । वह इसमें मजेदार टिप्पणियों के साथ चित्र भी जोड़ता था । उसकी इच्छा होती थी कि काश वह उसके साथ भी वैसे ही बात करे ।
मेरे लिये रास्ता स्पष्ट था । वह उसे बदलेगी नहीं, परन्तु वह उसका साथ दे सकती थी ।
मैंने पूछा कि क्या उसके पति के पास आई-पैड़ था । उसने बताया कि वह उसने छुपा दिया था ।
मैंने उससे कहा कि वह उसे तत्काल ही आई-पैड दे दे, और एक अपने लिये खरीद ले । फिर वह उसके साथ लिख कर बातचीत कर सकती थी । वह उसके ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती थी (वह उन लोगों को जवाब देता, जो ऐसा करते थे) । वह उसे नोट, पत्र, एक वाक्य भेज सकती थी । जब भी वह अखबार पढ़ रहा होगा, वह उसे छोटी-छोटी टिप्पणियाँ भेज सकती थी । वह पत्र लिख कर और उनको छाप कर डाक द्वारा भेज सकती थी या उसके तकिये के नीचे रख सकती थी ।
इस तरीके से मैं उस चीज का उपयोग कर रहा था जो उपलब्ध थी । यह उसके मन के भीतर की गतिशीलता पर असर नहीं कर रहा था, और मैंने उसकी इस धारणा को, कि वह उस पर इसलिये धयान नहीं दे रहा था कि उसमें कुछ गल्त है, बल देने से इन्कार कर दिया । इसके बजाय मैंने यह देखा कि कहाँ पर साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह रचनात्मक रूप से उस से सम्पर्क कर सके ताकि वह संबंध के बंद बक्से से बाहर आ सके ।
मैंने उसे पैमाने पर नाप के अनुसार बताने के लिये कहा कि वह कितना अच्छा कर रहा था । उसने बताया कि 6 या 7 । क्या वह अपना गृहकार्य करता था ? हाँ । लेकिन वास्तविकता यह है एक अच्छे स्कूल में दाखिले के लिये किसी बच्चे को बहुत अच्चे नम्बर चाहिये होते हैं, और इसलिये उस पर दबाव बना हुआ था ।
पहले तो मैंने अपने विचारों के अनुसार जवाब दिया - माता-पिता पर आधारित बच्चों के पालन-पोषण पर मे्री धारणाएँ – एक बच्चे के संतुलित जीवन पर मेरी धारणाएँ, और मेरे मूल्य कि शिक्षा के क्षेत्र की उपल्बधियाँ ही अंतिम लक्षय नहीं होती ।
मेरे लिये अपनी स्थिति को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण था, और विचारों में अंतर की सीमाओं को महसूस करना, और यह जानना कि उसे सहायता देने की मेरी इच्छा (और उसकी सीमाएँ) उसके कितने काम आ सकती थी ।
उसमें दवंद चल रहा था, क्योंकि इससे पहले उसने पालन-पोषण पर बहुत सारी पुस्तके पढ़ी थी, और उसके लिये कुछ अपने लिए समय देने की कोशिश की थी, लेकिन वह उसके भविष्य के लिये चिंतित थी, और नहीं जानती थी कि प्रभावपूर्ण ढ़ंग से उसे कैसे प्रेरित करे ।
इसलिये मेरा प्रस्ताव था कि वह उसके साथ बैठ कर पहले तो यह बताये कि उसके बड़े होने में उसके लिये क्या महत्वपूर्ण था ।
फिर वह उसको उस वस्तुस्थिति से परिचित करायेगी जिसका वह सामना कर रहा था – एक सामाजिक और स्कूल की व्यवस्था जिसमें बहुत ही ज्यादा प्रतिस्पर्धा थी, और जिसमें विशेष संस्थान में दाखिला लेने के लिये विशेष ग्रेड पाने की आवश्यकता थी । वह भांति-भांति के संस्थानों के बारे में पता लगायेगी, उनकी जरूरतें, तथा उनमें दाखिले के फायदे और नुक्सान के बारे में पता लगायेगी ।
फिर वह उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता करेगी, वह कहाँ तक पहुँचना चाहता था, और यह सब करने के लिये वो क्या करना चाहता था ।
इस तरीके से वह पूरी तरह से विश्वसनीय हो सकती थी, जबकि साथ ही साथ वह उसे अपना रास्ता पाने के लिये सहायता भी कर सकती थी । उसको सहायता देने के लिये उसकी सहमती और इच्छा को तब उस दिशा में मोड़ा जा सकता था जिसमें उसके द्वारा चुने गये विकल्पों को सहारा मिल सके, बजाय इसके कि वह उसके लिये विकल्प चुने ।
उसका दूसरा मुद्दा उसके पति के साथ संबंध के बारे में था । वो घर आने बाद बीयर लेता था, अखबार पढ़ता था, अपने ब्लाग पर लिखता था, और उसे व बच्चों को पूरी तरह से अनदेखा कर देता था ।
स्पष्टत:, वह इस स्थिति से खुश नहीं थी, लेकिन इसके लिये कोई रास्ता नहीं ढूँढ सकी थी ।
बाकी चीजों में, वह पारिवारिक जीवन में भाग लेता था, परिवार को घुमाने ले जाता था, परिवार के साथ समय व्यतीत करता था और कभी-कभी खाना भी बनाता था ।
वह कोई खास बातचीत करने वाला नहीं था, इसलिये यह कुछ नया नहीं था ।
मुझे यह स्पष्ट था कि उसको डांटने से, उससे कुछ माँगने से, या फिर यह भी सुझाव देना कि वह उससे कुछ विश्वसनीय तरीके से बात करे प्रभावकारी नहीं होगा ।
मैंने उसके ब्लाग के बारे में पूछा । उसने बताया कि ब्लाग बड़ा ही स्पष्ट और मजेदार था । वह इसमें मजेदार टिप्पणियों के साथ चित्र भी जोड़ता था । उसकी इच्छा होती थी कि काश वह उसके साथ भी वैसे ही बात करे ।
मेरे लिये रास्ता स्पष्ट था । वह उसे बदलेगी नहीं, परन्तु वह उसका साथ दे सकती थी ।
मैंने पूछा कि क्या उसके पति के पास आई-पैड़ था । उसने बताया कि वह उसने छुपा दिया था ।
मैंने उससे कहा कि वह उसे तत्काल ही आई-पैड दे दे, और एक अपने लिये खरीद ले । फिर वह उसके साथ लिख कर बातचीत कर सकती थी । वह उसके ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती थी (वह उन लोगों को जवाब देता, जो ऐसा करते थे) । वह उसे नोट, पत्र, एक वाक्य भेज सकती थी । जब भी वह अखबार पढ़ रहा होगा, वह उसे छोटी-छोटी टिप्पणियाँ भेज सकती थी । वह पत्र लिख कर और उनको छाप कर डाक द्वारा भेज सकती थी या उसके तकिये के नीचे रख सकती थी ।
इस तरीके से मैं उस चीज का उपयोग कर रहा था जो उपलब्ध थी । यह उसके मन के भीतर की गतिशीलता पर असर नहीं कर रहा था, और मैंने उसकी इस धारणा को, कि वह उस पर इसलिये धयान नहीं दे रहा था कि उसमें कुछ गल्त है, बल देने से इन्कार कर दिया । इसके बजाय मैंने यह देखा कि कहाँ पर साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह रचनात्मक रूप से उस से सम्पर्क कर सके ताकि वह संबंध के बंद बक्से से बाहर आ सके ।
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