रविवार, 31 अगस्त 2014
Case #35 - 35. अपने पूर्व पर क्रोध
मेरिओन ने अपने पूर्व पति के साथ अपने बच्चों के सांझा पालन-पोषण का मुद्दा उठाया. यह स्पष्ट हो गया था कि यह उसकी मुख्य चिंता नहीं थी. इससे अधिक प्रासंगिक था उसकी असहजता और अपने पति के साथ करने वाला अधूरा कार्य.
अधिक विस्तार में जाने से पहले मैंने कहा – जब मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ तो मुझे यह अनुभव होता है जैसे तुम्हारी आँखे मुझे चुभ रही हैं. इससे मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. तुम्हारे पूर्व पति और मुझ में यह समानता है कि मैं भी एक आदमी हूँ, और मैं सोचता हूँ कि जो शक्ति तुम्हे अपने पति में महसूस होती है, उसमें में कुछ शक्ति मेरे में भी हो सकती है.
मैंने उससे पूछा कि उसका मुद्दा क्या था, उसने कहा, गुस्सा.
मैंने उससे पूछा वो किस बात पर गुस्सा थी. उसने अपनी परिस्थितियों के बारे में एक लम्बी कहानी बतानी शुरू कर दी....कुछ देर बाद मैंने दोबारा पूछा: ठीक है, तो आप वास्तव में किस बात पर गुस्सा हैं. उसने मुझे फिर वो लम्बी कहानी सुनानी शुरू कर दी.
मुझे उससे कई बार पूछना पड़ा जब तक कि वह स्पष्ट रूप से, सीधे शब्दों में और संक्षेप में नहीं बता पाई कि वो इसलिए गुस्सा थी क्योंकि उसे लगता था कि उसके पूर्व पति ने उसको धोखा दिया था, क्योकि उसने उसे आर्थिक रूप से सहायता देनी बंद कर दी थी ताकि वह अपने व्यापार में पैसा लगा सके. वो इसलिए भी गुस्सा थी कि उसने उससे इसके बारे में झूठ बोला था , उससे और उसके माता-पिता से भी(जो उसके साथ रहते थे).
मैंने कहा, हाँ तुम गुस्सा लगती हो, मैं यह तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ. अब इस समय तुम क्या महसूस रही हो?
उसने मुझे कुछ चीजें बतानी शुरू कि जो उसके अपने मूल्यांकन, निष्कर्ष और विचार थे, न कि उसकी भावनाएं.
उसने ये जरुर कहा 'मैं अपनी भावनाओं को छुपा रही हूँ'.
इसलिए मैंने उससे ये कल्पना करने को कहा कि मै उसका पूर्व पति था और कहा कि 'मुझसे कुछ उगलवाओ.'
उसने बताना शुरू किया कि इस स्थिति के लिए वह भी दोषी थी.
इसलियें, मैंने उस पर फिर से ध्यान दिया और उसे मुझको सीधे-सीधे इन शब्दों के साथ 'मैं क्रोधित हूँ...' शब्दों के साथ शुरू करके कहने को कहा.
अंत में उसने सीधे-सीधे स्वयं को व्यक्त करना शुरू किया, उन चीजों के बारे में बताते हुए जिनकी वजह से उसे गुस्सा था.
मैंने उसकी भावनाओं को स्वीकार किया, ये माना कि कैसे वो अपने गुस्से को देख और सुन सकती थी...और फिर मैंने उसे कैसे आंसुओं में बदलते हुए देखा – और ऐसे में मैं भी उसकी पीड़ा को समझ सकता था.
मैं उसके इस खुली अभिव्यक्ति को प्रोत्साहन देता रहा, और वो गुस्से और आंसुओं में अदल-बदल करती रही. जैसे ही उसको महसूस हुआ कि उसकी बात सुनी जा रही थी, उसका अपनी बात सीधे-सीधे कहने के लिए आत्मविश्वास बढ़ गया. बहुत सारी चुप्पी भी थी, जिसमें उसकी भावनाएं भरी हुई थी, और मेरी सरल स्वीकारोक्ति.
अंत में उसे बहुत हल्का महसूस हुआ, और उसने अपना बहुत सारी पीड़ा और गुस्से से, जो वह अपने तलाक के बाद से ढो रही थी, छुटकारा पा लिया था.
इस प्रक्रिया को सफल करने के लिये मुझे हठी होना था, उसकी जागरूकता पर केन्द्रित होना था, प्रयोग में उसके साथ भाग ले कर उसको उसको अनुभव का ज्ञान कराना था, और उसकी कहानी कहने कि आदत को, जो उसका अपनी गूढ़ भावनाओं से बचने करने का तरीका था, छुड़ाना था. मैंने उसे गुस्से को सम्बन्धात्मक तरीके से काबू करना बताया, और उसे स्वयं को व्यक्त करने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन दिया...उसे यह महसूस करने में कि ऐसा करना सुरक्षित है, कुछ समय लगा.
मैं भी उन चीजों पर नहीं गया जिन्हें वह टालना चाहती थी; और उसे स्वयं ही अनुभव करने के लिये कहा.
इसकी प्रतिक्रिया में मैंने उसका आभार व्यक्त किया जिसके लिये वह अब तक तरस रही थी – उसका इस स्थान पर देखा और सुना जाना. मैं उसका पूर्व पति नहीं था, लेकिन हमारे बीच की अनुभूति इतनी मजबूत थी कि मुझे वह एक नुमाइंदा समझ कर अपनी बात कहने के पश्चात तसल्ली महसूस कर रही थी.
शुरुआत में मेरा इस बात को जोड़ना कि मैं भी आदमी था, उसकी भावनाओं को मेरे साथ जोड़ने के लिये काफी था, और मेरी ग्रहणशीलता इस हद वास्तविक थी कि उसे लगा कि यह अभिनय नहीं था.
महत्वपूर्ण यह था कि वह चिल्लाई नहीं, चीखी नहीं, तकिये नहीं मारे, या अपनी आवाज भी ऊँची नहीं की.
गुस्सा सम्बन्ध और अपनाने से जाता है, ये आवश्यक नहीं कि नाटकीय चिकित्सा तकनीक से जाये.
अधिक विस्तार में जाने से पहले मैंने कहा – जब मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ तो मुझे यह अनुभव होता है जैसे तुम्हारी आँखे मुझे चुभ रही हैं. इससे मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. तुम्हारे पूर्व पति और मुझ में यह समानता है कि मैं भी एक आदमी हूँ, और मैं सोचता हूँ कि जो शक्ति तुम्हे अपने पति में महसूस होती है, उसमें में कुछ शक्ति मेरे में भी हो सकती है.
मैंने उससे पूछा कि उसका मुद्दा क्या था, उसने कहा, गुस्सा.
मैंने उससे पूछा वो किस बात पर गुस्सा थी. उसने अपनी परिस्थितियों के बारे में एक लम्बी कहानी बतानी शुरू कर दी....कुछ देर बाद मैंने दोबारा पूछा: ठीक है, तो आप वास्तव में किस बात पर गुस्सा हैं. उसने मुझे फिर वो लम्बी कहानी सुनानी शुरू कर दी.
मुझे उससे कई बार पूछना पड़ा जब तक कि वह स्पष्ट रूप से, सीधे शब्दों में और संक्षेप में नहीं बता पाई कि वो इसलिए गुस्सा थी क्योंकि उसे लगता था कि उसके पूर्व पति ने उसको धोखा दिया था, क्योकि उसने उसे आर्थिक रूप से सहायता देनी बंद कर दी थी ताकि वह अपने व्यापार में पैसा लगा सके. वो इसलिए भी गुस्सा थी कि उसने उससे इसके बारे में झूठ बोला था , उससे और उसके माता-पिता से भी(जो उसके साथ रहते थे).
मैंने कहा, हाँ तुम गुस्सा लगती हो, मैं यह तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ. अब इस समय तुम क्या महसूस रही हो?
उसने मुझे कुछ चीजें बतानी शुरू कि जो उसके अपने मूल्यांकन, निष्कर्ष और विचार थे, न कि उसकी भावनाएं.
उसने ये जरुर कहा 'मैं अपनी भावनाओं को छुपा रही हूँ'.
इसलिए मैंने उससे ये कल्पना करने को कहा कि मै उसका पूर्व पति था और कहा कि 'मुझसे कुछ उगलवाओ.'
उसने बताना शुरू किया कि इस स्थिति के लिए वह भी दोषी थी.
इसलियें, मैंने उस पर फिर से ध्यान दिया और उसे मुझको सीधे-सीधे इन शब्दों के साथ 'मैं क्रोधित हूँ...' शब्दों के साथ शुरू करके कहने को कहा.
अंत में उसने सीधे-सीधे स्वयं को व्यक्त करना शुरू किया, उन चीजों के बारे में बताते हुए जिनकी वजह से उसे गुस्सा था.
मैंने उसकी भावनाओं को स्वीकार किया, ये माना कि कैसे वो अपने गुस्से को देख और सुन सकती थी...और फिर मैंने उसे कैसे आंसुओं में बदलते हुए देखा – और ऐसे में मैं भी उसकी पीड़ा को समझ सकता था.
मैं उसके इस खुली अभिव्यक्ति को प्रोत्साहन देता रहा, और वो गुस्से और आंसुओं में अदल-बदल करती रही. जैसे ही उसको महसूस हुआ कि उसकी बात सुनी जा रही थी, उसका अपनी बात सीधे-सीधे कहने के लिए आत्मविश्वास बढ़ गया. बहुत सारी चुप्पी भी थी, जिसमें उसकी भावनाएं भरी हुई थी, और मेरी सरल स्वीकारोक्ति.
अंत में उसे बहुत हल्का महसूस हुआ, और उसने अपना बहुत सारी पीड़ा और गुस्से से, जो वह अपने तलाक के बाद से ढो रही थी, छुटकारा पा लिया था.
इस प्रक्रिया को सफल करने के लिये मुझे हठी होना था, उसकी जागरूकता पर केन्द्रित होना था, प्रयोग में उसके साथ भाग ले कर उसको उसको अनुभव का ज्ञान कराना था, और उसकी कहानी कहने कि आदत को, जो उसका अपनी गूढ़ भावनाओं से बचने करने का तरीका था, छुड़ाना था. मैंने उसे गुस्से को सम्बन्धात्मक तरीके से काबू करना बताया, और उसे स्वयं को व्यक्त करने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन दिया...उसे यह महसूस करने में कि ऐसा करना सुरक्षित है, कुछ समय लगा.
मैं भी उन चीजों पर नहीं गया जिन्हें वह टालना चाहती थी; और उसे स्वयं ही अनुभव करने के लिये कहा.
इसकी प्रतिक्रिया में मैंने उसका आभार व्यक्त किया जिसके लिये वह अब तक तरस रही थी – उसका इस स्थान पर देखा और सुना जाना. मैं उसका पूर्व पति नहीं था, लेकिन हमारे बीच की अनुभूति इतनी मजबूत थी कि मुझे वह एक नुमाइंदा समझ कर अपनी बात कहने के पश्चात तसल्ली महसूस कर रही थी.
शुरुआत में मेरा इस बात को जोड़ना कि मैं भी आदमी था, उसकी भावनाओं को मेरे साथ जोड़ने के लिये काफी था, और मेरी ग्रहणशीलता इस हद वास्तविक थी कि उसे लगा कि यह अभिनय नहीं था.
महत्वपूर्ण यह था कि वह चिल्लाई नहीं, चीखी नहीं, तकिये नहीं मारे, या अपनी आवाज भी ऊँची नहीं की.
गुस्सा सम्बन्ध और अपनाने से जाता है, ये आवश्यक नहीं कि नाटकीय चिकित्सा तकनीक से जाये.
बुधवार, 27 अगस्त 2014
Case #34 - सम्पर्क और विश्वसनीयता
नाथन एक तगड़ी काठी का, विचारशील आदमी था जिसकी उपस्थिति बड़ी स्पष्ट और मजबूत थी. उसका मुद्दा विश्वसनीयता था. उसे नहीँ लगता था कि वह दूसरों के साथ विश्वसनीय था. वो लगभग कभी बहस या लड़ाई नहीं करता था . वह घर पर और दफ्तर में दूसरों के साथ बहुत सहयोगी था .
उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उसके बड़े भाई तथा बहन के बीच लड़ाई की थी. जबकि अपने परिवार में उसको एक अच्छे लड़के का स्थान मिला था. बचपन में दो अवसरों ने उसे प्रभावित किया था. एक तब जब उसे अपने बड़े भाई पर बहुत गुस्सा आया था, और उसने उस पर कुछ फेंक कर मारा था, जिससे उसकी आँख जाते-जाते बची थी. और, दूसरा जब उसने स्कूल एक लड़के को मारा था, जिसने बाद में उसके घर आ कर उसका चेहरा नोच डाला था .
तब से उसने अपने को रोक कर रखा था और किसी को नहीं मारता था.
उसने मुझे यह कह कर चौका दिया कि उसे अपने ऊपर विशवास नहीँ था. मैं हैरान था क्यों कि वह अपने शरीर के हिसाब से एक शक्तिशाली आदमी था .
उसने मुझे बताया कि उसके पास अपने बारे में दूसरों की बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाए थी, इसलिए वह उन्हें अपने पास ही रखना चाहता था.
इसलियें, मैने उसे विश्वसनीयता प्रक्रिया बताई जिसे पहले मैने उसके साथ ही की.
उसके तीन भाग थे – वो क्या सोचता था, वो क्या महसूस करता था और दूसरों से वह क्या चाहता था.
मैने यह प्रक्रिया उसके साथ की और उसने मेरे साथ. वह इसे आसानी से कर सका था.
मैंने इसे एक विश्वसनीय गोष्ठी बताया. इसे जारी रखने से एक विश्वसनीय वार्तालाप होगा और यह अंत में एक विश्वसनीय संबंध बनेगा.
फिर मैंने उसे समूह में तीन लोगों के साथ ये प्रक्रिया करने को कहा. पहली तो बहुत सीधी-साधी थी. दूसरे में एक औरत ने उसे बहुत जटिल प्रतिक्रिया दी. वह घबरा गया, और इसलिये मैंने उसे एक भावुक व्यक्तव्य के साथ प्रतिक्रिया देने को कहा. मैंने उसे विशेषतया औरतों को प्रतिक्रिया देने के लिए एक फार्मूला दिया : गोष्ठी के पहले विश्वसनीय व्यक्तव्य के बाद उसे हरेक उस व्यक्तव्य के लिए, जो उसके दिमाग में आये, तीन भावुक व्यक्तव्य देने थे.
फिर उसने इस चीज का एक और व्यक्ति के साथ अभ्यास किया .
मैंने उससे पूछा कि उसको यह कैसा लगा था; उसने उत्तर दिया कि आसान.
इससे यह पता चलता था कि उसे सिर्फ थोड़ी दिशा बताने कि आवश्यकता थी, कुछ दिशानिदेश, और अभ्यास के लिए सहारा.
एक आदमी की तरह उसे स्पष्ट निर्देश पसंद थे. जैसे कि किसी के पास बहुत सारी छुपी हुई शक्ति हो, और उसे सुरक्षित तरीके से केवल बाहर निकालने कि जरूरत हो .
उसे यह भरोसा था कि वह प्रक्रिया के अभ्यास को जारी रख पायेगा.
निस्संदेह, हम उसके परिवार से उत्पन्न हुई स्थिति पर या उसकी दुविधा पर भी काम कर सकते थे. लेकिन यह ऐसा दखल था जो उसके वर्तमान एवं भविष्य पर केन्द्रित था, और इसने उसे तत्काल ही सफलता का अनुभव दिया. यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने उसके आत्मविश्वास को उभारा था. इसने उसे एक आनुभविक तरीके से सीखने का मौक़ा भी दिया, जिससे कि वह अपने लिए एक विश्वसनीय सम्पर्क प्रक्रिया को खोजता रहे.
सम्पर्क गेस्टाल्ट कि सिद्धांत और अभ्यास के लिए एक मुख्य पहलू हैं और वह इस सत्र का केन्द्रीय विषयवस्तु था.
उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उसके बड़े भाई तथा बहन के बीच लड़ाई की थी. जबकि अपने परिवार में उसको एक अच्छे लड़के का स्थान मिला था. बचपन में दो अवसरों ने उसे प्रभावित किया था. एक तब जब उसे अपने बड़े भाई पर बहुत गुस्सा आया था, और उसने उस पर कुछ फेंक कर मारा था, जिससे उसकी आँख जाते-जाते बची थी. और, दूसरा जब उसने स्कूल एक लड़के को मारा था, जिसने बाद में उसके घर आ कर उसका चेहरा नोच डाला था .
तब से उसने अपने को रोक कर रखा था और किसी को नहीं मारता था.
उसने मुझे यह कह कर चौका दिया कि उसे अपने ऊपर विशवास नहीँ था. मैं हैरान था क्यों कि वह अपने शरीर के हिसाब से एक शक्तिशाली आदमी था .
उसने मुझे बताया कि उसके पास अपने बारे में दूसरों की बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाए थी, इसलिए वह उन्हें अपने पास ही रखना चाहता था.
इसलियें, मैने उसे विश्वसनीयता प्रक्रिया बताई जिसे पहले मैने उसके साथ ही की.
उसके तीन भाग थे – वो क्या सोचता था, वो क्या महसूस करता था और दूसरों से वह क्या चाहता था.
मैने यह प्रक्रिया उसके साथ की और उसने मेरे साथ. वह इसे आसानी से कर सका था.
मैंने इसे एक विश्वसनीय गोष्ठी बताया. इसे जारी रखने से एक विश्वसनीय वार्तालाप होगा और यह अंत में एक विश्वसनीय संबंध बनेगा.
फिर मैंने उसे समूह में तीन लोगों के साथ ये प्रक्रिया करने को कहा. पहली तो बहुत सीधी-साधी थी. दूसरे में एक औरत ने उसे बहुत जटिल प्रतिक्रिया दी. वह घबरा गया, और इसलिये मैंने उसे एक भावुक व्यक्तव्य के साथ प्रतिक्रिया देने को कहा. मैंने उसे विशेषतया औरतों को प्रतिक्रिया देने के लिए एक फार्मूला दिया : गोष्ठी के पहले विश्वसनीय व्यक्तव्य के बाद उसे हरेक उस व्यक्तव्य के लिए, जो उसके दिमाग में आये, तीन भावुक व्यक्तव्य देने थे.
फिर उसने इस चीज का एक और व्यक्ति के साथ अभ्यास किया .
मैंने उससे पूछा कि उसको यह कैसा लगा था; उसने उत्तर दिया कि आसान.
इससे यह पता चलता था कि उसे सिर्फ थोड़ी दिशा बताने कि आवश्यकता थी, कुछ दिशानिदेश, और अभ्यास के लिए सहारा.
एक आदमी की तरह उसे स्पष्ट निर्देश पसंद थे. जैसे कि किसी के पास बहुत सारी छुपी हुई शक्ति हो, और उसे सुरक्षित तरीके से केवल बाहर निकालने कि जरूरत हो .
उसे यह भरोसा था कि वह प्रक्रिया के अभ्यास को जारी रख पायेगा.
निस्संदेह, हम उसके परिवार से उत्पन्न हुई स्थिति पर या उसकी दुविधा पर भी काम कर सकते थे. लेकिन यह ऐसा दखल था जो उसके वर्तमान एवं भविष्य पर केन्द्रित था, और इसने उसे तत्काल ही सफलता का अनुभव दिया. यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने उसके आत्मविश्वास को उभारा था. इसने उसे एक आनुभविक तरीके से सीखने का मौक़ा भी दिया, जिससे कि वह अपने लिए एक विश्वसनीय सम्पर्क प्रक्रिया को खोजता रहे.
सम्पर्क गेस्टाल्ट कि सिद्धांत और अभ्यास के लिए एक मुख्य पहलू हैं और वह इस सत्र का केन्द्रीय विषयवस्तु था.
शुक्रवार, 22 अगस्त 2014
Case #33 - 33 एक पूर्ण और विश्वसनीय ुलासा
जेम्स का मुद्दा था कि वह सारा हफ्ता बहुत मेहनत करता था, कभी-कभी दूसरे शहरों में भी जाता था, और फिर शुक्रवार को वह घर आता था । घर से दूर रह कर वह घर लौटने का इन्तजार करता था । उसके लिये यह महत्वपूर्ण था कि उसकी पत्नी और बच्चे घर पर मिलें और वह इस भावना के साथ लौटे कि वह घर लौट रहा था ।
परन्तु, उसकी पत्नी एक उच्च-पदस्थ मानव संसाघन प्रबंधक थी, और वह घर पर कम ही रहती थी । जब उस पर दबाव डाला जाता था तो वह कहती थी कि उसका पेशा भी महत्वपूर्ण था, और उसकी भावनाएं उसकी अपनी मुश्किल थीं ।
वह अपनी पत्नी के साथ बहुत वर्षों से रह रहा था, और दोनों ही व्यक्तिगत बढ़त तथा ज्योतिष में रुचि रखते थे । वह अपने आप को कर्क राशि का बताता था, जो भावुक होते हैं ।
उनका संबंध बहुत गहरा और प्यार भरा था, लेकिन उनमें बहुत झगड़े भी होते थे जिन्हे वह कम करना चाहता था और संबंध में सुधार लाना चाहता था ।
इससे मुझे हस्तक्षेप के लिये संदर्भ मिल गया ।
मैंने उससे उसकी पत्नी के लिये उतनी ही कोई महत्वपूर्ण चीज पूछी जो वह उसे देना चाहेगा । उसने कहा जब वह कोई अपने दफ्तर में प्रस्तुति (प्रेसेंटेशन) करती थी, और उसके साथ सांझा करती थी, तो वह उससे मान्यता और प्रशंसा चाहती थी ।
मैंने उससे किसी दूसरी चीज के बारे में पूछा । उसने बताया कि जब वह कोई पुस्तक पढ़ती थी (सामान्यतया व्यक्तिगत विकास पर), तो वो चाहती थी कि वह भी उसे पढ़े और उसके बारे में बात करे ।
मैंने पूछा क्या वह इन दोंनों में से कुछ करता था । उसने कहा, कुछ हद तक…परन्तु उसकी तसल्ली के मुताबिक नहीं ।
इसलिये, मैंने यह सुझाव दिया कि पहले वो उसके उन दोनों निवेदनों को गंभीरता से ले, और दोनों को तहेदिल से करे ।
मैंने सुझाव दिया कि ऐसा करने के कुछ समय पश्चात वह उसे एक पूर्ण, जटिल तथा विश्वसनीय व्यक्तव्य दे कि उसके लिये शुक्रवार रात को उसका घर पर रहना क्या मायने रखता था ।
इससे मेरा क्या मतलब था, मैंने यह अपने जीवन के एक उदाहरण से दर्शाया :
बड़े होते हुए, जन्मदिन का हमारे घर में बहुत ही विशेष स्थान होता था । जबकि मेरी पत्नी का जन्मदिन मुश्किल से ही मनाया जाता था; और ऐसा कई बार होता था कि जब उसकी पत्नी की बहन का जन्मदिन मनाया जाता था, लेकिन उसका नहीं मनाया जाता था ।
इसका नतीजा यह हुआ कि उसे जन्मदिन के लिये कोई उत्साह नहीं होता था; वह अपने जन्मदिन को सरल और निजी रूप में मनाना पसन्द करती थी ।
मैं एक विशेष दिन की उम्मीद करता था, जो बहुत सी ऐसी चीजों के साथ ऐसा लगे कि वह 'मेरा दिन' था । बहुत से ऐसे अवसर थे जब यह सब उसने मेरे तरीके से नहीं किया जैसा कि मैं चाहता था, और मुझे बहुत चोट पहुँचती थी; ऐसा कुछ जो उसके लिये समझना बड़ा मुश्किल था ।
इसलिये, मेरा पूर्ण और जटिल व्यक्तव्य कुछ इस प्रकार था ;
मैं यह जानता हूँ जन्मदिन तुम्हारे लिये बहुत भारी पड़ते हैं, और ये कि तुम्हे अपने बचपन में इसका अच्छा अनुभव नहीं हुआ । मैं जानता हूँ कि तुमने मेरे जन्मदिन को एक अच्छा अवसर बनाने के लिये भरपूर कोशिश की है, और उसके लिये मैं बहुत आभारी हूँ । और मैंने यह भी अनुभव किया है कि ऐसा भी समय आया है कि कई कारणों से तुम अपने-आप को सही जगह पर महसूस नहीं करती हो, कुछ अतिरिक्त कोशिश करने के लिये, या किसी खास मात्रा से ज्यादा करने के लिये । मैं यह समझता हूँ कि यह तुम्हारे लिये उस भावना से संबंधित है जो तुम समझती हो कि वास्तव में तुम्हारे पास देने के लिये कितना है, और ये कि तुम इससे ज्यादा अपने जन्मदिन पर उम्मीद नहीं करती हो । परन्तु, मैं तुम्हारे साथ अलग हूँ । जन्मदिन मेरे को भी दूसरे तरीके से भारी लगते हैं । क्योंकि मेरे लिये उनके विशेष होने की परम्परा थी, उसके पीछे मेरी उम्मीद और आशा थी कि मैं उस दिन सबसे 'पहले' रहूँ । और ये कि अगर तुम अच्छी मनोदशा में नहीं हो, तो तुम उसको एक दिन के लिये भूल जाओगी, सिर्फ उस दिन के लिये, ताकि मैं यह महसूस कर सकूँ कि मुझे विशेष व्यवहार मिल रहा है । वह मेरे लिये बहुत मायने रखेगा, और इससे भी ज्यादा क्योंकि मुझे मालुम है कि यह तुम्हारे लिये हमेशा आसान नहीं है । तुम्हे यह कहते हुए मुझे कुछ घबराहट हो रही है, क्योंकि मेरे लिये यह महत्वपूर्ण है, और इसलिये तुम्हारे लिये यह मुशिकल विषय है ।
जेम्स को मेरे अपने जीवन से व्यक्तिग्त उदाहरण देने से वह यह समझ सकता था कि अपने इस मुद्दे के लिये एक जटिल विश्वसनीय व्यक्तव्य कैसे बनाया जाये ।
गेस्टाल्ट संबंधों में गहराई एवँ विश्वसनीयता लाने के बारे में है, और जुड़ाव और धनिष्ठता को बढ़ाने के बारे में है । यह एक तरीके का उदाहरण है जिसे हम अपने उस आसामी के लिये करते हैं जो बातचीत करने की मूल जानकारी से ज्यादा जानते हैं ।
परन्तु, उसकी पत्नी एक उच्च-पदस्थ मानव संसाघन प्रबंधक थी, और वह घर पर कम ही रहती थी । जब उस पर दबाव डाला जाता था तो वह कहती थी कि उसका पेशा भी महत्वपूर्ण था, और उसकी भावनाएं उसकी अपनी मुश्किल थीं ।
वह अपनी पत्नी के साथ बहुत वर्षों से रह रहा था, और दोनों ही व्यक्तिगत बढ़त तथा ज्योतिष में रुचि रखते थे । वह अपने आप को कर्क राशि का बताता था, जो भावुक होते हैं ।
उनका संबंध बहुत गहरा और प्यार भरा था, लेकिन उनमें बहुत झगड़े भी होते थे जिन्हे वह कम करना चाहता था और संबंध में सुधार लाना चाहता था ।
इससे मुझे हस्तक्षेप के लिये संदर्भ मिल गया ।
मैंने उससे उसकी पत्नी के लिये उतनी ही कोई महत्वपूर्ण चीज पूछी जो वह उसे देना चाहेगा । उसने कहा जब वह कोई अपने दफ्तर में प्रस्तुति (प्रेसेंटेशन) करती थी, और उसके साथ सांझा करती थी, तो वह उससे मान्यता और प्रशंसा चाहती थी ।
मैंने उससे किसी दूसरी चीज के बारे में पूछा । उसने बताया कि जब वह कोई पुस्तक पढ़ती थी (सामान्यतया व्यक्तिगत विकास पर), तो वो चाहती थी कि वह भी उसे पढ़े और उसके बारे में बात करे ।
मैंने पूछा क्या वह इन दोंनों में से कुछ करता था । उसने कहा, कुछ हद तक…परन्तु उसकी तसल्ली के मुताबिक नहीं ।
इसलिये, मैंने यह सुझाव दिया कि पहले वो उसके उन दोनों निवेदनों को गंभीरता से ले, और दोनों को तहेदिल से करे ।
मैंने सुझाव दिया कि ऐसा करने के कुछ समय पश्चात वह उसे एक पूर्ण, जटिल तथा विश्वसनीय व्यक्तव्य दे कि उसके लिये शुक्रवार रात को उसका घर पर रहना क्या मायने रखता था ।
इससे मेरा क्या मतलब था, मैंने यह अपने जीवन के एक उदाहरण से दर्शाया :
बड़े होते हुए, जन्मदिन का हमारे घर में बहुत ही विशेष स्थान होता था । जबकि मेरी पत्नी का जन्मदिन मुश्किल से ही मनाया जाता था; और ऐसा कई बार होता था कि जब उसकी पत्नी की बहन का जन्मदिन मनाया जाता था, लेकिन उसका नहीं मनाया जाता था ।
इसका नतीजा यह हुआ कि उसे जन्मदिन के लिये कोई उत्साह नहीं होता था; वह अपने जन्मदिन को सरल और निजी रूप में मनाना पसन्द करती थी ।
मैं एक विशेष दिन की उम्मीद करता था, जो बहुत सी ऐसी चीजों के साथ ऐसा लगे कि वह 'मेरा दिन' था । बहुत से ऐसे अवसर थे जब यह सब उसने मेरे तरीके से नहीं किया जैसा कि मैं चाहता था, और मुझे बहुत चोट पहुँचती थी; ऐसा कुछ जो उसके लिये समझना बड़ा मुश्किल था ।
इसलिये, मेरा पूर्ण और जटिल व्यक्तव्य कुछ इस प्रकार था ;
मैं यह जानता हूँ जन्मदिन तुम्हारे लिये बहुत भारी पड़ते हैं, और ये कि तुम्हे अपने बचपन में इसका अच्छा अनुभव नहीं हुआ । मैं जानता हूँ कि तुमने मेरे जन्मदिन को एक अच्छा अवसर बनाने के लिये भरपूर कोशिश की है, और उसके लिये मैं बहुत आभारी हूँ । और मैंने यह भी अनुभव किया है कि ऐसा भी समय आया है कि कई कारणों से तुम अपने-आप को सही जगह पर महसूस नहीं करती हो, कुछ अतिरिक्त कोशिश करने के लिये, या किसी खास मात्रा से ज्यादा करने के लिये । मैं यह समझता हूँ कि यह तुम्हारे लिये उस भावना से संबंधित है जो तुम समझती हो कि वास्तव में तुम्हारे पास देने के लिये कितना है, और ये कि तुम इससे ज्यादा अपने जन्मदिन पर उम्मीद नहीं करती हो । परन्तु, मैं तुम्हारे साथ अलग हूँ । जन्मदिन मेरे को भी दूसरे तरीके से भारी लगते हैं । क्योंकि मेरे लिये उनके विशेष होने की परम्परा थी, उसके पीछे मेरी उम्मीद और आशा थी कि मैं उस दिन सबसे 'पहले' रहूँ । और ये कि अगर तुम अच्छी मनोदशा में नहीं हो, तो तुम उसको एक दिन के लिये भूल जाओगी, सिर्फ उस दिन के लिये, ताकि मैं यह महसूस कर सकूँ कि मुझे विशेष व्यवहार मिल रहा है । वह मेरे लिये बहुत मायने रखेगा, और इससे भी ज्यादा क्योंकि मुझे मालुम है कि यह तुम्हारे लिये हमेशा आसान नहीं है । तुम्हे यह कहते हुए मुझे कुछ घबराहट हो रही है, क्योंकि मेरे लिये यह महत्वपूर्ण है, और इसलिये तुम्हारे लिये यह मुशिकल विषय है ।
जेम्स को मेरे अपने जीवन से व्यक्तिग्त उदाहरण देने से वह यह समझ सकता था कि अपने इस मुद्दे के लिये एक जटिल विश्वसनीय व्यक्तव्य कैसे बनाया जाये ।
गेस्टाल्ट संबंधों में गहराई एवँ विश्वसनीयता लाने के बारे में है, और जुड़ाव और धनिष्ठता को बढ़ाने के बारे में है । यह एक तरीके का उदाहरण है जिसे हम अपने उस आसामी के लिये करते हैं जो बातचीत करने की मूल जानकारी से ज्यादा जानते हैं ।
मंगलवार, 19 अगस्त 2014
Case #32 - विश्वसनीय साधन
डायने के दो मुद्दे थे । पहला मुद्दा यह था कि उसका पहला लड़का, जो 12 वर्ष का था, पढ़ाई में उतनी मेहनत नहीं करता था जितनी कि वह चाहती थी ।
मैंने उसे पैमाने पर नाप के अनुसार बताने के लिये कहा कि वह कितना अच्छा कर रहा था । उसने बताया कि 6 या 7 । क्या वह अपना गृहकार्य करता था ? हाँ । लेकिन वास्तविकता यह है एक अच्छे स्कूल में दाखिले के लिये किसी बच्चे को बहुत अच्चे नम्बर चाहिये होते हैं, और इसलिये उस पर दबाव बना हुआ था ।
पहले तो मैंने अपने विचारों के अनुसार जवाब दिया - माता-पिता पर आधारित बच्चों के पालन-पोषण पर मे्री धारणाएँ – एक बच्चे के संतुलित जीवन पर मेरी धारणाएँ, और मेरे मूल्य कि शिक्षा के क्षेत्र की उपल्बधियाँ ही अंतिम लक्षय नहीं होती ।
मेरे लिये अपनी स्थिति को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण था, और विचारों में अंतर की सीमाओं को महसूस करना, और यह जानना कि उसे सहायता देने की मेरी इच्छा (और उसकी सीमाएँ) उसके कितने काम आ सकती थी ।
उसमें दवंद चल रहा था, क्योंकि इससे पहले उसने पालन-पोषण पर बहुत सारी पुस्तके पढ़ी थी, और उसके लिये कुछ अपने लिए समय देने की कोशिश की थी, लेकिन वह उसके भविष्य के लिये चिंतित थी, और नहीं जानती थी कि प्रभावपूर्ण ढ़ंग से उसे कैसे प्रेरित करे ।
इसलिये मेरा प्रस्ताव था कि वह उसके साथ बैठ कर पहले तो यह बताये कि उसके बड़े होने में उसके लिये क्या महत्वपूर्ण था ।
फिर वह उसको उस वस्तुस्थिति से परिचित करायेगी जिसका वह सामना कर रहा था – एक सामाजिक और स्कूल की व्यवस्था जिसमें बहुत ही ज्यादा प्रतिस्पर्धा थी, और जिसमें विशेष संस्थान में दाखिला लेने के लिये विशेष ग्रेड पाने की आवश्यकता थी । वह भांति-भांति के संस्थानों के बारे में पता लगायेगी, उनकी जरूरतें, तथा उनमें दाखिले के फायदे और नुक्सान के बारे में पता लगायेगी ।
फिर वह उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता करेगी, वह कहाँ तक पहुँचना चाहता था, और यह सब करने के लिये वो क्या करना चाहता था ।
इस तरीके से वह पूरी तरह से विश्वसनीय हो सकती थी, जबकि साथ ही साथ वह उसे अपना रास्ता पाने के लिये सहायता भी कर सकती थी । उसको सहायता देने के लिये उसकी सहमती और इच्छा को तब उस दिशा में मोड़ा जा सकता था जिसमें उसके द्वारा चुने गये विकल्पों को सहारा मिल सके, बजाय इसके कि वह उसके लिये विकल्प चुने ।
उसका दूसरा मुद्दा उसके पति के साथ संबंध के बारे में था । वो घर आने बाद बीयर लेता था, अखबार पढ़ता था, अपने ब्लाग पर लिखता था, और उसे व बच्चों को पूरी तरह से अनदेखा कर देता था ।
स्पष्टत:, वह इस स्थिति से खुश नहीं थी, लेकिन इसके लिये कोई रास्ता नहीं ढूँढ सकी थी ।
बाकी चीजों में, वह पारिवारिक जीवन में भाग लेता था, परिवार को घुमाने ले जाता था, परिवार के साथ समय व्यतीत करता था और कभी-कभी खाना भी बनाता था ।
वह कोई खास बातचीत करने वाला नहीं था, इसलिये यह कुछ नया नहीं था ।
मुझे यह स्पष्ट था कि उसको डांटने से, उससे कुछ माँगने से, या फिर यह भी सुझाव देना कि वह उससे कुछ विश्वसनीय तरीके से बात करे प्रभावकारी नहीं होगा ।
मैंने उसके ब्लाग के बारे में पूछा । उसने बताया कि ब्लाग बड़ा ही स्पष्ट और मजेदार था । वह इसमें मजेदार टिप्पणियों के साथ चित्र भी जोड़ता था । उसकी इच्छा होती थी कि काश वह उसके साथ भी वैसे ही बात करे ।
मेरे लिये रास्ता स्पष्ट था । वह उसे बदलेगी नहीं, परन्तु वह उसका साथ दे सकती थी ।
मैंने पूछा कि क्या उसके पति के पास आई-पैड़ था । उसने बताया कि वह उसने छुपा दिया था ।
मैंने उससे कहा कि वह उसे तत्काल ही आई-पैड दे दे, और एक अपने लिये खरीद ले । फिर वह उसके साथ लिख कर बातचीत कर सकती थी । वह उसके ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती थी (वह उन लोगों को जवाब देता, जो ऐसा करते थे) । वह उसे नोट, पत्र, एक वाक्य भेज सकती थी । जब भी वह अखबार पढ़ रहा होगा, वह उसे छोटी-छोटी टिप्पणियाँ भेज सकती थी । वह पत्र लिख कर और उनको छाप कर डाक द्वारा भेज सकती थी या उसके तकिये के नीचे रख सकती थी ।
इस तरीके से मैं उस चीज का उपयोग कर रहा था जो उपलब्ध थी । यह उसके मन के भीतर की गतिशीलता पर असर नहीं कर रहा था, और मैंने उसकी इस धारणा को, कि वह उस पर इसलिये धयान नहीं दे रहा था कि उसमें कुछ गल्त है, बल देने से इन्कार कर दिया । इसके बजाय मैंने यह देखा कि कहाँ पर साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह रचनात्मक रूप से उस से सम्पर्क कर सके ताकि वह संबंध के बंद बक्से से बाहर आ सके ।
मैंने उसे पैमाने पर नाप के अनुसार बताने के लिये कहा कि वह कितना अच्छा कर रहा था । उसने बताया कि 6 या 7 । क्या वह अपना गृहकार्य करता था ? हाँ । लेकिन वास्तविकता यह है एक अच्छे स्कूल में दाखिले के लिये किसी बच्चे को बहुत अच्चे नम्बर चाहिये होते हैं, और इसलिये उस पर दबाव बना हुआ था ।
पहले तो मैंने अपने विचारों के अनुसार जवाब दिया - माता-पिता पर आधारित बच्चों के पालन-पोषण पर मे्री धारणाएँ – एक बच्चे के संतुलित जीवन पर मेरी धारणाएँ, और मेरे मूल्य कि शिक्षा के क्षेत्र की उपल्बधियाँ ही अंतिम लक्षय नहीं होती ।
मेरे लिये अपनी स्थिति को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण था, और विचारों में अंतर की सीमाओं को महसूस करना, और यह जानना कि उसे सहायता देने की मेरी इच्छा (और उसकी सीमाएँ) उसके कितने काम आ सकती थी ।
उसमें दवंद चल रहा था, क्योंकि इससे पहले उसने पालन-पोषण पर बहुत सारी पुस्तके पढ़ी थी, और उसके लिये कुछ अपने लिए समय देने की कोशिश की थी, लेकिन वह उसके भविष्य के लिये चिंतित थी, और नहीं जानती थी कि प्रभावपूर्ण ढ़ंग से उसे कैसे प्रेरित करे ।
इसलिये मेरा प्रस्ताव था कि वह उसके साथ बैठ कर पहले तो यह बताये कि उसके बड़े होने में उसके लिये क्या महत्वपूर्ण था ।
फिर वह उसको उस वस्तुस्थिति से परिचित करायेगी जिसका वह सामना कर रहा था – एक सामाजिक और स्कूल की व्यवस्था जिसमें बहुत ही ज्यादा प्रतिस्पर्धा थी, और जिसमें विशेष संस्थान में दाखिला लेने के लिये विशेष ग्रेड पाने की आवश्यकता थी । वह भांति-भांति के संस्थानों के बारे में पता लगायेगी, उनकी जरूरतें, तथा उनमें दाखिले के फायदे और नुक्सान के बारे में पता लगायेगी ।
फिर वह उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता करेगी, वह कहाँ तक पहुँचना चाहता था, और यह सब करने के लिये वो क्या करना चाहता था ।
इस तरीके से वह पूरी तरह से विश्वसनीय हो सकती थी, जबकि साथ ही साथ वह उसे अपना रास्ता पाने के लिये सहायता भी कर सकती थी । उसको सहायता देने के लिये उसकी सहमती और इच्छा को तब उस दिशा में मोड़ा जा सकता था जिसमें उसके द्वारा चुने गये विकल्पों को सहारा मिल सके, बजाय इसके कि वह उसके लिये विकल्प चुने ।
उसका दूसरा मुद्दा उसके पति के साथ संबंध के बारे में था । वो घर आने बाद बीयर लेता था, अखबार पढ़ता था, अपने ब्लाग पर लिखता था, और उसे व बच्चों को पूरी तरह से अनदेखा कर देता था ।
स्पष्टत:, वह इस स्थिति से खुश नहीं थी, लेकिन इसके लिये कोई रास्ता नहीं ढूँढ सकी थी ।
बाकी चीजों में, वह पारिवारिक जीवन में भाग लेता था, परिवार को घुमाने ले जाता था, परिवार के साथ समय व्यतीत करता था और कभी-कभी खाना भी बनाता था ।
वह कोई खास बातचीत करने वाला नहीं था, इसलिये यह कुछ नया नहीं था ।
मुझे यह स्पष्ट था कि उसको डांटने से, उससे कुछ माँगने से, या फिर यह भी सुझाव देना कि वह उससे कुछ विश्वसनीय तरीके से बात करे प्रभावकारी नहीं होगा ।
मैंने उसके ब्लाग के बारे में पूछा । उसने बताया कि ब्लाग बड़ा ही स्पष्ट और मजेदार था । वह इसमें मजेदार टिप्पणियों के साथ चित्र भी जोड़ता था । उसकी इच्छा होती थी कि काश वह उसके साथ भी वैसे ही बात करे ।
मेरे लिये रास्ता स्पष्ट था । वह उसे बदलेगी नहीं, परन्तु वह उसका साथ दे सकती थी ।
मैंने पूछा कि क्या उसके पति के पास आई-पैड़ था । उसने बताया कि वह उसने छुपा दिया था ।
मैंने उससे कहा कि वह उसे तत्काल ही आई-पैड दे दे, और एक अपने लिये खरीद ले । फिर वह उसके साथ लिख कर बातचीत कर सकती थी । वह उसके ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती थी (वह उन लोगों को जवाब देता, जो ऐसा करते थे) । वह उसे नोट, पत्र, एक वाक्य भेज सकती थी । जब भी वह अखबार पढ़ रहा होगा, वह उसे छोटी-छोटी टिप्पणियाँ भेज सकती थी । वह पत्र लिख कर और उनको छाप कर डाक द्वारा भेज सकती थी या उसके तकिये के नीचे रख सकती थी ।
इस तरीके से मैं उस चीज का उपयोग कर रहा था जो उपलब्ध थी । यह उसके मन के भीतर की गतिशीलता पर असर नहीं कर रहा था, और मैंने उसकी इस धारणा को, कि वह उस पर इसलिये धयान नहीं दे रहा था कि उसमें कुछ गल्त है, बल देने से इन्कार कर दिया । इसके बजाय मैंने यह देखा कि कहाँ पर साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह रचनात्मक रूप से उस से सम्पर्क कर सके ताकि वह संबंध के बंद बक्से से बाहर आ सके ।
शनिवार, 16 अगस्त 2014
Case #31 - धनिष्ठता के लिये यौन-ापार
लुई ने कहा कि उसे अपने संबंध में ज्यादा जुनून चाहिये था ।
उसके पति का 5 वर्ष पहले एक प्रेम-प्रसंग था । वह लगभग एक वर्ष तक रहा । उसने उसे स्वीकारा और अपने घुटनों पर बैठ कर माफी माँगी और उस प्रेम-प्रसंग को समाप्त कर दिया ।
उसके बाद से चीजें धीरे-धीरे अच्छी हो रही थीं , लेकिन अभी भी लुई के कुछ मुद्दे बाकी थे ।
जब उसके पति ने उसे पहली बार प्रेम-प्रसंग के बारे में बाताया था तो उसने विवेकशील तरीके से उत्तर दिया, उससे ये पूछ कर कि क्या वह शादी को तोड़ रहा था या नहीं । उसका स्थिति से निपटने का तरीका एकदम से स्थिति को आँकना था, और यह जानना था कि उसका पति और वह कहाँ पर खड़े थे । वह बचाव की एक अच्छी शुरूआती युक्ति थी ।
लेकिन बाद में उसको बहुत उदासी महसूस हुई ।
अभी कुछ दिनों से, उसे बहुत गुस्सा भी आ रहा था ।
लेकिन यह ऐसा कुछ नहीं था जिसको उसने उठाया था । उसके पति ने उससे कहा था कि यदि वह अभी भी गुस्सा थी तो वह उसको छोड़ने के लिये तैयार था (अपने अपराधबोध के कारण) । इसलिये उसे यह डर था कि वह अभी भी उसको छोड़ सकता था यदि वह अपनी भावनाएँ दर्शाती है ।
लेकिन यह बात उसे खाये जा रही थी । और यद्यपि उनके संबंध में बहुत सी अच्छी बातें हैं, वह दोबारा उससे ठीक तरह से खुल नहीं पाई थी, यौन-क्रिया के स्तर को ले कर – उसने कुछ थोड़ा-बहुत छुपा लिया था । मैंने उससे पूछा कि वो यौन-क्रिया कितनी बार करते हैं – महीने में लगभग 4 बार ।
मैंने उससे पूछा कि वो कितनी देर बात करते हैं – औसतन लगभग आधा घंटा प्रतिदिन ।
मैंने उसको अपने पति के बौद्धिक भावुक स्तर का मूल्यांकन करने के लिये कहा । उसने 3 बताया । अब यह मुझे स्पष्ट हो गया था कि उसका पति उसकी बात वैसे नहीं सुनेगा जो इन परिस्थितों में वह उससे चाहती थी । उस पर अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिये काम करने से कोई लाभ नहीं था; यह उसका अपना कुछ गुस्सा बाहर निकाल सकती थी, लेकिन वास्तव में यह उनकी घनिष्ठता को बढ़ा नहीं सकता था क्योंकि उसके पति से उसे कुछ खास मिलने वाला नहीं था। और उसके पति से ये बात किये बिना कि उसके साथ क्या हो रहा था, उनका संबंध कुछ स्तही स्तर पर ही रहेगा ।
गेस्टाल्ट 'क्षमायाचना' पर काम नहीं करता, यद्यपि यह 'क्या है' पर जोर देता है । लेकिन इस मामले में, बहुत से अन्य विकल्प थे जिनके बारे में उसे पता नहीं था । लुई एक अधयापक थी, और उसने बताया कि उसने अपने पढ़ाने की शैली को अभी हाल ही में बदला था जिसमें 'चाहिये और नहीं चाहिये' को छोड़ दिया था, और उसने अपनी कक्षा में एक धीमा और महत्वपूर्ण बदलाव पाया था । इसी के साथ-साथ वह स्वयं को भी खोज रही थी ।
इसलिये, मैं यह जानता था कि उसके पास अपने साधन हैं, और वह स्पष्ट रुप से अपने विकास के ऊपर कार्य कर रही थी । लेकिन इससे वास्तव में यह बात उन दोनों के संबंध के बीच नहीं आई
थी ।
मेरा धयान उन दोनों के संबंध के मुद्दे पर था, बजाय लुई के साथ अंतरात्मिक तौर पर या मेरे साथ पारस्परिक तौर पर भी ।
इसलिये मैने उसे कुछ गृहकार्य करने का सुझाव दिया ।
मूलत: यह एक सौदा था ; धनिष्ठता के लिये अधिक यौन-क्रिया ।
मैंने सुझाव दिया कि वो अपने पति से कहे कि वह ज्यादा यौन-क्रिया चाहती थी, और अधिक नजदीकी चाहती थी । उसे यह सब इसलिये करना था क्योंकि वह ज्यादा धनिष्ठता चाहती थी ।
इसलिये, उसे पाने के लिये वह दोनों रोजाना ½ घंटा साथ में व्यतीत करें जिससे कि उनके संबंध में धनिष्ठता पैदा हो। मैंने उसे बहुत से विकल्प बताये – छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से विश्वसनीय ढंग से बातचीत करने का अभ्यास करना; एक साथ कोई किताब पढ़ना और उस पर वार्ता करना; किसी व्यायाम का अभ्यास एक साथ करना, जैसे कि सुनना, या भावनओं को जाहिर करना; एक-दूसरे के गुस्से की बात सुनने के लिये एक-दूसरे को मौका देना; या फिर उस समय में कुछ चीजों को एक साथ करना जिससे कि उनकी नजदीकी और आपसी जुड़ाव की भावना बढ़े ।
मैं उससे सहमत था कि यह अनुचित था । वो एक तरीके से अधयापक का किरदार कर रही थी, इसके लिये योजना बना रही थी और उसको अपने तरीके से करने की कोशिश कर रही थी ताकि वह अपना गुस्सा सुरक्षित तरीके से जता सके । यह उचित नहीं था, क्योंकि वह उस तरह से दोगुना कार्य कर रही थी ।
परन्तु, इसके कुछ और अनगिनित गौण फायदे भी होंगें, और इससे वह अपने संबंध में भावुकता लाने के अपने लक्ष्य को भी पा लेगी ।
इसका नतीजा ये होगा कि वह दोनों एक ही पृष्ठभूमि पर होंगें, बजाय इसके कि इससे उसको अपनी व्यक्तिगत जागरुकता ही मिले ।
इस दृष्टिकोण में 'एक जोड़े के संबंध पर एक ही व्यक्ति द्वारा काम करने' का इस्तेमाल किया
गया । अर्थात, जब हम किसी आसामी के साथ काम कर रहे होते हैं तो हम संबंध को सबसे आगे रखते हैं । उनके ऊपर केन्द्रित होने के बजाय, हम यह देखते हैं कि संबंध को कैसे मजबूत करें । बहुत सारी भावनाएँ, पहचान और कहानियाँ एक जोड़े के संबंध का नतीजा हैं । इसलिये, एक ही तरफ बदलाव ला कर हम संबंध में बदलाव ला सकते हैं, बजाय इसके कि हम एक ही व्यक्ति के अनुभव पर केन्द्रित हों । यह एक समुचित दृष्टिकोण को अपनाना है, हिस्सों पर काम करने की बजाय पूरे मुद्दे पर काम करना ।
यह बहुत ही स्वार्थी लगता था कि व्यवहार को बदलने के लिये यौन-क्रिया को इस्तेमाल किया जाये – लेकिन लोग ऐसा बिना जाने ही करते हैं । जो हमने किया है उसकी जिम्मेवारी लेना और संबंधों में सबसे आगे लाना दूसरे व्यक्ति को दर-असल विकल्प दे देता है । उस तरीके से ऐसा प्रस्ताव कोई जोड़-तोड़ नहीं है, लेकिन इसके बजाय एक इमानदार प्रस्ताव है । और इस संदर्भ में किसी चीज के लिये ऐसा लेन-देन जोड़े के संबंध को प्रगाढ़ करेगा ।
उसके पति का 5 वर्ष पहले एक प्रेम-प्रसंग था । वह लगभग एक वर्ष तक रहा । उसने उसे स्वीकारा और अपने घुटनों पर बैठ कर माफी माँगी और उस प्रेम-प्रसंग को समाप्त कर दिया ।
उसके बाद से चीजें धीरे-धीरे अच्छी हो रही थीं , लेकिन अभी भी लुई के कुछ मुद्दे बाकी थे ।
जब उसके पति ने उसे पहली बार प्रेम-प्रसंग के बारे में बाताया था तो उसने विवेकशील तरीके से उत्तर दिया, उससे ये पूछ कर कि क्या वह शादी को तोड़ रहा था या नहीं । उसका स्थिति से निपटने का तरीका एकदम से स्थिति को आँकना था, और यह जानना था कि उसका पति और वह कहाँ पर खड़े थे । वह बचाव की एक अच्छी शुरूआती युक्ति थी ।
लेकिन बाद में उसको बहुत उदासी महसूस हुई ।
अभी कुछ दिनों से, उसे बहुत गुस्सा भी आ रहा था ।
लेकिन यह ऐसा कुछ नहीं था जिसको उसने उठाया था । उसके पति ने उससे कहा था कि यदि वह अभी भी गुस्सा थी तो वह उसको छोड़ने के लिये तैयार था (अपने अपराधबोध के कारण) । इसलिये उसे यह डर था कि वह अभी भी उसको छोड़ सकता था यदि वह अपनी भावनाएँ दर्शाती है ।
लेकिन यह बात उसे खाये जा रही थी । और यद्यपि उनके संबंध में बहुत सी अच्छी बातें हैं, वह दोबारा उससे ठीक तरह से खुल नहीं पाई थी, यौन-क्रिया के स्तर को ले कर – उसने कुछ थोड़ा-बहुत छुपा लिया था । मैंने उससे पूछा कि वो यौन-क्रिया कितनी बार करते हैं – महीने में लगभग 4 बार ।
मैंने उससे पूछा कि वो कितनी देर बात करते हैं – औसतन लगभग आधा घंटा प्रतिदिन ।
मैंने उसको अपने पति के बौद्धिक भावुक स्तर का मूल्यांकन करने के लिये कहा । उसने 3 बताया । अब यह मुझे स्पष्ट हो गया था कि उसका पति उसकी बात वैसे नहीं सुनेगा जो इन परिस्थितों में वह उससे चाहती थी । उस पर अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिये काम करने से कोई लाभ नहीं था; यह उसका अपना कुछ गुस्सा बाहर निकाल सकती थी, लेकिन वास्तव में यह उनकी घनिष्ठता को बढ़ा नहीं सकता था क्योंकि उसके पति से उसे कुछ खास मिलने वाला नहीं था। और उसके पति से ये बात किये बिना कि उसके साथ क्या हो रहा था, उनका संबंध कुछ स्तही स्तर पर ही रहेगा ।
गेस्टाल्ट 'क्षमायाचना' पर काम नहीं करता, यद्यपि यह 'क्या है' पर जोर देता है । लेकिन इस मामले में, बहुत से अन्य विकल्प थे जिनके बारे में उसे पता नहीं था । लुई एक अधयापक थी, और उसने बताया कि उसने अपने पढ़ाने की शैली को अभी हाल ही में बदला था जिसमें 'चाहिये और नहीं चाहिये' को छोड़ दिया था, और उसने अपनी कक्षा में एक धीमा और महत्वपूर्ण बदलाव पाया था । इसी के साथ-साथ वह स्वयं को भी खोज रही थी ।
इसलिये, मैं यह जानता था कि उसके पास अपने साधन हैं, और वह स्पष्ट रुप से अपने विकास के ऊपर कार्य कर रही थी । लेकिन इससे वास्तव में यह बात उन दोनों के संबंध के बीच नहीं आई
थी ।
मेरा धयान उन दोनों के संबंध के मुद्दे पर था, बजाय लुई के साथ अंतरात्मिक तौर पर या मेरे साथ पारस्परिक तौर पर भी ।
इसलिये मैने उसे कुछ गृहकार्य करने का सुझाव दिया ।
मूलत: यह एक सौदा था ; धनिष्ठता के लिये अधिक यौन-क्रिया ।
मैंने सुझाव दिया कि वो अपने पति से कहे कि वह ज्यादा यौन-क्रिया चाहती थी, और अधिक नजदीकी चाहती थी । उसे यह सब इसलिये करना था क्योंकि वह ज्यादा धनिष्ठता चाहती थी ।
इसलिये, उसे पाने के लिये वह दोनों रोजाना ½ घंटा साथ में व्यतीत करें जिससे कि उनके संबंध में धनिष्ठता पैदा हो। मैंने उसे बहुत से विकल्प बताये – छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से विश्वसनीय ढंग से बातचीत करने का अभ्यास करना; एक साथ कोई किताब पढ़ना और उस पर वार्ता करना; किसी व्यायाम का अभ्यास एक साथ करना, जैसे कि सुनना, या भावनओं को जाहिर करना; एक-दूसरे के गुस्से की बात सुनने के लिये एक-दूसरे को मौका देना; या फिर उस समय में कुछ चीजों को एक साथ करना जिससे कि उनकी नजदीकी और आपसी जुड़ाव की भावना बढ़े ।
मैं उससे सहमत था कि यह अनुचित था । वो एक तरीके से अधयापक का किरदार कर रही थी, इसके लिये योजना बना रही थी और उसको अपने तरीके से करने की कोशिश कर रही थी ताकि वह अपना गुस्सा सुरक्षित तरीके से जता सके । यह उचित नहीं था, क्योंकि वह उस तरह से दोगुना कार्य कर रही थी ।
परन्तु, इसके कुछ और अनगिनित गौण फायदे भी होंगें, और इससे वह अपने संबंध में भावुकता लाने के अपने लक्ष्य को भी पा लेगी ।
इसका नतीजा ये होगा कि वह दोनों एक ही पृष्ठभूमि पर होंगें, बजाय इसके कि इससे उसको अपनी व्यक्तिगत जागरुकता ही मिले ।
इस दृष्टिकोण में 'एक जोड़े के संबंध पर एक ही व्यक्ति द्वारा काम करने' का इस्तेमाल किया
गया । अर्थात, जब हम किसी आसामी के साथ काम कर रहे होते हैं तो हम संबंध को सबसे आगे रखते हैं । उनके ऊपर केन्द्रित होने के बजाय, हम यह देखते हैं कि संबंध को कैसे मजबूत करें । बहुत सारी भावनाएँ, पहचान और कहानियाँ एक जोड़े के संबंध का नतीजा हैं । इसलिये, एक ही तरफ बदलाव ला कर हम संबंध में बदलाव ला सकते हैं, बजाय इसके कि हम एक ही व्यक्ति के अनुभव पर केन्द्रित हों । यह एक समुचित दृष्टिकोण को अपनाना है, हिस्सों पर काम करने की बजाय पूरे मुद्दे पर काम करना ।
यह बहुत ही स्वार्थी लगता था कि व्यवहार को बदलने के लिये यौन-क्रिया को इस्तेमाल किया जाये – लेकिन लोग ऐसा बिना जाने ही करते हैं । जो हमने किया है उसकी जिम्मेवारी लेना और संबंधों में सबसे आगे लाना दूसरे व्यक्ति को दर-असल विकल्प दे देता है । उस तरीके से ऐसा प्रस्ताव कोई जोड़-तोड़ नहीं है, लेकिन इसके बजाय एक इमानदार प्रस्ताव है । और इस संदर्भ में किसी चीज के लिये ऐसा लेन-देन जोड़े के संबंध को प्रगाढ़ करेगा ।
सोमवार, 11 अगस्त 2014
Case #30 - 30 कामुक न ोने का एक अच्छा कारण
ब्रिजिट ने अपनी पीठ के निचले हिस्से में और जननेन्द्रिय क्षेत्र में अकड़न बताई । उसके तलाक को 5 साल हो गये थे और उसके बाद से वह कोई और संबंध नहीं बना पाई थी ।
उसने बताया कि उसके पति ने उसे चोट पहुँचाई थी । उसने कभी यौन-संबंधों में उत्साह नहीं दिखाया था, जब कि उसके पति ने बहुत बार कई तरीकों से भरपूर कोशिश की थी, और ये कि उनके संबंध में कई बहुत अच्छी बातें भी थी ।
मैंने उससे पूछा कि उसने खासतौर पर उसे कैसे चोट पहुँचाई थी, लेकिन वह इसे बता नहीं पाई । उसने कहा कि उसे लगता था कि वह उसकी तरफ नहीं आता है, इसलिये यही वह चीज है जिससे उसको चोट पहुँचती थी ।
लेकिन ऐसा लगता था कि उसके पति ने उसे चोट पहुँचाने के लिये विशेष रूप से कुछ नहीं किया था । इसलिये ये तीर कहीं और ही निशाना लगा रहे थे ।
उसने तब बताया कि वास्तव में उसे अपने शरीर में बने रहने की भावना नहीं रही थी । मैंने भी अपने अलगाव का अनुभव उसे बताया, और यह भी मुझे अपने शरीर में पूर्ण रुप से रहने में मुश्किल होती थी ।
उसने कहा कि उसे शक है कि यह उसके माता-पिता द्वारा उसके भाई को बुरी तरह से पीटने से उत्पन्न हुआ था । उसके बाद उसे तस्करों द्वारा उठा लिया गया था, और वह पांच वर्ष बाद ही उन्हे पत्र लिख पाया था, और वहां से बच पाया था ।
परन्तु, उसके बाद वह गलियों में भिखारियों के साथ घूमता रहता था, चोरी करता था, कई बार जेल गया और जब उसने उसकी सहायता की कोशिश की तो उसने उसके यहाँ भी चोरी की ।
उसने बताया कि 15 साल पहले उसके पिता का देहांत हो गया और तभी से उसका भाई ठीक था, खुश था और एक अच्छा जीवन कर रहा था ।
फिर भी, उसे अभी भी बहुत पीड़ा और अपराधबोध होता था कि वो उसकी पिटाई के लिये कुछ नहीं कर पाई थी ।
मैंने उसे बताया कि उसके पास उस समय कोई सहारा नहीं था – बताने के लिये कोई भी नहीं था, उसे सान्तवना देने के लिये कोई भी नहीं था ।
मैंने यह प्रस्ताव दिया कि, मान लिया जाये कि उसकी पीड़ा अभी भी मौजूद थी, मैं उसके साथ बैठकर अपनी बाजू उसके चारों ओर करता हूं ताकि उसे ये लगे कि जो सहारा उसके पास कभी नहीं था, वह उसके पास है ।
जैसे ही मैंने ये किया, उसने अत्यधिक गहरी पीड़ा से सुबकना शुरू कर दिया । वो हाँफने लगी तो मैंने उसे पकड़ा, और फिर उसने सांस ली । और, वर्तमान में रहते हुए उसने अपने रोने में अत्यधिक पीड़ा को महसूस किया ।
कुछ देर बार उसका रोना बंद हो गया, और वह स्थिर और चुप हो गई । मैंने उससे बात की ।
तब, वह बैठ गई और मेरी तरफ देखा । उसने कहा 'मैं अब तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ' । मैंने उसमें एक बदलाव महसूस किया और अपने जोश में भी । मैंने कहा, मैं वह महसूस कर सकता हूँ, मुझे जोशीला महसूस हुआ । उसने बताया कि उसे भी अपने सारे शरीर में जोश महसूस हो रहा था ।
मैंने उससे पूछा कि वो मुझे क्या देना चाहती थी, लेकिन कुछ समय तक उसे कहने के लिये शब्द नहीं मिले । फिर उसने कहा 'मैं तुम्हारी आँखों को अपनी आँखों से चूमना चाहती हूँ' । मैं उसका खुलापन और हम दोनों के बीच उर्जा का प्रवाह महसूस कर पा रहा था । मैंने कहा, अब तुम अपने शरीर में हो, और एक संबंध के लिये तैयार हो । उसने सिर हिलाया ।
मैंने उसकी अपनी पहली भावना(अकड़न महसूस होना) को नहीं लिया, और न ही दूसरी (सामान्य तौर पर उसके शरीर में भावनाओं की कमी) भावना को लिया । मैंने उससे बातचीत की और तब तक इन्तजार किया जब तक कुछ और निकल कर नहीं आया, जो कि उसका पारिवारिक अधूरापन था ।
ऐसे आघात को देखने से उस पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था, और इसके बावजूद कि उसके भाई ने अंतत: अपने जीवन को फिर से सुधार लिया था, वो अभी भी उसी पीड़ा और अपराधबोध के साथ चल रही थी । वो तब तक आगे नहीं बढ़ पा रही थी जब तक उसके दर्द को महसूस नहीं किया जा सकता था और उसे सहारा नहीं दिया जाता ।
ऐसे अनुभव को दे कर एक बहुत ही मजबूत ठीक होने वाले अनु्भव की शुरूआत हुई, जिससे कि वह तत्काल ही अपनी पीड़ा और अपराधबोध से छुटकारा पा सकी, और अपनी यौन-संबंधी भावनाओं के लिये उपलब्ध हुई ।
शुक्रवार, 8 अगस्त 2014
Case #29 - 29 गुस्से ाली छोटी सी बची को पालना
कैथी अपने पिता से नाराजगी का मुद्दा ले कर आई । मैंने पूछा उसे किस बात का गुस्सा था । उसने बताया कि जब वह 4 वर्ष की थी उसके पिता ने उसकी माँ को तलाक दे दिया था ।
मैंने उसकी पृष्ठभूमि की प्रकृति को परखा । वह बीस साल पहले हुआ था और तब से वह अपने पिता से केवल 20 बार मिली थी । वह उसके बारे में बहुत कम जानती थी ।
उसे लगता था कि उसकी माँ पीड़ित व्यक्ति थी – उसके पिता का प्रेम-प्रसंग था, और फिर उसने दोबारा शादी कर ली थी ।
उसने अपने व्यस्क जीवन में उससे मिलने की कोई कोशिश नहीं की थी । मैंने पूछा क्यों तो उसने जवाब दिया कि पिछली बार जब वह अपनी दूसरी शादी से अपनी बेटी को साथ ले कर आया था तो उसका सौतेली बहन को प्यार करते देख कर मेरी को बहुत जलन महसूस हुई थी ।
मैंने उससे कहा कि मैं उसके माता-पिता के तलाक के मुद्दे पर, या उसके बारे में उसके गुस्से पर, काम नहीं करूँगा (क्योंकि वास्तव में यह उसके मुद्दों का केन्द्रबिंदु नहीं था) । इसके बजाय मैं उसके साथ केवल एक व्यस्क की तरह ही काम करना चाहता था और जानना चाहता कि वर्तमान समय में वह क्या करना चाहती थी ।
वो कुछ हिचकिचा रही थी, लेकिन मेरी सीमाएँ स्पष्ट थीँ ।
मैंने उसको अपने तलाक के बारे में एक कहानी सुनाई, और अपनी सबसे बड़ी बेटी, जब वह बड़ी हो चुकी थी, के साथ हुई बातचीत और जो गल्तफहमियाँ उसने पाल रखी थीं के बारे में बताया ।
मैंने उससे कहा कि मैं उसकी अपने पिता के साथ हुई बातचीत को जानने के लिये तैयार था परन्तु उसके साथ किसी असहाय, पीड़ित या अशक्त भूमिका में रहने के लिये तैयार नहीं था ।
उसे अपनी माँ की कहानियाँ विरासत में मिली थीं और वह उन्ही के रंग में रंगी हुई थी । एक व्यस्क होते हुए वह अपने विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती थी और सीधे अपने पिता से उसकी तरफ की बात का पता लगा सकती थी । उसने अभी तक ऐसा नहीं किया था, इसलिये बजाय इसके कि मैं उसके भूतकाल को खोदूँ , मेरा विचार भविष्य की ओर धयान देने का था ।
इसके अलावा, जब हम इसके बारे में बात करते थे तो मेरी की आवाज और हाव-भाव छोटी बच्ची की तरह हो जाते थे । मैंने उससे कहा कि मैं समझता था, और मुझे उस दया आ रही थी, कि उसने अपने पिता का बहुत कुछ खोया था, लेकिन अब वो बीती बात हो चुकी थी और किसी प्रकार की चिकित्सा या अपने पिता के साथ बातचीत उन दिनों को वापिस नहीं ला सकती थी ।
जैसे भी हो, हमें इसी त्रासदी के साथ रहना था और यहीं से उसके लिये उपाय ढूँढना था । यह बहुत मुश्किल था लेकिन कुछ और करने से उसे उसी असहाय स्थिति में ही रहने के लिये ही मदद करते और उकसाते और वह हमेशा उस चीज को पाने की इच्छुक रहती जिसे उसने खो दिया था ।
कभी-कभी समानुभूति दिखाने से लोगों की सहायता हो जाती है परन्तु बाकी समय उन्हे एक स्पष्ट सीमा चाहिये होती है और हमेशा पीछे मुड़ कर देखने के बजाय आगे बढ़ने का रास्ता चाहिये होता है । उसके अंदर की छोटी बच्ची के पास कोई विकल्प नहीं था, अपने पिता की तरफ जाने की हिम्मत नहीं थी ।
उसने बताया कि अगर उसने अपने पिता को बचपन में देखा होता तो उसे किस तरह से मारती । स्पष्ट रूप से वो गुस्सा थी और मैं इसे सामान्य स्तर पर ले कर आया । लेकिन उसके बारे में बताने के लिये उसे कोई और रास्ता नहीं मिला था, वह अभी भी वही छोटी क्रोधी बच्ची थी ।
इसलिये, मैंने एक प्रयोग का सुझाव दिया: कमरे में उस स्थान से शुरू करके, जिसे वह अपनी माँ का स्थान समझती थी, कमरे में दूसरी तरफ अपने पिता की तरफ जाये । शायद अपने पिता के साथ बातचीत करने के लिये या फिर शायद उसके साथ खड़े होने के लिये ।
उसे यह सुझाव बड़ा चुनौतीपूर्ण लगा और वह बहुत डर गई थी । मैंने उसको प्रोत्साहित करने के लिये सब कुछ किया, लेकिन उसे विकल्प भी दिये । मैंने उसे बार-बार याद दिलाया कि वह 24 वर्ष की थी । मैंने उससे छोटी बच्ची की आवाज को त्यागने के लिये कहा, अपनी कमर को झुकाने के बजाय सीधे रखने के लिये कहा (उसने अपनी कमर में लगातार दर्द की शिकायत बताई थी) और उस दशा से व्यस्कता और दूसरे विकल्पों को आजमाने के लिये कहा ।
धीरे-धीरे वह प्रयोग के लिये मान गई । वह एक समय में एक कदम आगे बढ़ी, उसे हर कदम पर सहारे की आवश्यकता होती थी जिससे वह गिर न जाय । अंतत: वह अपने पिता के स्थान पर पहुँची, और मैंने किसी को उसके पिता का किरदार निभाने के लिये कहा ।
उसे अपने पिता से बात करने में बहुत मुश्किल हो रही थी । इसलिये, मैंने उससे पूछा कि वह क्या महसूस कर रही थी, और उसे उन शब्दों में कहे जिनमें वह कह सकती थी । मैंने यह उसकी आधा दर्जन भावनाओं के लिये किया, इसलिये उसके पास कहने के लिये बहुत कुछ था । उसे अपने शब्दों को कहने के लिये और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता थी । वास्तव में वह छोटी-छोटी साँस की तेज आवाजें निकाल रही थी, जिन्हे पहचानने पर पता चला कि उनमें उसकी सौतेली बहन की तरफ ध्यान देने पर शिकायतें थीं ।
वह अपने पिता से प्रश्न पूछना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे केवल अपनी बात कहने के लिये कहा । मैंने उसे सवालों की चालबाजी के बारे में बताया और उसे उन कारणों पर ले कर आया जिनसे वह अपने पिता के पास जाना चाहती थी ।
अंत में, उसने अपने पिता से बात की । उसे बताया कि वह उससे नाराज, चोट खाई हुई, थी और यह भी कि उसे उसको देख खुशी हुई थी । ज्यादातर उसने अपनी परेशानी के बारे में और अपने डर के बारे में बताया । प्रतिनिधि की प्रतिक्रिया थी कि उसे उस को देख कर खुशी हुई थी; और इसकी उसे उम्मीद नहीं थी ।
सारी प्रक्रिया उसके लिये बहुत मुश्किल थी । मुझे प्रयोग को आसान बनाने के लिये बहुत कुछ करना पड़ा, जैसे कि यह एक चिकित्सा समूह है, वह उसके असली माता-पिता नहीं थे, और वह केवल एक लकड़ी के फर्श पर चल रही थी, इससे ज्यादा कुछ नहीं ।इसने उसकी भावुकता को थोड़ा कम किया । मैं हरेक कदम पर उसके साथ रहा, उसे सिखाते हुए, सहारा देते हुए और उसे अपने व्यस्क रूप में बने रहने के लिये चुनौती देते हुए ।
यह गेस्टाल्ट के 'सुरक्षित आपातकाल' का एक उदाहरण था, जिसमें हम उस सीमा में जाते हैं जो सामान्यतया बहुत मुश्किल होती है, फिर भी जितना भी सहारा दे पायें उससे यह करना आवश्यक
है ।
यह व्यक्ति को एक नया अनुभव लेने देता है ।
परन्तु ऐसे प्रयोग निर्देशात्मक नही होते और आसामियों को नये 'चाहनाओं' में इन्हे इस्तेमाल न करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन इसके बजाय इन्हे जागरूकता लाने और विकल्प खोजने के रूप में देखने के लिये कहा जाता है ।
मैंने उसकी पृष्ठभूमि की प्रकृति को परखा । वह बीस साल पहले हुआ था और तब से वह अपने पिता से केवल 20 बार मिली थी । वह उसके बारे में बहुत कम जानती थी ।
उसे लगता था कि उसकी माँ पीड़ित व्यक्ति थी – उसके पिता का प्रेम-प्रसंग था, और फिर उसने दोबारा शादी कर ली थी ।
उसने अपने व्यस्क जीवन में उससे मिलने की कोई कोशिश नहीं की थी । मैंने पूछा क्यों तो उसने जवाब दिया कि पिछली बार जब वह अपनी दूसरी शादी से अपनी बेटी को साथ ले कर आया था तो उसका सौतेली बहन को प्यार करते देख कर मेरी को बहुत जलन महसूस हुई थी ।
मैंने उससे कहा कि मैं उसके माता-पिता के तलाक के मुद्दे पर, या उसके बारे में उसके गुस्से पर, काम नहीं करूँगा (क्योंकि वास्तव में यह उसके मुद्दों का केन्द्रबिंदु नहीं था) । इसके बजाय मैं उसके साथ केवल एक व्यस्क की तरह ही काम करना चाहता था और जानना चाहता कि वर्तमान समय में वह क्या करना चाहती थी ।
वो कुछ हिचकिचा रही थी, लेकिन मेरी सीमाएँ स्पष्ट थीँ ।
मैंने उसको अपने तलाक के बारे में एक कहानी सुनाई, और अपनी सबसे बड़ी बेटी, जब वह बड़ी हो चुकी थी, के साथ हुई बातचीत और जो गल्तफहमियाँ उसने पाल रखी थीं के बारे में बताया ।
मैंने उससे कहा कि मैं उसकी अपने पिता के साथ हुई बातचीत को जानने के लिये तैयार था परन्तु उसके साथ किसी असहाय, पीड़ित या अशक्त भूमिका में रहने के लिये तैयार नहीं था ।
उसे अपनी माँ की कहानियाँ विरासत में मिली थीं और वह उन्ही के रंग में रंगी हुई थी । एक व्यस्क होते हुए वह अपने विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती थी और सीधे अपने पिता से उसकी तरफ की बात का पता लगा सकती थी । उसने अभी तक ऐसा नहीं किया था, इसलिये बजाय इसके कि मैं उसके भूतकाल को खोदूँ , मेरा विचार भविष्य की ओर धयान देने का था ।
इसके अलावा, जब हम इसके बारे में बात करते थे तो मेरी की आवाज और हाव-भाव छोटी बच्ची की तरह हो जाते थे । मैंने उससे कहा कि मैं समझता था, और मुझे उस दया आ रही थी, कि उसने अपने पिता का बहुत कुछ खोया था, लेकिन अब वो बीती बात हो चुकी थी और किसी प्रकार की चिकित्सा या अपने पिता के साथ बातचीत उन दिनों को वापिस नहीं ला सकती थी ।
जैसे भी हो, हमें इसी त्रासदी के साथ रहना था और यहीं से उसके लिये उपाय ढूँढना था । यह बहुत मुश्किल था लेकिन कुछ और करने से उसे उसी असहाय स्थिति में ही रहने के लिये ही मदद करते और उकसाते और वह हमेशा उस चीज को पाने की इच्छुक रहती जिसे उसने खो दिया था ।
कभी-कभी समानुभूति दिखाने से लोगों की सहायता हो जाती है परन्तु बाकी समय उन्हे एक स्पष्ट सीमा चाहिये होती है और हमेशा पीछे मुड़ कर देखने के बजाय आगे बढ़ने का रास्ता चाहिये होता है । उसके अंदर की छोटी बच्ची के पास कोई विकल्प नहीं था, अपने पिता की तरफ जाने की हिम्मत नहीं थी ।
उसने बताया कि अगर उसने अपने पिता को बचपन में देखा होता तो उसे किस तरह से मारती । स्पष्ट रूप से वो गुस्सा थी और मैं इसे सामान्य स्तर पर ले कर आया । लेकिन उसके बारे में बताने के लिये उसे कोई और रास्ता नहीं मिला था, वह अभी भी वही छोटी क्रोधी बच्ची थी ।
इसलिये, मैंने एक प्रयोग का सुझाव दिया: कमरे में उस स्थान से शुरू करके, जिसे वह अपनी माँ का स्थान समझती थी, कमरे में दूसरी तरफ अपने पिता की तरफ जाये । शायद अपने पिता के साथ बातचीत करने के लिये या फिर शायद उसके साथ खड़े होने के लिये ।
उसे यह सुझाव बड़ा चुनौतीपूर्ण लगा और वह बहुत डर गई थी । मैंने उसको प्रोत्साहित करने के लिये सब कुछ किया, लेकिन उसे विकल्प भी दिये । मैंने उसे बार-बार याद दिलाया कि वह 24 वर्ष की थी । मैंने उससे छोटी बच्ची की आवाज को त्यागने के लिये कहा, अपनी कमर को झुकाने के बजाय सीधे रखने के लिये कहा (उसने अपनी कमर में लगातार दर्द की शिकायत बताई थी) और उस दशा से व्यस्कता और दूसरे विकल्पों को आजमाने के लिये कहा ।
धीरे-धीरे वह प्रयोग के लिये मान गई । वह एक समय में एक कदम आगे बढ़ी, उसे हर कदम पर सहारे की आवश्यकता होती थी जिससे वह गिर न जाय । अंतत: वह अपने पिता के स्थान पर पहुँची, और मैंने किसी को उसके पिता का किरदार निभाने के लिये कहा ।
उसे अपने पिता से बात करने में बहुत मुश्किल हो रही थी । इसलिये, मैंने उससे पूछा कि वह क्या महसूस कर रही थी, और उसे उन शब्दों में कहे जिनमें वह कह सकती थी । मैंने यह उसकी आधा दर्जन भावनाओं के लिये किया, इसलिये उसके पास कहने के लिये बहुत कुछ था । उसे अपने शब्दों को कहने के लिये और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता थी । वास्तव में वह छोटी-छोटी साँस की तेज आवाजें निकाल रही थी, जिन्हे पहचानने पर पता चला कि उनमें उसकी सौतेली बहन की तरफ ध्यान देने पर शिकायतें थीं ।
वह अपने पिता से प्रश्न पूछना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे केवल अपनी बात कहने के लिये कहा । मैंने उसे सवालों की चालबाजी के बारे में बताया और उसे उन कारणों पर ले कर आया जिनसे वह अपने पिता के पास जाना चाहती थी ।
अंत में, उसने अपने पिता से बात की । उसे बताया कि वह उससे नाराज, चोट खाई हुई, थी और यह भी कि उसे उसको देख खुशी हुई थी । ज्यादातर उसने अपनी परेशानी के बारे में और अपने डर के बारे में बताया । प्रतिनिधि की प्रतिक्रिया थी कि उसे उस को देख कर खुशी हुई थी; और इसकी उसे उम्मीद नहीं थी ।
सारी प्रक्रिया उसके लिये बहुत मुश्किल थी । मुझे प्रयोग को आसान बनाने के लिये बहुत कुछ करना पड़ा, जैसे कि यह एक चिकित्सा समूह है, वह उसके असली माता-पिता नहीं थे, और वह केवल एक लकड़ी के फर्श पर चल रही थी, इससे ज्यादा कुछ नहीं ।इसने उसकी भावुकता को थोड़ा कम किया । मैं हरेक कदम पर उसके साथ रहा, उसे सिखाते हुए, सहारा देते हुए और उसे अपने व्यस्क रूप में बने रहने के लिये चुनौती देते हुए ।
यह गेस्टाल्ट के 'सुरक्षित आपातकाल' का एक उदाहरण था, जिसमें हम उस सीमा में जाते हैं जो सामान्यतया बहुत मुश्किल होती है, फिर भी जितना भी सहारा दे पायें उससे यह करना आवश्यक
है ।
यह व्यक्ति को एक नया अनुभव लेने देता है ।
परन्तु ऐसे प्रयोग निर्देशात्मक नही होते और आसामियों को नये 'चाहनाओं' में इन्हे इस्तेमाल न करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन इसके बजाय इन्हे जागरूकता लाने और विकल्प खोजने के रूप में देखने के लिये कहा जाता है ।
बुधवार, 6 अगस्त 2014
Case #28 - 28 बोलने वाली पैंट
नैन्सी ने बहुत सारे मुद्दे बताये । उसे लगता था कि विश्वसनीयता और उसके व्यवहार में एक अंतर था। पहली शादी से उसके एक बच्चा था; उस संबंध में बहुत ही कम वास्तविकता थी, क्योंकि वह कभी-कभी ही साथ रहते थे ।
उसने अपनी दूसरी शादी के बारे में बात की, बहुत से गर्भपात करवाये, तब उसका पति दूसरा बच्चा चाहता था लेकिन वास्तव में वो नहीं चाहती थी । उसने बताया कि वह अपने दूसरे पति के साथ बहुत खुश थी, लेकिन कभी-कभी कार्यशालाओं में अपनी हाजिरी उससे छुपाती थी । उसने बताया कि वह शारीरिक रूप से मजबूत नहीं थी और उस अवस्था को बदलना चाहती थी ।
मैंने बताया कि एक मुद्दा दूसरे मुद्दे की तरफ ले जाता है, और इसलिये किसी भी मुद्दे पर गहराई से केन्द्रित होने में मुश्किल होती है । दर-असल, उसने कहा कि अन्य चिकित्सकों को उस पर भरोसा करने में मुश्किल हुई थी ।
मैंने उससे पूछा कि वो मुझसे क्या चाहती थी । उंसने उत्तर दिया कि वो बचना चाहती थी । मैंने उसे बताया कि मुझमें कुछ ऐसा है जिससे उसे बचा कर मुझे खुशी होगी, लेकिन मैं अभी तक ठीक से कर नहीं पा रहा था; तथा दूसरी तरफ मुझमे कुछ ऐसा भी था जो उसे सशक्त बनाना चाहता था, लेकिन वह भी ठीक तरह से नहीं हो पा रहा था ।
सत्र की शुरूआत में मैंने उसकी पैंट देखी – एक रंगबिरंगी और जटिल नमूने की । मैंने उसे कई बार देखा । मैंने उसका मुँह भी देखा । उस पर बहुत तरह के भाव थे, और वो कभी-कभी अपने होंठ भी चबाती थी, या फिर अपने दाँत एक खास तरीके से दिखाती थी । मैंने उन दोनों चीजों पर टिप्पणी की । उसे अपने मुँह के बारे में कुछ पता नहीं था, और अपनी पैंट में उसे कोई रुचि नहीँ थी । कुछ और बातचीत के बाद, मैं दोबारा उसकी पैंट पर गया, और सुझाव दिया कि शायद पैंट हमारी सहायता करे कि हमें किन मुद्दों पर काम करना था ।
मैंने उससे पूछा कि इन चीजों का कौन सा पहलू वो वास्तव में पसन्द करती थी । उसने अपने टखने के आसपास एक छोटा सा हिस्सा दिखाया और तीन रंगों की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह गर्म और ठंडे भाव के थे ।
इसलिये, मैंने उससे कहा कि वह हरेक रंग बन कर अपने बारे में बताये । उसने अपने आप को एक गर्म, हंसमुख, उत्साही और चमकीला व्यक्ति बताया । फिर स्वयं को एक शांत, विचारशील व्यक्ति बताया जो अकेला रहना पसन्द करता था । फिर उसने स्वयँ को एक भावहीन, स्वार्थी, विवेकशील व्यक्ति बताया ।
मैंने सबके बारे में एक-एक करके अपनी प्रतिक्रिया बताई । जब मैं आखिरी वाले भाग पर पहुँचा, तो वो एकदम से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पहले ही बोली कि यह वाला भाग ठीक नहीं था, और इसके लिये उसने अपने-आप को ही दोषी ठहराया । इससे यह पता चला कि बहुत कुछ चाहती थी जिससे कि वो वाला भाग गल्त हो गया था । मैंने उससे पूछा कि वो कहाँ से आये थे – उसकी माँ से । इसलिये, हमने उसकी माँ के लिये एक तकिया लगाया, और उसने अपनी माँ से बात की, अपना संबंध बताया, लेकिन अपनी चाहने वाली सूची की सीमाएँ भी बताईँ ।
फिर उसकी पहले वाली सास थी, जो कुछ मायनों में 'आदर्श' थी, लेकिन वह उससे बहुत कुछ चाहती थी । मैंने उसको कहा कि वो अपनी सास को तकिये के ऊपर रखे, और फिर दोबारा उसने अपना संबंध बताया, लेकिन अपनी सीमाएँ भी ।
मैं हर बार उसके भावहीन/स्वार्थी भाग की तरफ आता था, उसे प्रमाणित करने की कोशिश में । हर बार वह उसे त्यागना शुरू कर देती थी । मैं उससे पूछता था कि क्या वह अपनी चाहना को स्वयं पर काबू करने देना चाहती थी, और वह उत्तर देती थी 'नहीं' ।
अंत में, जब मैंने उसे अपनी स्वार्थपरता के बारे में बताया, तो उसने मुझे सुनना शुरू कर दिया । मैंने उससे कहा कि अगर मैं अपने काम वाले/व्यापारिक रूप में था, या मैं बहुत ही स्थिर महसूस कर रहा था, तो मैं सहज रूप से उसके इस भाग के साथ हो सकता था । या, फिर मैं भी अपने भावहीन/स्वार्थी रुप में था तो मैं भी इसके साथ ठीक ही रहूँगा । लेकिन अगर मैं खुद को कमजोर या जरूरतमंद महसूस कर रहा था, तो मुझे इससे चोट पहुँच सकती थी ।
वो मुझे बिना किसी सहमति के सुन पा रही थी, और मेरी जानकारी में उसे जज्ब कर रही थी ।
उसने कहा 'लेकिन यह वह हिस्सा है जिसे मैं बदलना चाहती हूँ, क्योंकि मैं लोगों को चोट पहुँचा सकती हूँ' । मैंने उत्तर दिया 'मुझे इसमें ज्यादा रुचि है कि तुम ये मान लो कि वास्तव में यह तुम्हारा ही एक हिस्सा है, जब तुम उस स्थान पर होती हो – और यह मुझे तुम्हारे बारे में सुरक्षा की भावना देता है' ।
वो समझ गई थी कि इस भाग से छुटकारा पाना, या इसमें सुधार लाना, संभव नहीं था, बस उसके अस्तित्व को केवल मानना था ।
इस सत्र को शुरू करने में बहुत मुश्किल हुई थी । हर बार जब वो स्पष्ट रुप से शुरुआत करती थी, तो उसका ध्यान बदल जाता था । यह अपने-आप में ही धयान देने योग्य था – उसका ध्यान बदलना । मैंने उस पर धयान नहीं दिया, क्योंकि हमारे बीच समुचित संबंध नहीं था । मैंने थोड़ा बचाने की संभावना वाला किरदार निभाया, लेकिन उस रास्ते पर आगे न बढ़ने का निर्णय लिया, क्योंकि उस पर पकड़ नहीं बन पा रही थी । इसलिये, स्पष्ट विषय-वस्तु ढूँढने के लिये चूहा और बिल्ली का खेल खेलने के बजाय मैं उस वस्तु पर लौट आया जो मेरे लिये दृष्टा थी – पैंट । ये तथ्य कि उसके लिये वह कोई महत्व नहीं रखता था,हम उसमें से कुछ ऐसा ढूँढ सकते थे जो उजागर हो, उसके किसी भी आकृति के बारे में बताने के विरोध के बावजूद । सीधे-सीधे उसने अपने तीन महत्वपूर्ण हिस्सों का नाम लिया ।
फिर मैंने उनकी संबंधों के परिप्रेक्ष्य में जाँच की – हरेक के बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की ।
उसका विरोध तीसरे भाग के बारे में उभर कर आया और उसने स्पष्टत: उस काम की ओर इशारा किया जो करना था : उसकी चाहनाओं और उनके कारणों से निपटना ।
ये करने के बाद, वो अपने उस भाग को मेरे साथ अपने संबंध में और अपने साथ स्वयँ के संबंध में ला सकी ।
इसका नतीजा वही था जिसके पीछे हम गेस्टाल्ट प्रक्रिया में है : एकीकरण
उसने अपनी दूसरी शादी के बारे में बात की, बहुत से गर्भपात करवाये, तब उसका पति दूसरा बच्चा चाहता था लेकिन वास्तव में वो नहीं चाहती थी । उसने बताया कि वह अपने दूसरे पति के साथ बहुत खुश थी, लेकिन कभी-कभी कार्यशालाओं में अपनी हाजिरी उससे छुपाती थी । उसने बताया कि वह शारीरिक रूप से मजबूत नहीं थी और उस अवस्था को बदलना चाहती थी ।
मैंने बताया कि एक मुद्दा दूसरे मुद्दे की तरफ ले जाता है, और इसलिये किसी भी मुद्दे पर गहराई से केन्द्रित होने में मुश्किल होती है । दर-असल, उसने कहा कि अन्य चिकित्सकों को उस पर भरोसा करने में मुश्किल हुई थी ।
मैंने उससे पूछा कि वो मुझसे क्या चाहती थी । उंसने उत्तर दिया कि वो बचना चाहती थी । मैंने उसे बताया कि मुझमें कुछ ऐसा है जिससे उसे बचा कर मुझे खुशी होगी, लेकिन मैं अभी तक ठीक से कर नहीं पा रहा था; तथा दूसरी तरफ मुझमे कुछ ऐसा भी था जो उसे सशक्त बनाना चाहता था, लेकिन वह भी ठीक तरह से नहीं हो पा रहा था ।
सत्र की शुरूआत में मैंने उसकी पैंट देखी – एक रंगबिरंगी और जटिल नमूने की । मैंने उसे कई बार देखा । मैंने उसका मुँह भी देखा । उस पर बहुत तरह के भाव थे, और वो कभी-कभी अपने होंठ भी चबाती थी, या फिर अपने दाँत एक खास तरीके से दिखाती थी । मैंने उन दोनों चीजों पर टिप्पणी की । उसे अपने मुँह के बारे में कुछ पता नहीं था, और अपनी पैंट में उसे कोई रुचि नहीँ थी । कुछ और बातचीत के बाद, मैं दोबारा उसकी पैंट पर गया, और सुझाव दिया कि शायद पैंट हमारी सहायता करे कि हमें किन मुद्दों पर काम करना था ।
मैंने उससे पूछा कि इन चीजों का कौन सा पहलू वो वास्तव में पसन्द करती थी । उसने अपने टखने के आसपास एक छोटा सा हिस्सा दिखाया और तीन रंगों की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह गर्म और ठंडे भाव के थे ।
इसलिये, मैंने उससे कहा कि वह हरेक रंग बन कर अपने बारे में बताये । उसने अपने आप को एक गर्म, हंसमुख, उत्साही और चमकीला व्यक्ति बताया । फिर स्वयं को एक शांत, विचारशील व्यक्ति बताया जो अकेला रहना पसन्द करता था । फिर उसने स्वयँ को एक भावहीन, स्वार्थी, विवेकशील व्यक्ति बताया ।
मैंने सबके बारे में एक-एक करके अपनी प्रतिक्रिया बताई । जब मैं आखिरी वाले भाग पर पहुँचा, तो वो एकदम से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पहले ही बोली कि यह वाला भाग ठीक नहीं था, और इसके लिये उसने अपने-आप को ही दोषी ठहराया । इससे यह पता चला कि बहुत कुछ चाहती थी जिससे कि वो वाला भाग गल्त हो गया था । मैंने उससे पूछा कि वो कहाँ से आये थे – उसकी माँ से । इसलिये, हमने उसकी माँ के लिये एक तकिया लगाया, और उसने अपनी माँ से बात की, अपना संबंध बताया, लेकिन अपनी चाहने वाली सूची की सीमाएँ भी बताईँ ।
फिर उसकी पहले वाली सास थी, जो कुछ मायनों में 'आदर्श' थी, लेकिन वह उससे बहुत कुछ चाहती थी । मैंने उसको कहा कि वो अपनी सास को तकिये के ऊपर रखे, और फिर दोबारा उसने अपना संबंध बताया, लेकिन अपनी सीमाएँ भी ।
मैं हर बार उसके भावहीन/स्वार्थी भाग की तरफ आता था, उसे प्रमाणित करने की कोशिश में । हर बार वह उसे त्यागना शुरू कर देती थी । मैं उससे पूछता था कि क्या वह अपनी चाहना को स्वयं पर काबू करने देना चाहती थी, और वह उत्तर देती थी 'नहीं' ।
अंत में, जब मैंने उसे अपनी स्वार्थपरता के बारे में बताया, तो उसने मुझे सुनना शुरू कर दिया । मैंने उससे कहा कि अगर मैं अपने काम वाले/व्यापारिक रूप में था, या मैं बहुत ही स्थिर महसूस कर रहा था, तो मैं सहज रूप से उसके इस भाग के साथ हो सकता था । या, फिर मैं भी अपने भावहीन/स्वार्थी रुप में था तो मैं भी इसके साथ ठीक ही रहूँगा । लेकिन अगर मैं खुद को कमजोर या जरूरतमंद महसूस कर रहा था, तो मुझे इससे चोट पहुँच सकती थी ।
वो मुझे बिना किसी सहमति के सुन पा रही थी, और मेरी जानकारी में उसे जज्ब कर रही थी ।
उसने कहा 'लेकिन यह वह हिस्सा है जिसे मैं बदलना चाहती हूँ, क्योंकि मैं लोगों को चोट पहुँचा सकती हूँ' । मैंने उत्तर दिया 'मुझे इसमें ज्यादा रुचि है कि तुम ये मान लो कि वास्तव में यह तुम्हारा ही एक हिस्सा है, जब तुम उस स्थान पर होती हो – और यह मुझे तुम्हारे बारे में सुरक्षा की भावना देता है' ।
वो समझ गई थी कि इस भाग से छुटकारा पाना, या इसमें सुधार लाना, संभव नहीं था, बस उसके अस्तित्व को केवल मानना था ।
इस सत्र को शुरू करने में बहुत मुश्किल हुई थी । हर बार जब वो स्पष्ट रुप से शुरुआत करती थी, तो उसका ध्यान बदल जाता था । यह अपने-आप में ही धयान देने योग्य था – उसका ध्यान बदलना । मैंने उस पर धयान नहीं दिया, क्योंकि हमारे बीच समुचित संबंध नहीं था । मैंने थोड़ा बचाने की संभावना वाला किरदार निभाया, लेकिन उस रास्ते पर आगे न बढ़ने का निर्णय लिया, क्योंकि उस पर पकड़ नहीं बन पा रही थी । इसलिये, स्पष्ट विषय-वस्तु ढूँढने के लिये चूहा और बिल्ली का खेल खेलने के बजाय मैं उस वस्तु पर लौट आया जो मेरे लिये दृष्टा थी – पैंट । ये तथ्य कि उसके लिये वह कोई महत्व नहीं रखता था,हम उसमें से कुछ ऐसा ढूँढ सकते थे जो उजागर हो, उसके किसी भी आकृति के बारे में बताने के विरोध के बावजूद । सीधे-सीधे उसने अपने तीन महत्वपूर्ण हिस्सों का नाम लिया ।
फिर मैंने उनकी संबंधों के परिप्रेक्ष्य में जाँच की – हरेक के बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की ।
उसका विरोध तीसरे भाग के बारे में उभर कर आया और उसने स्पष्टत: उस काम की ओर इशारा किया जो करना था : उसकी चाहनाओं और उनके कारणों से निपटना ।
ये करने के बाद, वो अपने उस भाग को मेरे साथ अपने संबंध में और अपने साथ स्वयँ के संबंध में ला सकी ।
इसका नतीजा वही था जिसके पीछे हम गेस्टाल्ट प्रक्रिया में है : एकीकरण
शनिवार, 2 अगस्त 2014
Case #27 - 27 नैतिक शुद्धता
जाह्न एक छोटी सी कंपनी चलाता था । उसकी चिंता यह थी कि वह नैतिक रूप से बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था । बाजार में, जहाँ कुछ भी चलता है, उसके बड़े पक्के नियम थे और वह उन पर कायम रहता था । वह अपने परिवार के साथ भी ऐसा ही था – अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लेता था, अपने माता-पिता की इज्जत करता था और परम्परा पर चलता था ।
फिर भी उसे भारी-भारी और दबाव सा लगता था और वह अपने से प्रश्न करता था कि शायद नैतिक शुद्धता अच्छी चीज नहीं थी, या फिर वास्तव में उसका व्यापार बैठ सकता था क्योंकि वह वैसी बेईमान तरकीबें नहीं अपनाना चाहता था जो उसके प्रतिस्पर्धी अपनाते थे (जैसे कि उद्योग संबंधी जासूसी) । मैंने पहले उन तरीकों के गुण पहचानने चाहे जिन तरीकों से वह इस संसार में रहना चाहता था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा । उसको यह चिंता थी कि वास्तविक संसार में इससे उसको कुछ नहीं मिलेगा लेकिन साथ ही साथ वह अपने सख्त नैतिक ढांचे पर कायम रहना चाहता था ।
इसलिये मैंने उसे दो विरोधी चीजें बताने के लिये कहा – इतिहास में से ऐसा किरदार जो नैतिक रूप से ईमानदार आदमी को दर्शाता था और फिर कोई ऐसा किरदार जिसके लिये 'सब चलता है' ।
उसने दो को चुना और मैंने उससे कहा कि वह बारी-बारी उनका स्थान ले और उनसे संवाद करे । उसे यह बहुत ही मुश्किल लगा और बार-बार किरदार से बाहर आना चाहता रहा । उसने पूछा 'क्या मैं दोनों को एक कर सकता हूँ ?' लेकिन एकीकरण इतनी आसानी से नहीं होता ।
जब वह अपने ईमानदार किरदार को निभा रहा था तो उसने बताया कि वह चीनी होने की गहरी और लम्बी परम्परा का अनुसरण कर रहा था जबकि दूसरे किरदार में वह उन मूल्यों के साथ समझौता कर रहा था । इसलिये यह स्पष्ट था कि परम्परा को मानने में उसके महत्व की सीमा चीनी सभ्यता का गहन सदाचार मूल्य थे ।
इसलिये, मैंने ये सुझाव दिया कि वह दोनों किरदारों से बाहर आये और अपनी सीट पर बैठ कर दोनों किरदारों से बात करे । उसने परम्परा को स्वीकार किया और फिर यह भी स्वीकार किया कि शायद वह दूसरे पक्ष से कुछ काम का सीख सके ।
यह उसके लिये बहुत बड़ा कदम था ।
मैंने उसे यह सुझाव दिया कि वह एक सम्राट के समान है जिसके एक के बजाय दो सलाहकार थे पर अंतिम निर्णय उसका अपना था ।यह सुनकर उसने काफी अच्छा महसूस किया और अपने नये 'सलाहकार' की कीमत को जान पाया ।
उसने बताया कि उसके व्यक्तिगत जीवन में इसका एक पहलू था, जहाँ वो चीजों को इतनी गंभीरता से लिया कि उसे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि उसे कभी छुट्टी मिली थी ।
इसलिये हमने दो और सलाहकार बनाये, एक वह जो उसे उसकी जिम्मेदारियों की याद दिलाये और दूसरा वह जो धृष्ट, गैर-जिम्मेदार और मस्ती करने वाला हो ।
एक बार फिर उसने दो सलाहकार पा कर राहत महसूस की लेकिन अंतिम निर्णय लेने के लिये वही सक्षम था । मैंने उसे मस्ती करने वाले किरदार में एक वास्तविक व्यक्ति के बारे में बताने के लिये कहा। उसने अपने चचेरे भाई के बारे में बताया । पिछली बार उसने अपने चचेरे भाई को नकारात्मक रूप में देखा था, अब वह उसे प्रशंसनीय रूप में देख सकता था, और उसके साथ समय व्यतीत करने के बारे में भी सोच सकता था ।
हमने गेस्टाल्ट के दिशानिर्देश, जो यह मानते हैं कि हरेक गुण के लिये एक विपरीत गुण भी होता है, विरोधाभासों के लिये प्रयोग किये । किसी एक ही पक्ष के साथ चलने से आदमी बंट जाता है । गेस्टाल्ट की दिशा एकीकरण की ओर है, जो एक वास्तविक प्रक्रिया से होनी चाहिये जिसमें दोनों पक्षों के साथ सम्पर्क हो, बजाये इसके कि इसे बौद्धिक तरीके से समझाया जाये ।
उसके लिये प्रयोग का प्रचलित तरीका सहज नहीं था (सीधा संवाद), इसलिये आसामी की स्वेच्छा से और उसकी जानकारी देने पर हमें हमेशा ही उसी स्थान पर प्रयोग को बदलने के लिये लचीले रूप से तैयार रहने की आवश्यकता है ।
फिर भी उसे भारी-भारी और दबाव सा लगता था और वह अपने से प्रश्न करता था कि शायद नैतिक शुद्धता अच्छी चीज नहीं थी, या फिर वास्तव में उसका व्यापार बैठ सकता था क्योंकि वह वैसी बेईमान तरकीबें नहीं अपनाना चाहता था जो उसके प्रतिस्पर्धी अपनाते थे (जैसे कि उद्योग संबंधी जासूसी) । मैंने पहले उन तरीकों के गुण पहचानने चाहे जिन तरीकों से वह इस संसार में रहना चाहता था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा । उसको यह चिंता थी कि वास्तविक संसार में इससे उसको कुछ नहीं मिलेगा लेकिन साथ ही साथ वह अपने सख्त नैतिक ढांचे पर कायम रहना चाहता था ।
इसलिये मैंने उसे दो विरोधी चीजें बताने के लिये कहा – इतिहास में से ऐसा किरदार जो नैतिक रूप से ईमानदार आदमी को दर्शाता था और फिर कोई ऐसा किरदार जिसके लिये 'सब चलता है' ।
उसने दो को चुना और मैंने उससे कहा कि वह बारी-बारी उनका स्थान ले और उनसे संवाद करे । उसे यह बहुत ही मुश्किल लगा और बार-बार किरदार से बाहर आना चाहता रहा । उसने पूछा 'क्या मैं दोनों को एक कर सकता हूँ ?' लेकिन एकीकरण इतनी आसानी से नहीं होता ।
जब वह अपने ईमानदार किरदार को निभा रहा था तो उसने बताया कि वह चीनी होने की गहरी और लम्बी परम्परा का अनुसरण कर रहा था जबकि दूसरे किरदार में वह उन मूल्यों के साथ समझौता कर रहा था । इसलिये यह स्पष्ट था कि परम्परा को मानने में उसके महत्व की सीमा चीनी सभ्यता का गहन सदाचार मूल्य थे ।
इसलिये, मैंने ये सुझाव दिया कि वह दोनों किरदारों से बाहर आये और अपनी सीट पर बैठ कर दोनों किरदारों से बात करे । उसने परम्परा को स्वीकार किया और फिर यह भी स्वीकार किया कि शायद वह दूसरे पक्ष से कुछ काम का सीख सके ।
यह उसके लिये बहुत बड़ा कदम था ।
मैंने उसे यह सुझाव दिया कि वह एक सम्राट के समान है जिसके एक के बजाय दो सलाहकार थे पर अंतिम निर्णय उसका अपना था ।यह सुनकर उसने काफी अच्छा महसूस किया और अपने नये 'सलाहकार' की कीमत को जान पाया ।
उसने बताया कि उसके व्यक्तिगत जीवन में इसका एक पहलू था, जहाँ वो चीजों को इतनी गंभीरता से लिया कि उसे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि उसे कभी छुट्टी मिली थी ।
इसलिये हमने दो और सलाहकार बनाये, एक वह जो उसे उसकी जिम्मेदारियों की याद दिलाये और दूसरा वह जो धृष्ट, गैर-जिम्मेदार और मस्ती करने वाला हो ।
एक बार फिर उसने दो सलाहकार पा कर राहत महसूस की लेकिन अंतिम निर्णय लेने के लिये वही सक्षम था । मैंने उसे मस्ती करने वाले किरदार में एक वास्तविक व्यक्ति के बारे में बताने के लिये कहा। उसने अपने चचेरे भाई के बारे में बताया । पिछली बार उसने अपने चचेरे भाई को नकारात्मक रूप में देखा था, अब वह उसे प्रशंसनीय रूप में देख सकता था, और उसके साथ समय व्यतीत करने के बारे में भी सोच सकता था ।
हमने गेस्टाल्ट के दिशानिर्देश, जो यह मानते हैं कि हरेक गुण के लिये एक विपरीत गुण भी होता है, विरोधाभासों के लिये प्रयोग किये । किसी एक ही पक्ष के साथ चलने से आदमी बंट जाता है । गेस्टाल्ट की दिशा एकीकरण की ओर है, जो एक वास्तविक प्रक्रिया से होनी चाहिये जिसमें दोनों पक्षों के साथ सम्पर्क हो, बजाये इसके कि इसे बौद्धिक तरीके से समझाया जाये ।
उसके लिये प्रयोग का प्रचलित तरीका सहज नहीं था (सीधा संवाद), इसलिये आसामी की स्वेच्छा से और उसकी जानकारी देने पर हमें हमेशा ही उसी स्थान पर प्रयोग को बदलने के लिये लचीले रूप से तैयार रहने की आवश्यकता है ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)